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Masik Durgashtami 2023: मासिक दुर्गाष्टमी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मां दुर्गा की आरती

मासिक दुर्गाष्टमी का त्योहार हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है. इस दिन श्रद्धालु दुर्गा माता की पूजा करते हैं और उनके लिए पूरे दिन का व्रत करते हैं। माना जाता है कि जो भी भक्त इस दिन श्रद्धा भाव के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं उसकी हर मनोकामना पूरी होती है.

मासिक दुर्गाष्टमी मासिक दुर्गाष्टमी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:11 AM IST

शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हर महीने मासिक दुर्गाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन भक्त मां दुर्गा की पूजा करते हैं और व्रत भी रखते हैं. इस दिन विधि विधान के साथ पूजा करने और व्रत रखने से मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है. पौष माह में मासिक दुर्गाष्टमी का त्योहार आज 27 फरवरी 2023 को मनाया जा रहा है. 

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मासिक दुर्गाष्टमी शुभ मुहूर्त (Masik Durgashtami 2023 Shubh Muhurat)

फाल्गुन, शुक्ल अष्टमी
प्रारम्भ - फरवरी 27, सुबह 12 बजकर 58 मिनट से शुरू
समाप्त - फरवरी 28, सुबह 02 बजकर 21 मिनट पर खत्म

 
दुर्गाष्टमी की पूजा विधि (Masik Durgashtami Puja Vidhi)

पूरे विधि विधान से दुर्गाष्टमी पर व्रत और पूजन करने से मनोवांछित फल मिलता है.  दुर्गाष्टमी के दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें. लकड़ी के पाट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें. माता को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं. धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और मां दुर्गा की आरती करें. 

मां दुर्गा की आरती (Maa Durga Arti)

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी.
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को.
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी.
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै.
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
जय अम्बे गौरी 

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केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी.
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
जय अम्बे गौरी 

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती.
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
जय अम्बे गौरी  

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती.
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी  

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे.
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी  

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी.
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी  

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ.
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
जय अम्बे गौरी  

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता.
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
जय अम्बे गौरी  

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी.
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी  

कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती..
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी 

श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै.
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
जय अम्बे गौरी  

दुर्गाष्टमी कथा (Masik Durgashtam Katha)

शास्त्रों के अनुसार, सदियों पहले पृथ्वी पर असुर बहुत शक्तिशाली हो गए थे और वे स्वर्ग पर चढ़ाई करने लगे. उन्होंने कई देवताओं को मार डाला और स्वर्ग में तबाही मचा दी. इन सबमें सबसे शक्तिशाली असुर महिषासुर था. भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा को बनाया. हर देवता ने देवी दुर्गा को विशेष हथियार प्रदान किया. इसके बाद आदिशक्ति दुर्गा ने पृथ्वी पर आकर असुरों का वध किया. हिषासुर की सेना के  साथ युद्ध करके मां दुर्गा ने अंत में उसे मार दिया. उसी दिन से दुर्गाष्टमी के पर्व की शुरुआत हुई.

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