
उत्तराखंड स्थित कुमाऊं (Uttarakhand Kumaon) क्षेत्र के बागेश्वर (Bageshwar) में खड़ी होली यानी रंगों की होली फाल्गुन एकादशी से शुरू हो जाती है. इसमें एकादशी व द्वादशी को होल्यार अपने अपने गांव में होली गायन करते हैं. वहीं इसके बाद त्रयोदशी को शिव मंदिरों में और चतुर्दशी को कत्यूर घाटी में स्थित माता के मंदिर में दूर दूर से होल्यार पहुचते हैं. इसी सिलसिले में यहां बड़ी संख्या में भक्त मंदिर पहुंचे और अबीर गुलाल चढ़ाया.
माता भ्रामरी (Mata Kot Bhramari) का मंदिर कुमाऊं के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक माना जाता है. कत्यूर क्षेत्र के लोग माता को कुलदेवी भी कहते हैं. बागेश्वर में फाल्गुन चतुर्दशी के दिन प्रत्येक गांव की होली नगाड़ों व निशाण लेकर माता भ्रामरी के मंदिर पहुंचती है.
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बागेश्वर के गरुड़ तहसील में स्थित माता भ्रामरी के मंदिर में सुबह छह बजे से शाम तक अलग अलग गांव के होल्यार भजन व जयकारे लगाते हुए पहुंचे और माता के दरबार में होली गायन किया. इसके अलावा श्रद्धालुओं ने माता को अबीर गुलाल भी चढ़ाया. लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर में पहुंचकर सच्चे मन से माता की आराधना करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. होली के मौके पर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर त्योहार मनाया.