मंदाकिनी नदी, हरे-भरे जंगल और बर्फ से ढकी चोटियों का खूबसूरत नजारा केदारनाथ आने वाले हर यात्री को मंत्रमुग्ध कर देता है. अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते इस जगह का खास महत्व है. हर साल हजारों की तादाद में तीर्थयात्रियों का जत्था भगवान शिव के दर्शन करने यहां आता है. आइए आपको केदारनाथ मंदिर से जुड़े कुछ रोचक किस्से बताते हैं.
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केदारनाथ मंदिर का इतिहास- केदारनाथ मंदिर की उत्पत्ति कई अलग-अलग मान्यताओं पर आधारित है. कुछ लोग कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य के हाथों हुआ था. जबकि कुछ लोगों का मानना है कि दूसरी सदी में मालवा के राजा भोज ने इसका निर्माण करवाया था. लेकिन, केदारनाथ मंदिर क्यों बनाया गया? इसे लेकर भी कई कहानियां हैं.
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इसका एक रोचक किस्सा महाभारत से भी जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र नरसंहार के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की शरण में पहुंचे थे. लेकिन भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे. इसलिए उन्होंने गुप्तकाशी में नंदी बैल का रूप धारण कर लिया. हालांकि, पांडवों ने इस रूप में भी शिव को पहचान लिया. भगवान शिव वहां से गायब हो गए और पांच अलग-अलग स्थानों पर उनके पांच अंग फिर से प्रकट हुए. रूद्रनाथ में मुख, तुंगनाथ में हाथ, मध्यमेश्वर में पेट, कल्पेश्वर में जटाएं और केदारनाथ में कूबड़ प्रकट हुआ.
दूसरी कहानी नारा नारायण से जुड़ी है. एक हिंदू देवता जो पार्वती की पूजा करने गए थे, लेकिन वहां भगवान शिव प्रकट हो गए. नारा-नारायण ने भगवान शिव से मानवता के कल्याण के लिए मूल रूप में वहीं रहने का आग्रह किया. भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूर्ण की और केदारनाथ को ही अपना घर मान लिया.
400 साल बर्फ के नीचे- जियोलॉजिस्ट दावा करते हैं कि केदारनाथ का मंदिर लगभग 400 वर्षों तक बर्फ में दबा रहा. 1300-1900 ईस्वी के आस-पास का वो समय जिसे हिमयुग के रूप में जाना जाता था. 'वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी', देहरादून के वैज्ञानिक कहते हैं, 'मंदिर की दीवारों पर पीली रेखाएं इस क्षेत्र में हिमनदी की गतिविधियों की ओर इशारा करती हैं.'
रिपोर्ट के मुताबिक, यह मंदिर न सिर्फ 400 सालों तक बर्फ की गहराई में दबा रहा बल्कि, हिमनदी की तरंगों से होने वाली क्षति से भी खुद को बचाता रहा. वैज्ञानिक कहते हैं कि हिमनदी की तरंगों के संकेत मंदिर के अंदर भी देखने को मिलते हैं. यहां पत्थरों में बहुत चमक है. वैज्ञानिकों ने इस वास्तुकला का अध्ययन किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मंदिर का डिजाइन करते वक्त निर्माताओं के मस्तिष्क में बर्फ और ग्लेशियर का खतरा भी रहा होगा. तभी उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं के सामने मंदिर की मजबूती को सुनिश्चित किया होगा.
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2013 की तबाही- केदारनाथ में आई साल 2013 की प्रलयकारी आपदा सदियों तक लोगों के जेहन में रहेगी. इस आपदा में हजारों लोगों की जानें चली गईं. कई घरों का नामोनिशान मिट गया.
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केदारनाथ और इसका तीर्थ स्थान दोनों इस प्राकृतिक आपदा की चपेट में आए थे, लेकिन जल प्रलय में भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ. कुछ लोग बताते हैं कि एक शिलाखंड (चट्टान) ने मंदिर की तरफ बढ़ रहे सैलाब का रास्ता ब्लॉक कर दिया था और इस तरह भगवान शिव का ये मंदिर सुरक्षित रह गया. ये महान वास्तुकला का ही एक चमत्कार था कि इतनी तबाही के बीच भी केदारनाथ मंदिर का बाल बांका नहीं हुआ.
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आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) भी इस बात से इत्तेफाक रखता है कि अपने ऑरिएंटेशन और कंस्ट्रक्शन स्टाइल की वजह से ही केदारनाथ का मंदिर इतनी भीषण तबाही झेल गया. मंदिर के गुंबदों को लोहे के क्लैम्प से एक-दूसरे के साथ इंटरलॉक किया गया है. यही कारण है कि वे आज भी बरकरार हैं. मंदिर के अंदर मौजूद पत्थरों पर बहुत मामूली सा फर्क पड़ा है.
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इस मंदिर का एक और दुर्लभ पहलू इसकी उत्तर-दक्षिण दिशा भी है. आमतौर पर मंदिरों का मुख द्वार पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर होता है. लेकिन इस मंदिर का द्वार दक्षिण की ओर है, जो कि बहुत कम देखा जाता है. ASI के एडिशनल डायरेक्टर बीआर मनी का कहना था कि 100 के पैमाने पर यह मंदिर 99 प्रतिशत तक सुरक्षित है. तस्वीरों में हमने देखा था कि इसके एक मंडप का दरवाजा टूट चुका था. पीछे की तरफ से कुछ पत्थर निकल गए थे. मंदिर के एक तरफ ईशान कोण हुआ करता था, जो तबाही के बाद तस्वीरों में नजर नहीं आया. समुद्र तल से करीब 3,969 की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ का मंदिर रेखा-शिखारा शैली में बना हुआ है.
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