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Sankashti Chaturthi 2024: विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी है आज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Sankashti Chaturthi 2024: संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी. इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं. कोई भी व्यक्ति अगर संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणपति की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करें, तो उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं.

संकष्टी चतुर्थी 2024 संकष्टी चतुर्थी 2024
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:18 AM IST

Sankashti Chaturthi 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश के लिए व्रत रखा जाता है. इस दिन जो लोग भगवान गणेश की पूजा करते हैं उन्हें जीवन में सफलता और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा करने से घर से हर प्रकार की नकारात्मक प्रभाव और ऊर्जा खत्म हो जाती है. इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं.

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संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Sankashti Chaturthi 2024 Shubh Muhurat)

आश्विन मास की चतुर्थी तिथि 20 सितंबर यानी कल रात 9 बजकर 15 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 21 सितंबर यानी आज शाम 6 बजकर 13 मिनट पर होगा. 

श्रीगणेश की पूजा का समय- सुबह 7 बजकर 40 मिनट से सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक

शाम की पूजा- शाम 6 बजकर 19 मिनट से रात 7 बजकर 47 मिनट तक

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. फिर साफ सुथरे वस्त्र धारण करें. उसके बाद पूजा घर के ईशान कोण में एक चौकी रखें. उसपर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें. फिर, गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें.  

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पूजन विधि शुरू करते हुए गणेश जी को जल, दूर्वा, अक्षत, पान अर्पित करें. गणेश जी से अच्छे जीवन की कामना करें और इस दौरान “गं गणपतये नमः:” मंत्र का जाप करें.  प्रसाद में गणेश जी को मोतीचूर के लड्डू, बूंदी या पीले मोदक चढ़ाएं. आखिरी में, पूजन संपन्न करते हुए त्रिकोण के अगले भाग पर एक घी का दीया, मसूर की दाल और साबुत मिर्च रखें. पूजा संपन्न होने पर दूध, चंदन और शहद से चंद्रदेव को अर्घ्य दें. फिर प्रसाद ग्रहण करें.

संकष्टी चतुर्थी की रोचक कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश का सृजन किया था और एक दिन बाल्य अवस्था में उन्हें दरवाजे पर बैठाकर खुद स्नान के लिए चली गईं. माता पार्वती ने जाते वक्त भगवान गणेश से कहा कि वे किसी को भी अंदर आने ना दें लेकिन इस दौरान भगवान शिव वहां पहुंच गए. चूंकि, माता पार्वती ने गणेश जी को आदेश दिया था कि किसी को भी अंदर नहीं दिया जाए इसलिए गणेश जी ने भगवान शिव को अंदर नहीं जाने दिया और द्वार पर ही उन्हें रोक दिया. इस बात से शिव जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया. 

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स्नान करने के पश्चात जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो उनको बहुत दुख हुआ. जिसके बाद माता पार्वती का दुख दूर करने के लिए शिवजी ने एक नवजात हाथी का सिर गणेश जी के शरीर पर लाकर लगा दिया. कहते हैं उस वक्त गणेश जी का कटा हुआ सिर चंद्रमा पर जा कर गिरा था. मान्यता है कि चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा की शुरुआत इसी वजह से हुई. संकष्टी चतुर्थी के दिन भी चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना गया है.

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