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Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2025: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है आज, जानें पूजन विधि और चंद्रोदय का समय

Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2025: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि पर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने और व्रत रखने से भक्तों पर भगवान गणेश की विशेष कृपा बनती है. हिंदू धर्म में फाल्गुन माह की चतुर्थी तिथि को बेहद शुभ माना जाता है, इस दिन भगवान गणेश के 32 रुपों में से उनके छठे स्वरूप की पूजा की जाती है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2025 द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2025
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 7:39 AM IST

Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2025: आज द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है और इस दिन भगवान गणेश की उपासना की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. द्विजप्रिय शब्द भगवान गणेश को संदर्भित करता है, जो विशेष रूप से द्विजों या ब्राह्मणों के प्रिय माने जाते हैं. जबकि, संकष्टी का अर्थ है उस दिन से है जो बाधाओं या समस्याओं को दूर करता है और जो भक्तों को कठिनाइयों को दूर करने में मदद करने के लिए भगवान गणेश की शक्ति का प्रतीक है. 

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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2025 Shubh Muhurat)

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि की शुरुआत 15 फरवरी यानी कल रात 11 बजकर 52 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 17 फरवरी यानी कल मध्यरात्रि 2 बजकर 15 मिनट पर होगा. 

संकष्टी चतुर्थी पर आज चंद्रोदय रात 9 बजकर 38 मिनट पर होगा. 

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि (Dwijapriya Sankashti Chaturthi Pujan Vidhi)

इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और भगवान गणेश की पूजा करते हैं. इस दिन भक्त गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ भी करते हैं, जो गणेश को समर्पित एक शक्तिशाली संस्कृत प्रार्थना है. कई लोग भगवान गणेश का आशीर्वाद पाने के लिए ओम गं गणपतये नमः जैसे मंत्रों का भी जाप करते हैं. संकष्टी चतुर्थी विशेष रूप से चंद्रमा से जुड़ी हुई है और रात में चंद्रमा को देखने के बाद व्रत तोड़ने की प्रथा है. परंपरागत रूप से, चंद्रमा का भगवान गणेश की ऊर्जा और आशीर्वाद के साथ एक विशेष संबंध माना जाता है, क्योंकि यह जीवन की चुनौतियों के बीच शीतलता और शांति का प्रतीक है. 

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भक्त अक्सर इस दिन भगवान गणेश का पंसदीदा प्रसाद मोदक चढ़ाते हैं. साथ ही, इस दिन घरों और मंदिरों में एक विशेष तरह की पूजा की जाती है. भक्त भगवान गणेश से मार्गदर्शन और ज्ञान के लिए प्रार्थना करते हैं, साथ ही भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रयासों में सफलता की कामना करते हैं. हालांकि, द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी हर साल अत्यधिक शुभ मानी जाती है, चाहे वह किसी भी सप्ताह के दिन पड़े.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, एक शहर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसन के घर गई, जहां वह संकष्टी चतुर्थी की पूजा कर कथा कह रही थी.साहूकार की पत्नी ने कथा सुनने के बाद घर आकर अगले चतुर्थी पर पूरी विधि-विधान के साथ पूजा कर उपवास रखा. भगवान गणेश के आशीर्वाद से साहूकार दंपत्ति को पुत्र की प्राप्ति हुए.

साहूकार का बेटा बड़ा हो गया, तो साहूकारनी ने भगवान गणेश के फिर कामना की, कि उसके पुत्र का विवाह तय हो जाए, तो वह व्रत रखेगी, और प्रसाद चढ़ाएगी, परंतु बेटे का विवाह तय होने के बाद साहूकारनी प्रसाद चढ़ाना और व्रत करना भूल गई.

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जिससे भगवान गणेश ने नाराज़ होकर साहूकार के बेटे को शादी के दिन बंधक बनाकर एक पीपल के वृक्ष से बांध दिया. कुछ समय के बाद पीपल के पेड़ के पास से एक अविवाहित कन्या गुजर रही थी, तभी उसने साहूकार के बेटे की आवाज़ सुनी और अपनी मां को बताया. यह सारी बात जानने के बाद साहूकार की पत्नी ने भगवान गणेश से क्षमा मांगी, प्रसाद चढ़ाकर उपवास रखा, और बेटे के वापस मिलने की कामना करने लगी. भगवान गणेश ने साहूकार के बेटे को वापस लौटा दिया, और बड़े धूम-धाम से साहूकार ने अपने बेटे का विवाह किया. तभी से पूरे नगर में सभी लोग चतुर्थी व्रत कर भगवान गणेश की उपासना करने लगे.
 

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