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मुंबई में खेत खरीदना है तो देना पड़ेगा किसानी का प्रूफ, राजस्थान की सस्ती जमीनें खरीद रहे महाराष्ट्र के लोग

राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में सूखा और अकाल का दंश झेल रही बंजर जमीनों की रजिस्ट्रीयां अचानक से चार से पांच गुनी बढ़ गई हैं. जिन बेकार और बंजर पड़ी जमीनें को ख़रीदने के लिए कभी कोई आता नहीं था उसके भी दाम बढ़ने लगे हैं.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
शरत कुमार
  • जयपुर,
  • 30 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:23 PM IST

राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में सूखा और अकाल का दंश झेल रही बंजर जमीनों की रजिस्ट्रीयां अचानक से चार से पांच गुनी बढ़ गई हैं. जिन बेकार और बंजर पड़ी जमीनें को ख़रीदने के लिए कभी कोई आता नहीं था उसके भी दाम बढ़ने लगे हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली, यूपी, बिहार और पंजाब के लोग यहां पहुंचकर बंजर जमीनों को ऊंचे दाम में खरीद रहे हैं. कुछ साल पहले तक 20 से 25 हजार रुपए प्रति बीघा मिलने वाली जमीन के भाव 1.5 से 2 लाख प्रति बीघा हो गए हैं. पूरा मामला फलोदी जिले के घंटियाली तहसील के ऊदट, मीठडिया, मियांकौर गांव का है. यहां की ज़मीनों की बिक्री के लिए स्थानीय लोगों ने मुंबई में प्रॉपर्टी का व्यवसाय शुरू कर दिया है.

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बताया जा रहा है कि 50 से 60 बीघा खारे में ही करीब 1000 से ज्यादा हिस्सेदार है. एजेंटों के जरिए जमीनों की जमकर खरीददारी हो रही है. अब तक हजारों लोग जमीन खरीद चुके हैं. इसमें ज्यादातर जमीन महाराष्ट्र के लोगों के नाम हुई है. मीठडिया गांव के एक खसरे में महज 5 ही स्थानीय किसान बचे हैं. वहीं इस खसरे में 1000 से अधिक किसान अन्य राज्यों के हैं.

महाराष्ट्र में नियम में नहीं तो नहीं खरीद सकते भूमि
महाराष्ट्र राज्य में कृषि भूमि खरीदने के लिए किसान होना जरूरी है. यही कारण है कि महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों के लोग राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों की बंजर भूमि खरीद रहे है. महाराष्ट्र में किसी भी राज्य का किसान भूमि रिकॉर्ड या किसान प्रमाण पत्र की प्रति देकर भूमि खरीद सकता है. राजस्थान में इस तरह की कोई पाबंदी नहीं है.

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पॉवर ऑफ अटॉर्नी से हो रही खरीद फरोख्त
स्थानीय लोग बताते हैं कि अधिकतर जमीनों की खरीद- फरोख्त पॉवर ऑफ अटॉर्नी से हो रही है. खरीद की जाति या वर्ग ना लिखकर धर्म लिखा जा रहा है. इसका कारण यह भी है कि अनुसूचित जाति - जनजाति के व्यक्ति की जमीन दूसरे वर्ग का व्यक्ति नहीं खरीद सकता. बताया जा रहा है कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी के जरिए कंपनी या किसी व्यावसायिक व्यक्ति ने जमीन खरीदी और फिर बाहर के सैकड़ों लोगों को बेच दी. पिछले लम्बे समय से ऊडट, मीठडिया, मियांकौर में जमीनों की खरीद फरोख्त का काम जोर शोर से चल रहा है.

नहीं मिल रहा योजना का लाभ
चिमाणा की सरपंच चुन्नीदेवी का पूरे मामले को लेकर कहना है कि 'चिमाणा की जमीन 5 खसरों में बंटी है. हमारे परिवार के एक सदस्य ने जमीन बेची तो एक खसरे में 278 लोग मालिक बन गए. ऐसे में सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए हमें सहमति पत्र भी नहीं मिल रहे हैं.'

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