स्वतंत्र भारत की कुंडली 15 अगस्त 1947 मध्य रात्रि की है. इसमें लग्न वृष और राशि कर्क है. जन्म नक्षत्र पुष्य है जो शनि का नक्षत्र है. तृतीय भाव में तमाम ग्रहों की युति से यहां लगातार उतार-चढ़ता रहा, लेकिन स्थिर लग्न और शनि की कृपा होने के कारण भारत अखंड बना रहा है.
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द्वितीय भाव में मंगल की उपस्थिति के कारण पड़ोसी देशों से तनाव रहा और युद्ध जैसी स्थितियां बार-बार बनती रही. लेकिन बृहस्पति जो छठे भाव में है, उनकी कृपा से मंगल का कुप्रभाव काफी हद तक कम हो गया. भारत वर्ष की कुंडली का प्राण है शनि जो अपनी मजबूती में भारत को उन्नति तक पहुंचाकर ही रहेगा.
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ज्योतिष के मतुाबिक, भारत वर्ष की कुंडली उस समय के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ कुंडली चुनी गई थी. इसको शनि प्रधान इसलिए चुना गया ताकि लोकतंत्र मजबूत रहे ना कि निरंकुश शासन. प्रयास करके शनि और बृहस्पति की स्थिति बेहतर चुनी गई थी ताकि भारत उन्नति कर सके.
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भारत ने खाद्य पदार्थ, तकनीक और उद्योगों के क्षेत्र में अपार उन्नति की है और आत्मनिर्भर हुआ. सौंदर्य प्रतियोगिताओं से लेकर खेल के मैदान तक और कला, संगीत, साहित्य में भारत ने अपना लोहा मनवाया है. कुल मिलाकर हर क्षेत्र में भारत लगातार उन्नति कर रहा है और समय के साथ-साथ यहां के लोग भी जिम्मेदार होते जा रहे हैं.
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भारत की परेशाानियां और उनका अंत
वर्तमान में भारत की कुंडली में चंद्र में बुध की दशा चल रही है. यह दशा मिले-जुले परिणाम देगी. राजनैतिक रूप से बड़े सारे परिवर्तन होंगे. पड़ोसी देशों के साथ संबंधो में समस्या होगी. शैक्षणिक और चिकित्सकीय संस्थानों के लिए समस्या बढ़ सकती है.
इस दौरान बीमारी से निपटने में अभी भी काफी ऊर्जा खर्च होगी. देश आर्थिक रूप से सुदृढ़ होगा. हालांकि नियम बड़े सख्त होंगे. हर तरह की समस्या को देश आसानी से हल कर पाएगा.
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भविष्य की चुनौतियां और बाधाएं
तृतीय भाव के बुध की दशा में बड़े सारे परिवर्तन होंगे. क्षेत्रीय दलों के लिए समस्या का समय होगा. बड़ी पार्टियों को लाभ हो सकता है. अक्टूबर 2021 से मार्च 2022 का समय देश के बड़े उथल-पुथल और बड़े बदलाव का समय हो सकता है.
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