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Shattila Ekadashi 2025: कब है माघ मास की षठतिला एकादशी? जानें पूजन मुहूर्त, विधि और कथा

Shattila Ekadashi 2025: षठतिला एकादशी का व्रत 25 जनवरी फरवरी को रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है. षठतिला एकादशी माघ मास की सबसे खास एकादशी मानी जाती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा में तिल का भोग लगाना चाहिए.

षठतिला एकादशी 2025 षठतिला एकादशी 2025
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:25 AM IST

Shattila Ekadashi 2025: माघ मास भगवान विष्णु का महीना माना जाता है और एकादशी की तिथि विश्वेदेवा की तिथि होती है. श्रीहरि की कृपा के साथ सारे देवताओं की कृपा का ये अद्भुत संयोग केवल षठलिता एकादशी को ही मिलता है. इस दिन दोनों की ही उपासना से मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं. इस दिन कुंडली के दुर्योग भी नष्ट किए जा सकते हैं. इस बार षठतिला एकादशी का व्रत 25 जनवरी, शनिवार को रखा जाएगा. 

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षठतिला एकादशी पर ग्रहों का संयोग

षठतिला एकादशी पर चंद्रमा जल तत्व की राशि वृश्चिक में होगा, चंद्र और मंगल का संबंध भी बना रहेगा. इस दिन सूर्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में होगा, जिससे स्नान और दान विशेष लाभकारी होगा. इस बार के स्नान से शनि की समस्याएं कम होंगी, साथ ही कुंडली के दुर्योग भी होंगे. 

षठतिला एकादशी शुभ मुहूर्त (Shattila Ekadashi 2025 Shubh Muhurat)

माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षठतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है. षठतिला एकादशी की तिथि 24 जनवरी को शाम 7 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 25 जनवरी को रात 8 बजकर 31 मिनट पर होगा. 

षठतिला एकादशी का पारण 26 जनवरी को सुबह 7 बजकर 12 मिनट से लेकर 9 बजकर 21 मिनट तक होगा. 

षटतिला एकादशी जा विधि

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प्रात: काल उठकर भगवान विष्णु की पूजा करें. दिन भर व्रत करने के बाद रात में भगवान विष्णु की आराधना करें और फिर हवन करें. अगले दिन द्वादशी तिथि पर प्रात: काल उठकर स्नान करें. फिर, साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु को भोग लगाएं. अंत में पंडितों को भोजन कराएं, उसके बाद अन्न जल ग्रहण करें.

षटतिला एकादशी की कथा

एक समय की बात है, एक एक ब्राह्मण की स्त्री अपने पति की मृत्यु के उपरान्त अपना सारा वक्त भगवान विष्णु की अराधना में लगा रही थी. एक बार उसने पूरे महीने भगवान विष्णु की उपासना की, परंतु दान-पुण्य ना करने से उसका सारा पुण्य अधूरा ही रह गया. ऐसा देख लक्ष्मीपति भगवान विष्णु स्वंय उसकी कुटिया में एक भिक्षुक का वेश धारणकर पहुंचे, और उन्होंने स्त्री से भिक्षा मांगी, तब उसने भिक्षुक के हाथ में एक मिट्टी का ढेला थमा दिया.

यह देख भगवान विष्णु वहां से अपने बैकुंठ वापस लौट आए. कुछ समय बाद उस स्त्री की मृत्यु हो गई, और वह लोक पहुंची, तो अपनी कुटिया खाली देख घबराकर भगवान विष्णु के पास पहुंची, और कहने लगी, हे प्रभु…मैंने पूरा जीवन आपकी पूजा उपासना की फिर भी मुझे खाली कुटिया क्यों मिली, तब भगवान विष्णु ने उसे अन्न दान ना करने और उनके हाथ पर मिट्टी का ढेला देने की बात बताइए, और कहा कि जब देव कन्या तुमसे मिलने आएं, तो तुम तभी अपना द्वार खोलना जब वह तुम्हें षटतिला एकादशी व्रत की विधि बताएं.

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भगवान विष्णु के बताए अनुसार स्त्री ने ऐसा ही किया, जब देव कन्या उससे मिलने आईं, तो उसने उनसे षटतिला एकादशी के व्रत के बारे में जानकारी मांगी, और फिर पूरे विधि-विधान के साथ षटतिला एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसकी कुटिया में  अन्न भर गया. इसलिए ऐसी मान्यता है, कि  जो भी व्यक्ति षटतिला एकादशी का व्रत कर तिल और अन्न  दान करता है, उसे वैभव और मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है.
 

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