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Mysore Dussehra: 750 KG का स्वर्ण आसन, 1.5 लाख बल्ब! यूं ही दुनिया में फेमस नहीं मैसूर का शाही दशहरा

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:48 AM IST
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World famous Mysore Dussehra: विजयादशमी यानी दशहरा आज 5 अक्टूबर 2022 को देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. वैसे तो देश के हर शहर में दशहरा काफी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन मैसूर का दशहरा दुनियाभर में फेमस है. इसका कारण है कि मैसूर में दशहरे को काफी भव्य तरीके से मनाया जाता है और इसका जश्न करीब 10 दिन तक चलता है. इस बार के उत्सव के लिए भी पूरे मैसूर को रंग-बिरंगी लाइटों से सजा दिया गया है और देश-विदेश से लोग इस अंतर्राष्ट्रीय दशहरा मनाने पहुंच चुके हैं.

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)
 

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10 दिनों तक चलने वाला दशहरा का उत्सव चामुंडेश्वरी देवी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक माना जाता है. बताया जाता है कि देवी दुर्गा के अवतार चामुंडेश्वरी देवी ने दस दिनों की लड़ाई के बाद राक्षस महिसासुर का वध किया था. इसके जश्न के रूप में यहां पर 10 दिनों का उत्सव होता है.

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)

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मैसूर के दशहरे का इतिहास मैसूर नगर के इतिहास से जुड़ा है जो मध्यकालीन दक्षिण भारत के अद्वितीय विजयनगर साम्राज्य के समय से शुरू होता है. हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों द्वारा चौदहवीं शताब्दी में स्थापित इस साम्राज्य में नवरात्रि उत्सव मनाया था. लगभग छह शताब्दी पुराने इस उत्सव को वाडियार राजवंश के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वडियार ने दशहरे का नाम दिया. 

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)
 

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दशहरे के उत्सव का प्रारंभ मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर विराजने वाली देवी चामुंडेश्वरी के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना के साथ होता है. बताया जाता है कि इस उत्सव पर मैसूर महल को 90 हजार से अधिक बिजली के बल्बों तथा चामुंडी पहाड़ियों को 1.5 लाख से अधिक बिजली के बल्बों से सजाया जाता है. जगनमोहन पैलेस, जयलक्ष्मी विलास एवं ललिता महल का अद्भुत सौंदर्य देखते ही बनता है. 

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)

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जुलूस में सजे-धजे हाथी भी शामिल होते हैं. जुलूस में सुसज्जित हाथी इतने आकर्षक लगते हैं कि लोग इन पर फूलों की बारिश करते हैं. इसे देखने के लिए विजयादशमी के दिन शोभायात्रा के मार्ग के दोनों तरफ लोगों की भीड़ जमा होती है. 

(Image credit: Indiatoday)
 

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विजयदशमी के दिन मैसूर की सड़कों पर जुलूस निकलता है. इस जुलूस की खासियत यह होती है कि इसमें सजे-धजे हाथी के ऊपर एक चामुंडेश्वरी देवी प्रतिमा के साथ साढ़े सात सौ किलो का 'स्वर्ण हौदा' रखा जाता है. सबसे पहले इस मूर्ति की पूजा मैसूर की रॉयल फैमिली करती है उसके बाद वह जुलूस में शामिल होती है.

यह हौदा मैसूर के कारीगरों की कारीगरी का अद्भुत नमूना है, जिसे लकड़ी और धातु की सुंदर कलाकृतियां बनाने में निपुणता हासिल थी. पहले इस हौदे का उपयोग मैसूर के राजा अपनी शाही गज सवारी के लिए किया करते थे. अब इसे साल में केवल एक बार विजयादशमी के जुलूस में माता की सवारी के लिए प्रयुक्त किया जाता है.

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)

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तेज रोशनी में नहाया मैसूर महल, फूलों और पत्तियों से सजे चढ़ावे, सांस्कृतिक कार्यक्रम खेल-कूद, गोम्बे हब्बा और विदेशी मेहमानों से लेकर जम्बो सवारी तक हर बात इस दशहरे की ओर आकर्षित करती है.

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)

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विजयदशमी के पहले नवरात्रि के आखिरी दिन मैसूर के वर्तमान राजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वडियार (Yaduveer Krishnadatta Chamaraja Wadiyar) हैं. उन्होंने फेसबुक पर 'द पैलेस मैसूर' में आयुध पूजा और महानवमी की पूजा की कुछ फोटोज शेयर करते हुए लिखा, "श्री शुभकृन्नमा संवतसर के शरण नवरात्रि के समारोह के भाग लिया और हमारी माता श्रीमती डॉ. प्रमोददेवी के सानिध्य में महानवमी और आयुध पूजा की गई. जगतजननी श्री चामुंडेश्वरी देवी सभी का कल्याण करें यही प्रार्थना की गई.

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)
 

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राजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वडियार ने दूसरी पोस्ट में लिखा, "प्रदेश के विकास के लिए राजमहल परम्परा के रूप में हमारी माता श्रीमती डॉ. प्रमोददेवी द्वारा अनुष्ठान किया गया.  शरण नवरात्रि के अनुष्ठान आज मेरी मां एच.एच. डॉ.प्रमोदा देवी वाडीयार के मार्गदर्शन में द पैलेस मैसूर में शुरू हुए. सभी के कल्याण के लिए प्रार्थना की."

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)

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मैसूर में दशहरे के समय खूब रौनक लगती है. यहां 10 दिनों तक बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. साथ ही फूड मेला, वुमेन दशहरा जैसे कार्यक्रम भी होते हैं. इस उत्सव के दौरान शास्त्रीय और लोकप्रिय नृत्य के साथ-साथ लोकगीत और संगीत का भी आयोजन किया जाता है. 

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)
 

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इस जुलूस के साथ म्यूजिक बैंड, डांस ग्रुप, आर्मड फोर्सेज, हाथी, घोड़े और ऊंट चलते हैं. यह जुलूस मैसूर महल से शुरू होकर बनीमन्टप पर खत्म होती है और वहां पहुंचकर लोग पेड़ की पूजा करते हैं. माना जाता है कि पांडव अपने एक साल के गुप्तवास के दौरान अपने हथियार इस पेड़ के पीछे छुपाते थे और कोई भी युद्ध करने से पहले इस पेड़ की पूजा करते थे. 

(Image credit: Facebook/ykcwadiyar)

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