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कालाष्टमी के दिन हुई थी शिव के अंश भैरव की उत्पत्त‍ि

आज अहोई अष्टमी के साथ-साथ कालाष्टमी भी है. आज के दिन हुआ था श‍िव के भैरव अंश का जन्म...

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वंदना भारती
  • नई दिल्ली,
  • 12 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 7:53 AM IST

शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को दोपहर में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है.

पुराणों के अनुसार अंधकासुर दैत्य ने एक बार अपनी क्षमताओं को भूलकर अहंकार में भगवान शिव के ऊपर हमला कर दिया. उसके संहार के लिए शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई . काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं.

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इसलिए शिव की आराधना से पहले भैरव उपासना का विधान बताया गया है. ऐसा कहा जाता है कि उनकी साधना से समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है.

काशी और उज्जैन को भैरव का सिद्ध स्थान माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि भैरव साधना करने वाले व्यक्ति को सांसारिक दुखों से छुटकारा मिल जाता है.

वैसे तो प्रमुख कालाष्टमी का व्रत कालभैरव जयंती के दिन किया जाता है, लेकिन कालभैरव के भक्त हर महीने ही कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर इनकी पूजा और अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं.

ऐसी मान्यता है कि कालभैरव का व्रत रखने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. वर्तमान में भैरव की उपासना बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में प्रचलित हैं.

तंत्र साधना में भैरव के आठ स्वरूप की उपासना की बात कही गई है. ये रूप असितांग भैरव, रुद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाली भैरव, भीषण भैरव संहार भैरव.

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कालिका पुराण में भी भैरव को शिवजी का गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है. इस दिन व्रत रखने वाले साधक को पूरा दिन 'ओम कालभैरवाय नम:' का जाप करना चाहिए.

कालाष्टमी व्रत विधि

नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए. इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रिकी पूजा का विधान है.

इस दिन शक्ति अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन करना चाहिए. आज के दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए. कालभैरो की सवारी कुत्ता है अतः इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है.

क्यों रखा जाता है कालाष्टमी का व्रत

कथा के अनुसार एक दिन भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठ होने का विवाद उत्पन्न हुआ. विवाद के समाधान के लिए सभी देवता और मुनि शिव जी के पास पहुंचे. सभी देवताओं और मुनि की सहमति से शिव जी को श्रेष्ठ माना गया. परंतु ब्रह्मा जी इससे सहमत नहीं हुए. ब्रह्मा जी, शिव जी का अपमान करने लगे.

अपमान जनक बातें सुनकर शिव जी को क्रोध आ गया जिससे कालभैरव का जन्म हुआ. उसी दिन से कालाष्टमी का पर्व शिव के रुद्र अवतार कालभैरव के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने लगा.

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कालाष्टमी व्रत फल

कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं काल उससे दूर हो जाता है. इसके अलावा व्यक्ति रोगों से दूर रहता है और उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है.

इस मंत्र का करें जाप

शिव पुराण में कहा है कि भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं इसलिए आज के दिन इस मंत्र का जाप करना फलदायी होता है.

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,

भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

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