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पर्व-त्यौहार

Devshayani Ekadashi 2021: चातुर्मास में क्यों सो जाते हैं भगवान विष्णु? जानें क्या है इसका रहस्य

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST
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आज देवशयनी एकादशी है. आज से चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है. चातुर्मास को बरसात के महीने के रूप में भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में इसे तपस्या का मौसम भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास से भगवान विष्णु गहरी निद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद देवोत्थान एकादशी के दिन निद्रा से उठते हैं. शास्‍त्रों के अनुसार, भगवान व‌िष्‍णु जब तक सोते हैं उतने दिनों तक कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. आइए जानते हैं कि चातुर्मास में भगवान व‌िष्‍णु के सोने का क्या रहस्य है.
 

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प्रलय- ऐसा कहा जाता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु 4 महीने तक सोते हैं. इस दौरान पूरी दुनिया बाढ़ के पानी में डूब जाती है. यह समय वार्षिक प्रलय का होता है जब दुनिया खुद को एक नए सिरे से तैयार करती है. ये प्रलय वर्ष के दूसरे भाग में यानी जुलाई से दिसंबर तक रहती है, जब सूर्य दक्षिण की तरफ चला जाता है. इस समय सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है. कर्क राशि का राशि चिह्न 'केकड़ा' होता है. ऐसा कहा जाता है कि ये केकड़ा सूर्य की रोशनी खा जाता है इसलिए इस अवधि में दिन छोटे होने लगते हैं. 

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पुराणों के अनुसार, इस दौरान दुनिया में अंधकार और उदासी छा जाती है. इस उथल-पुथल को संभालने में विष्णु भगवान थक जाते हैं और विश्राम के लिए चार महीने की गहरी निद्रा में चले जाते हैं. इस अवधि में भगवान विष्णु अपना कार्यभार अपने विभिन्न अवतार को सौंप कर आराम करने जाते हैं. 
 

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पृथ्वी को उपजाऊ बनाने का समय- मान्याताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन से कार्तिक के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन तक सोते हैं. इस अवधि में पृथ्वी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है. जितने दिनों तक भगवान विष्णु निद्रा में रहते हैं, उनके अवतार सागर में संजीवनी बूटी बनाते हैं. इससे दुनिया फिर से उपजाऊ हो जाती है और इसमें एक नया जीवन भर जाता है.
 

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यात्रा में सावधानी- इस अवधि में यात्रा करने से बचने की सलाह दी जाती है. पुराणों के अनुसार, प्राचीनकाल में लगातार यात्रा करने वाले ऋषि-मुनि भी इन चार महीनों में कहीं नहीं आते-जाते थे. ये समय फसल का भी होता है, जब दुनिया फिर से हरी-भरी दिखने लगती है.
 

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प्रार्थना और त्योहारों का समय- इस समय लोग तरह-तरह के त्योहार मनाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि बारिश सही मात्रा में हो, ना ही कम और ना ही ज्यादा. आषाढ़ के इस मौसम के बाद सावन शुरू हो जाता है जिसमें लोग उपवास रखते हैं और पूरी श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं.
 

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भाद्रपद की शुरूआत- सावन खत्म होते ही भाद्रपद की शुरूआत हो जाती है. भगवान विष्णु के निद्राकाल के दौरान यानी इन चार महीनों में तरह-तरह के त्योहार पड़ते हैं. कृष्ण जन्माष्टमी, रक्षाबंधन, गणेश चतुर्थी जैसे त्योहार मनाने के बाद पितृ पक्ष की शुरूआत होती है. इसमें पूर्वजों का मान-सम्मान किया जाता है.
 

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इसी समय पृथ्वी से तमाम असुरों का नाश किया गया था. इस अवधि में भगवान राम रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे जिसके उपलक्ष्य में दिवाली मनाई जाती है. इस दौरान मां लक्ष्मी को भी याद किया जाता है. ये त्योहार हमें याद दिलाते हैं कि दुनिया से बुरा समय अब खत्म होने को है क्योंकि भगवान विष्णु के जागने का समय करीब आ रहा है.
 

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भगवान विष्णु के शयन निद्रा से उठने का समय- ऐसी मान्यता है कि दिवाली के आसपास माता लक्ष्मी का आगमन होने पर भगवान विष्णु ने निद्रा से उठे थे. जागने के बाद भगवान विष्णु ने लक्ष्मी से विवाह किया था. इसलिए इस दिन के बाद से विवाह जैसे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.
 

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