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Vat Savitri Vrat Date 2022: इस दिन रखा जाएगा वट सावित्री व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि

Vat Savitri Vrat Date & Shubh Muhurat 2022: ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है. महिलाएं इस दिन पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में वट सावित्री के व्रत का विशेष महत्व है.

Vat Savitri Vrat Date & Shubh Muhurat 2022 (Photo Credit: AP) Vat Savitri Vrat Date & Shubh Muhurat 2022 (Photo Credit: AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 मई 2022,
  • अपडेटेड 6:30 PM IST
  • सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं व्रत
  • इस दिन की जाती है वट वृक्ष की पूजा

Vat Savitri Vrat Date & Shubh Muhurat 2022:  हिंदू धर्म में कई व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं इन्हीं में से एक वट सावित्री का व्रत है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. इस साल वट सावित्री का व्रत 30 मई 2022 को सोमवार के दिन रखा जाएगा. इसी दिन सोमवती अमावस्या और शनि जयंती भी है. आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, सामग्री और महत्व.

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वट सावित्री मुहूर्त 2022 (Vat Savitri 2022 Shubh Muhurat)

वट सावित्री व्रत सोमवार, मई 30, 2022 को

अमावस्या तिथि प्रारम्भ - मई 29, 2022 को शाम 02 बजकर 54 मिनट से शुरू
अमावस्या तिथि समाप्त - मई 30, 2022 को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर खत्म 

वट सावित्री पूजन सामग्री (Vat Savitri Pujan Samagri)

बांस का पंखा, अगरबत्ती, लाल व पीले रंग का कलावा, पांच प्रकार के फल, बरगद का पेड़, चढ़ावे के लिए पकवान, हल्दी, अक्षत, सोलह श्रृंगार, कलावा, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए साफ सिंदूर, लाल रंग का वस्त्र आदि.

वट सावित्री पूजा विधि (Vat Savitri Puja Vidhi)

- महिलाएं इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें. 

- स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें और पूरा श्रृंगार करें. 

- इसके बाद बांस की टोकरी में पूजा का सारा सामान रखें. इस दिन पहले घर पर पूजा करें. पूजा करने के बाद सूर्यदेव को लाल फूल और तांबे के लोटे से अर्घ्य दें. 

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- इसके बाद आपके घर के पास जो भी बरगद का पेड़ हो, वहां जाएं.

-  वट वृक्ष की जड़ पर जल चढ़ाएं. 

- फिर देवी सावित्री को कपड़े और श्रृंगार का सामान अर्पित करें. इसके बाद वट वृक्ष को फल और फूल अर्पित करें. 

-  इसके बाद कुछ देर वट वृक्ष पर पंखे से हवा करें.

- रोली से वट वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करें और वट सावित्री की व्रत कथा सुनें.

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री का व्रत सौभाग्यवती महिलाओं का मुख्य पर्व है.  इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की कामना करती हैं. इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज के साथ पूजा की जाती है. माना जाता है कि वट सावित्री की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और माता लक्ष्मी का वास होता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे. इसलिए सभी सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं. 

वट सावित्री व्रत कथा- 

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा राज्य करते थे. उनकी कोई संतान नहीं थी. राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया. जिसके कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई. उसका नाम उन्होंने सावित्री रखा. विवाह योग्य होने पर सावित्री को वर खोजने के लिए कहा गया तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में वरण किया. यह बात जब नारद जी को मालूम हुई तो वे राजा अश्वपति से बोले कि सत्यवान अल्पायु हैं. एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी. नारद जी की बात सुनकर उन्होंने पुत्री को समझाया,पर सावित्री सत्यवान को ही पति रूप में पाने के लिए अडिग रही.

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सावित्री के दृढ़ रहने पर आखिर राजा अश्वपति ने सावित्री और सत्यवान का विवाह कर दिया. सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही. नारद जी ने मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को चली गई. वन में सत्यवान ज्योंहि पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी. वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया. थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक दूतों के साथ हाथ में पाश लिए यमराज खड़े हैं. यमराज सत्यवान के अंगुप्रमाण जीव को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए.

सावित्री को आते देख यमराज ने कहा, ‘हे पतिपरायणे! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया. अब तुम लौट जाओ.’ सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए. यही सनातन सत्य है.’

यमराज ने सावित्री की धर्मपरायण वाणी सुनकर वर मांगने को कहा. सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें.’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा, किंतु सावित्री उसी प्रकार यम के पीछे चलती रही. यमराज ने उससे पुन: वर मांगने को कहा.

सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए.’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री अडिग रही. सावित्री की पति भक्ति व निष्ठा देखकर यमराज पिघल गए. उन्होंने एक और वर मांगने के लिए कहा. तब सावित्री ने वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनना चाहती हूं. कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें.’

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सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए. सावित्री अब उसी वट वृक्ष के पास आई. वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हुआ और वह उठकर बैठ गया. सत्यवान के माता-पिता की आंखें ठीक हो गईं और खोया हुआ राज्य वापस मिल गया.

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