
पंजाब की तरह राजस्थान में सत्ता परिवर्तन की पटकथा लिखी जाने लगी है. पंजाब में कांग्रेस के एक धड़े ने जिस तरह से ब्यूरोक्रेसी की मनमानी का मुद्दा उठाते हुए नेतृत्व के बदलाव का मोर्चा खोला था. अब उसी तरह से राजस्थान में भी सियासी खेल शुरू हो गया है. कांग्रेसी विधायक और नेताओं ने गहलोत सरकार में अफसरशाही के हावी होने का मामला दिल्ली तक पहुंचा दिया है. गहलोत के एक मंत्री ने तो इस्तीफा तक देने की धमकी दे दी है. ऐसे में गहलोत सरकार में उठ रहे बागी तेवरों को और हवा मिल गई है.
राजस्थान में राज्यसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है. पिछले चार दिनों में चौथे कांग्रेस विधायक ने गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास माने जाने वाले खेल और युवा मामलों के मंत्री अशोक चांदना ने प्रमुख सचिव कुलदीप रांका के खिलाफ लिखते हुए इस्तीफे की पेशकश की. इस तरह से एक के बाद एक कांग्रेसी विधायक और नेता गहलोत सरकार में हावी होती नौकरशाही को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.
चित्तौड़गढ़ के बेगू से कांग्रेस विधायक राजेंद्र विधूडी ने कहा कि इस सरकार में कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही है. ऐसे ही रहा तो कोई विधायक चुनाव नहीं जीतेगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पुलिस वालों को बूथ पर बैठाकर चुनाव जिता लेना और जीतने का नकली सर्टिफिकेट बना कर दे देना. इसके अलावा उन्होंने बिना नाम लिए मंत्री को भी निशाना साधा और कहा कि मंत्री को बचाने के लिए पेपर आउट मामले की जांच नहीं कराई जा रही.
वहीं, डूंगरपुर से विधायक गणेश घोघरा ने दिल्ली में पार्टी संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल और प्रभारी अजय माकन से मिलकर गहलोत सरकार के कामकाज की शिकायत की थी. प्रतापगढ़ से विधायक रामलाल मीणा ने भी अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. प्रियंका गांधी के साथ उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सह प्रभारी सचिव धीरज गुर्जर ने भी अफसरशाही को घेरा है. उन्होंने कहा कि अधिकारी कभी किसी सरकार के नहीं होते, वो सत्ता के और खुद के होते हैं. ऐसे में समय पर इनकी पहचान न करने से किसी भी सरकार को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं.
राजस्थान में पहले भी कई विधायक अफसरों के हावी होने के मुद्दे पर गहलोत सरकार को घेर चुके हैं. कांग्रेस विधायकों में गिर्राज सिंह मलिंगा, जोगिंदर सिंह अवाना, वाजिब अली, दिव्या मदेरणा ने अफसरों के हावी होने का मुद्दा उठाया था. मलिंगा ने डीजी पर रंजिश रखने का आरोप लगाया था.
नेताओं के ब्यूरोक्रेसी पर मनमानी के आरोपों से उठे विवाद को खत्म करने के लिए मुख्य सचिव ने पिछले दिनों एक सर्कुलर भी निकाला था. इस सर्कुलर में अफसरों को विधायकों-जनप्रतिनिधियों का सम्मान करने, उनके मुद्दों की सुनवाई करने के निर्देश दिए गए थे. इसके बाद हालात नहीं बदले और अफसरों के खिलाफ नेताओं की शिकायतें बरकरार हैं और अब मामला दिल्ली तक पहुंच गया है.
बता दें कि ऐसे ही पंजाब में भी कांग्रेस के एक धड़े ने कैप्टन सरकार के दौरान नौकरशाही के हावी होने का मुद्दा उठाया था और धीरे-धीरे प्रदेश अध्यक्ष से लेकर सीएम तक बदलने के लिए मोर्चा खोल दिया था. कांग्रेस ने कैप्टन को हटाकर चरणजीत सिहं चन्नी को सीएम बनाया. इसके बावजूद कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हुई और चन्नी के खिलाफ भी कांग्रेस का एक धड़ा मुखर रहा. इसका सियासी खामियाजा कांग्रेस को चुनाव में सत्ता गंवाकर करना पड़ा. वैसे ही सियासी हालत राजस्थान में भी बनते नजर आ रहे हैं.
राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत की बीच सियासी वर्चस्व की जंग जाहिर है. 2020 में सचिन पायलट ने तो अपने समर्थक विधायकों के साथ गहलोत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था और एक महीने तक दिल्ली में डेरा जमाए रखा था. कांग्रेस हाईकमान के हस्ताक्षेप के बाद मामला सुलझा था, लेकिन गहलो-पायलट के रिश्तों में जो सियासी दरार पड़ी है, वो अभी तक भरी नहीं है. इसीलिए समय-समय पर उसकी संकेत मिलते रहते हैं. ऐसे में अब जिस तरह से कांग्रेस विधायकों ने नौकरशाही को लेकर मोर्चा खोला है, उससे अशोक गहलोत के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस इससे कैसे पार पाती है?