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Eid ul Azha: कब है बकरीद, जानें इस दिन क्यों दी जाती है जानवर की कुर्बानी?

इस्लाम धर्म में बकरीद के त्योहार का बड़ा महत्व है. बकरीद पर लोग नमाज पढ़ने के बाद जानवरी की कुर्बानी देते हैं. इसके बाद दोस्तों-रिश्तेदारों को ईद की मुबारकबाद दी जाती है.

इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है. इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 3:19 PM IST

  • मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करते हैं.
  • इस दिन बकरा, भेड़ या ऊंट जैसे किसी जानवर की कुर्बानी दी जाती है.

मुस्लिम समुदाय का पवित्र त्योहार ईद-उल-अजहा आ चुका है. रमजान का महीने खत्म होने के 70 दिन के बाद बकरीद का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन इस्लाम धर्म के मानने वाले नमाज पढ़ने के बाद जानवर की कुर्बानी देते हैं. हालांकि बकरीद के दिन-तारीख को लेकर भ्रम है. कुछ लोग कह रहे हैं कि बकरीद का त्योहार 31 जुलाई को है, जबकि कुछ इसे 1 अगस्त को मनाएंगे.

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इस्लामिक चांद कैलेंडर के मुताबिक, बकरीद का त्योहार पूरी दुनिया में 31 जुलाई को ही मनाया जाएगा. हालांकि भारत में चांद देखने के बाद ही शनिवार, 1 अगस्त को ही बकरीद मनाई जाएगी. इस्लाम धर्म में बकरीद के त्योहार का बड़ा महत्व है. बकरीद पर लोग नमाज पढ़ने के बाद जानवरी की कुर्बानी देते हैं. इसके बाद दोस्तों-रिश्तेदारों को ईद की मुबारकबाद दी जाती है.

मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करते हैं. हालांकि इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है. इसमें बकरा, भेड़ या ऊंट जैसे किसी जानवर की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी के वक्त ध्यान रखना होता है कि जानवर को चोट ना लगी हो और वो बीमार भी ना हो. आइए अब आपको बताते हैं कि बकरीद पर आखिर कुर्बानी क्यों दी जाती है.

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बकरीद पर क्यों दी जाती है कुर्बानी?

इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें. हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे ज्यादा प्यारे थे.

अल्लाह के हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम ने ये बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई. बता दें, हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी. जिसके बाद उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था. लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया.

हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी. लेकिन जब उन्होंने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा हुआ है. जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई.

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