
Eid Milad-un- Nabi 2024: ईद मिलाद-उन-नबी को ईद-ए-मिलाद के नाम से भी जाना जाता है. इस्लाम धर्म में ईद मिलाद-उन-नबी का त्योहार पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. ईद मिलाद-उन-नबी इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाया जाने वाला एक खास इस्लामिक त्योहार है. इस दिन मुसलिम समुदाय में विशेष प्रार्थनाएं, समारोह और जश्न मनाए जाते हैं. लोग मस्जिदों में जाकर प्रार्थना करते हैं, और पैगंबर मुहम्मद साहब की शिक्षाओं को याद करते हैं. ईद मिलाद-उन-नबी इस बार 15 सितंबर की शाम से लेकर 16 सितंबर की शाम तक मनाया जाएगा.
ईद मिलाद-उन-नबी का महत्व
ईद मिलाद-उन-नबी का महत्व इस्लामिक धर्म में बहुत अधिक है. यह त्योहार पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के जन्मदिन के अवसर के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें इस्लामिक धर्म का आखिरी पैगंबर माना जाता है. साथ ही, यह त्योहार इस्लामिक लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है और उन्हें पैगंबर की शिक्षाओं को याद करने का अवसर प्रदान करता है. इसके अलावा, यह त्योहार मुसलिम लोगों को समाज सेवा के लिए प्रेरित करता है और गरीबों, जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करता है.
इस दिन रात भर प्राथनाएं होती हैं और जगह-जगह जुलूस भी निकाले जाते हैं. घरों और मस्जिदों में कुरान पढ़ी जाती है. इस दिन गरीबों को दान भी किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ईद मिलाद-उन-नबी के दिन दान और जकात करने से अल्लाह खुश होते हैं.
ईद मिलाद-उन-नबी का इतिहास- पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म
ईद मिलाद-उन-नबी का इतिहास इस्लामिक धर्म के पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के जन्म से जुड़ा हुआ है. हजरत मुहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था. सुन्नी लोग पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के जन्म को रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाते हैं जबकि, शिया लोग इस त्योहार को 17वें दिन मनाते हैं. यह दिन न केवल पैगम्बर मुहम्मद के जन्म का प्रतीक है, बल्कि उनकी मृत्यु के शोक में भी इस दिन को याद किया जाता है.
पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था. जब वह 6 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई. मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे. इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था. अल्लाह ने सबसे पहले पैगंबर हजरत मोहम्मद को ही पवित्र कुरान अता की थी. इसके बाद ही पैगंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाया.