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Raksha Bandhan Date 2022: कब है रक्षा बंधन? राखी बांधने के लिए बहनों को मिलेगा इतना समय

Raksha Bandhan Date 2022: रक्षाबंधन का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाते हैं, इसलिए इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है. 2022 में रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त, गुरुवार को पड़ रहा है. पढ़िए राखी बांधने का शुभ मुहूर्त.

Raksha Bandhan date & timing (Photo Credit: Getty Images) Raksha Bandhan date & timing (Photo Credit: Getty Images)
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी,
  • 30 जून 2022,
  • अपडेटेड 10:20 AM IST
  • 11 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा राखी का त्योहार
  • रक्षाबंधन के दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे

Kab Hai Raksha Bandhan In 2022: रक्षा बंधन का पर्व भाई-बहन के बीच अटूट प्रेम और पावन रिश्ते को प्रदर्शित करता है. रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र, राखी या मौली बांधकर उनकी दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. वहीं दूसरी तरफ भाई भी अपनी बहनों को उपहार देकर ताउम्र उनकी रक्षा का वचन देते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षा बंधन का त्योहार हर साल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. साल 2022 में रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त, गुरुवार को पड़ रहा है. श्रावण मास की पूर्णिमा को कजरी पूनम भी कहा जाता है.

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रक्षा बंधन 2022 शुभ मुहूर्त (Raksha Bandhan 2022 Shubh Muhurat)

रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त के बारे में वाराणसी के ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद बताते हैं कि हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त , गुरुवार के दिन पूर्वाह्न 10 बजकर 38 मिनट से शुरू होकर उसके अगले दिन 12 अगस्त, शुक्रवार को सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि में त्योहार मनाने के नियमानुसार, रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त के दिन मनाया जाएगा. 11 अगस्त को बहनें अपने भाइयों को सुबह 8 बजकर 51 मिनट से लेकर रात्रि 9 बजकर 19 मिनट के शुभ मुहूर्त के बीच राखी बांध सकती हैं. 

रक्षाबंधन 2022 शुभ योग

रक्षाबंधन के दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे और घनिष्ठा नक्षत्र के साथ शोभन योग भी लगेगा. वहीं, भद्रा काल को छोड़कर राखी बांधने के लिए पूरा 12 घंटे का समय मिलेगा. बता दें कि इस तिथि पर भद्रा काल और राहुकाल का विशेष महत्व है.  भद्रा काल और राहुकाल में राखी नहीं बांधी जाती है. क्योंकि इस काल में शुभ कार्य वर्जित माना जाता है. कहा जाता है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से उसमें सफलता नहीं मिलती है. 

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ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद

रक्षा बंधन से जुड़ी कथाएं

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब प्रभु श्रीहरि ने वामन अवतार लेकर राजा बलि का सारा राज्य तीन पग में ही मांग लिया था और राजा बलि को पाताल लोक में रहने को कहा, तब राजा बलि ने स्वयं श्रीहरि को पाताल लोक में अतिथि के रूप में उनके साथ चलने का आग्रह किया. इस पर श्रीहरि उन्हें मना नहीं कर पाए और उनके साथ पाताल लोक चले गए. लेकिन बहुत वक्त गुजरने के बाद भी जब प्रभु नहीं लौटे तो माँ लक्ष्मी को चिंता होने लगी. अन्ततः नारद जी ने मां लक्ष्मी को राजा बलि को अपना भाई बनाकर और फिर उनसे तोहफा स्वरूप श्रीहरि को मांगने के लिए कहा. माता लक्ष्मी ने वैसा ही किया और राजा बलि के साथ अपना संबंध गहरा बनाने के लिए उनके हाथ में रक्षासूत्र बांधा. 

एक लोककथा के अनुसार मृत्यु के देवता यम करीब 12 वर्षों तक अपनी बहन यमुना के पास नहीं गए. इस पर यमुना को काफी दुःख हुआ. बाद में माँ गंगा के परामर्श पर यम अपनी बहन यमुना के पास गए. भाई के आने से यमुना को काफी खुशी प्राप्त हुई. उन्होंने यम का काफी ख्याल रखा. इससे यम काफी प्रसन्न हुए. आशीर्वाद स्वरूप उन्होंने यमुना के बार बार यम से मिलने की इच्छा को पूर्ण भी कर दिया. इससे यमुना हमेशा के लिए अमर हो गई.

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महाभारत के एक प्रसंग के मुताबिक, राजसूय यज्ञ के दौरान जब श्रीकृष्ण ने मगध नरेश शिशुपाल का वध किया तब उनके हाथ पर भी चोट लग गई थी. श्रीकृष्ण की चोट को देखकर द्रौपदी ने तुरंत अपने लिबास का एक टुकड़ा फाड़कर प्रभु के हाथ पर बांध दिया. उसी दौरान भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की सदैव रक्षा करने का वचन दिया. इसी कारण जब दुःशासन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी लंबी करके उनकी इज्जत की रक्षा की थी.

राखी को लेकर एक ऐसा ही प्रसंग मध्यकालीन भारतीय इतिहास में देखने को मिलता है. उस समय चित्तौड़ की गद्दी पर रानी कर्णावती आसीन थीं. वह एक विधवा रानी थीं. चित्तौड़ की सत्ता को कमजोर हाथों में देखकर गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने उनपर हमला कर दिया. ऐसे में रानी अपने राज्य को महफूज़ रखने में असमर्थ होने लगी. तब उन्होंने चित्तौड़ की रक्षा के लिए एक राखी मुग़ल सम्राट हुमायूं को भेजी. हुमायूं ने भी रानी कर्णावती की रक्षा हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी को चित्तौड़ भेजा. अन्ततः बहादुर शाह की सेना को पीछे हटना पड़ा था.

 

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