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Makar Sankranti 2025: कब है मकर संक्रांति का पर्व? जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Makar Sankranti 2025: हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बड़ा महत्व है. इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी. इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जिसका अर्थ है सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ता है. साथ ही, मकर संक्रांति से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है. पौष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 7:41 AM IST

Makar Sankranti 2025: सूर्य का किसी राशि विशेष राशि में भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है. सूर्य हर माह में राशि का परिवर्तन करते हैं. साल में बारह संक्रांतियां होती हैं और दो संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति. सूर्य जब मकर राशि में जाता है तब मकर संक्रांति होती है.

मकर संक्रांति से वातावरण में बदलाव शुरू हो जाता है क्योंकि इस संक्रांति से अग्नि तत्व की शुरुआत हो जाती है. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है. इस दिन किए गए जाप और दान का फल अनंत गुना होता है. इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी. आइए आपको मकर संक्रांति के बारे में विस्तार से बताते हैं. 

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मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त (Makar Sankranti 2025 Shubh Muhurat)

उदयातिथि के अनुसार, मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी 2025 को ही मनाई जाएगी. इस दिन सूर्य सुबह 8 बजकर 41 मिनट मकर राशि में प्रवेश करेंगे. हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति पुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा और महापुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा.

मकर संक्रांति पर दान करना होता है शुभ

मकर संक्राति के पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है. इस दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है. इस दिन किया गया दान अक्षय फलदायी होता है. शनि देव के लिए प्रकाश का दान करना भी बहुत शुभ होता है. पंजाब, यूपी, बिहार और तमिलनाडु में ये नई फसल काटने का समय होता है. इसलिए किसान इस दिन को आभार दिवस के रूप में भी मनाते हैं. इस दिन तिल और गुड़ की बनी मिठाई बांटी जाती है. इसके अलावा मकर संक्रांति पर कहीं-कहीं पतंग उड़ाने की भी परंपरा है.

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मकर संक्रांति का महत्व 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं. चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है. लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है. एक अन्य कथा के अनुसार, असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है. बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था. तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा.

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