
Nirjala Ekadashi Vrat Kab Hai: ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी मनाई जाती है. साल में कुल 24 एकादशी आती हैं. इनमें निर्जला एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. ऐसी मान्यताएं हैं कि निर्जला एकादशी पर निर्जला उपवास रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है. यह साल की सबसे बड़ी एकादशी होती है. इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई को रखा जाएगा.
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के बलशाली योद्धा भीम ने भी यह व्रत रखा था. दरअसल, 10 हजार हाथियों के समान ताकत रखने वाले भीम को बहुत भूख लगती थी. वह अपनी भूख को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकते थे. भीम जानते थे कि व्रत-उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन भीम के लिए ऐसा कोई व्रत रखना संभव नहीं था.
तब श्रीकृष्ण के कहने पर भीम ने एकमात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखा था. भूख बर्दाश्त ना होने पर शाम होते ही वो मूर्छित हो गए. चूंकि इस एकादशी पर भीम ने व्रत रखा था, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा गया है. ऐसा कहते हैं कि इस दिन बिना जल के उपवास रखने से साल की सारी एकादशियों का पुण्य फल मिलता है.
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है. इसके अलावा, इस दिन उपवास करने से अच्छी सेहत और सुखद जीवन का वरदान प्राप्त होता है. इस दिन व्रत करने से पापों का नाश होता है और मन शुद्ध होता है. इस एकादशी को त्याग और तपस्या की सबसे बड़ी एकादशी माना जाता है.
निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि की शुरुआत 30 मई को दोपहर में 01 बजकर 07 मिनट पर होगी और इसका समापन 31 मई को दोपहर को 01 बजकर 45 मिनट पर होगा. उदिया तिथि के चलते यह निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई को रखा जाएगा. निर्जला एकादशी का पारण 01 जून को किया जाएगा. पारण का समय सुबह 05 बजकर 24 मिनट से सुबह 08 बजकर 10 मिनट तक है.
व्रत रखने की विधि
निर्जला एकादशी के दिन सवेरे-सवेरे स्नानादि के बाद सूर्य देवता को जल अर्पित करें. इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण की पूजा करें. इन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें. इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें. व्रत का संकल्प लेने के बाद अगले दिन सूर्योदय होने तक जल की एक बूंद भी ग्रहण ना करें. इसमें अन्न और फलाहार का भी त्याग करना होगा. अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को स्नान करके फिर से श्रीहरी की पूजा करने के बाद अन्न-जल ग्रहण करें और व्रत का पारण करें.