
राजस्थान के जयपुर में एक दलित शख्स ने दावा कि उसके साथ कांग्रेस के एक विधायक और डीएसपी ने अभद्रता की. शख्स ने मारपीट के साथ विधायक पर जूते चटवाने का आरोप लगाया और डीएसपी पर उसके ऊपर पेशाब करने का संगीन आरोप लगाया. लेकिन शुरुआती जांच में पेशाब करने व जूते चटवाने का मामला झूठा पाया गया. इस केस के पीछे पुलिस के ही अधिकारी रहे एक शख्स का नाम आया है, जिसने जमीन पर अवैध कब्जे के लिए दलित को आगे कर ड्रामा रचा. आइए जानते हैं पूरा केस...
दरअसल, जयपुर के जमवारामगढ़ में रहने वाले 51 साल के शख्स ने आरोप लगाया था कि करीब डेढ़ माह पहले (30 जून) को वह अपने खेत पर काम कर रहा था. तभी कुछ पुलिसकर्मी उसको और उसके परिवार को पीटते हुए एक कमरे में ले गए. जहां डीएसपी शिव कुमार भारद्वाज ने पहले उसे जमकर लात घूंसे से पीटा और फिर उसके ऊपर पेशाब कर दिया.
शख्स का दावा था कि कुछ देर बाद विधायक मीणा भी कमरे में आ गए और मारपीट के बाद उसे अपने जूते चटवाये. लेकिन अब ये मामला फर्जी पाया गया है. केस पूर्व डीजी नवदीप सिंह और एक जमीन से जुड़ा है.
पेशाब करने व जूते चटवाने का मामला झूठा पाया गया
शुरुआती जांच के अनुसार, यह मामला रिटायर्ड पुलिस अधिकारी नवदीप सिंह की शह पर दर्ज करवाया गया है. उल्लेखनीय है कि नवदीप सिंह का कई वर्षों से जमवारामगढ़ इलाके के गांव टोडालडी आंधी में इस जमीन पर निवास कर रहे स्थानीय कब्जाधारी आदिवासी व दलित समुदाय के लोगों से विवाद चल रहा है. नवदीप ने इन कब्जो का हटाने के लिए अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल करते हुए दूसरे हलके के पटवारी को बुलाकर पत्थरगढ़ी करवानी चाही. उन्होंने पुलिस अधिकारियों पर भी दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन संभावित अवैधानिकता व कानून व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए पुलिस उनके दबाव में नहीं आई.
जमीन पर उनके द्वारा किये गये कृत्यों के संबंध में स्थानीय निवासियों द्वारा अनूसूचित जाति/जनजाति एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज करवाया गया. इस मामले की जांच पुलिस उप अधीक्षक शिव कुमार भारद्वाज द्वारा किया जा रहा था. नवदीप ने इस मामले में तत्काल फाइनल रिपोर्ट (एफआर) देकर मामले को तत्काल बंद करने के लिए अनुचित दबाव डालना प्रारम्भ कर दिया और सोची समझी साजिश के तहत अपने व्यक्ति से 156/3 में मजिस्ट्रेट कोर्ट के जरिए यह मुकदमा दर्ज करवाया.
मालूम हो कि प्रदेश में सरकार द्वारा फ्री एफआईआर रजिस्ट्रेशन की नीति लागू है और यदि यह घटना वास्तव में हुई होती तो परिवादी उसी दिन पुलिस थाने में मामला दर्ज करवा सकता था या थाने में मामला दर्ज नहीं होने पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में जाकर मुकदमा दर्ज करवा सकता था. करीब एक महीने के अन्तराल के बाद मीडिया का ध्यान आकर्षित करने एवं पुलिस पर दबाव बनाने के साथ ही विवादास्पद जमीन पर पुनः कब्जा करने के लिए यह षडयंत्र रचा गया. वहीं, गैर हलके में जाकर गैर कानून तरीके से पत्थरगढ़ी करने के मामले जिला कलेक्टर द्वारा संबंधित पटवारी को सस्पेंड किया जा चुका है.
उल्लेखनीय है कि पूर्व में नवदीप सिंह को उनके द्वारा गैरकानूनी कार्य करने पर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका है. उनके पुलिस मुख्यालय में पोस्टिंग के समय राजकीय यात्रा के दौरान वाहन चालक से मारपीट करने पर चालक द्वारा एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाया गया था. इसी प्रकार नवदीप के द्वारा आर्मी एरिया में कानून हाथ में लेकर जवान के साथ मारपीट करने पर सेना द्वारा भी मुकदमा दर्ज करवाया गया था. बीकानेर पुलिस अधीक्षक व भरतपुर डीआईजी के पद पर रहते भी उनका कार्यकाल विवादास्पद रहा है. उनपर कई आपराधिक केस दर्ज हैं.
संभवतः इसी कारण उन्होंने स्थानीय मीडिया से मुखातिब होने के बजाय दिल्ली में जाकर प्रेस कॉन्फ्रेन्स करवाना उचित समझा. आशंका जताई जा रही है कि उन्होंने यह कॉन्फ्रेन्स विवादास्पद जमीन पर कब्जा करने, पुलिस पर दबाव डालने एवं प्रदेश की छवि खराब करने के लिए की है.