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Mahashivratri 2022: देश में कहां-कहां हैं भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग? जीवन में एक बार जरूर कर आएं दर्शन

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 12:05 PM IST
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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित हैं. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इन 12 स्थानों पर भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं. ऐसा कहा जाता है कि जो इंसान जीवन में एक बार इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर लेता है, उसके सात जन्मों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि भगवान शिव के ये 12 ज्योतिर्लिंग देश में कहां-कहां मौजूद हैं.

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में स्थित है. ये देश का दूसरा प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है. इस ज्योतिर्लिंग की कहानी इस प्रकार है- प्राचीन काल में बताया जाता है कि एक बार माता पार्वती और भगवान शिव भी दुविधा में फस गए थे. दोनों इस बात का निर्णय ही नहीं कर पा रहें थे कि पहले शादी गणेश की हो या कार्तिकेय की? फिर दोनों ने मिलकर एक प्रतियोगिता आयोजित की. प्रतियोगिता के अनुसार, गणेश और कार्तिकेय में से जो भी सबसे जल्दी संपूर्ण धरती का चक्कर लगाएगा उसकी शादी पहले की जाएगी.

इसके बाद कार्तिकेय अपने मोर पर निकल पड़े भ्रमण के लिए, वहीं गणेश ने माता पार्वती और शिव के इर्द-गिर्द एक चक्कर लगा लिया. पूछे जाने पर गणेश ने बोला कि उनके लिए उनके माता पिता ही संसार हैं. इसलिए उन्होंने उनका चक्कर लगा लिया. ये सुन माता पार्वती और भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने गणेश का विवाह विश्वरूपम की दोनों बेटियां रिधि और सिद्धि से करवा दिया. ये देख कार्तिकेय को बहुत बुरा लगा और उन्होंने निर्णय किया कि वो कभी शादी नहीं करेंगे. इसके बाद वे श्री सैला पहाड़ की तरफ निकल पड़े और अपनी आगे की जिंदगी वहीं बिताई. जब माता पार्वती और शिव को इसके बारे में जानकारी मिली तो वो दोनों उनसे मिलने पहुंच गए. माता पार्वती उनसे पूर्णिमा के दिन मिली. वहीं भगवान शिव उनसे अमावस्या के दिन मिलने पहुंचे. इस तरह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई.

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग- सोमनाथ भारत का सबसे प्रसिद्ध और बड़ा ज्योतिर्लिंग है. गुजरात स्थित सोमनाथ भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है. ये ज्योतिर्लिंग सिर्फ पवित्र ही नहीं, बल्कि बहुत मूल्यवान भी है. इस ज्योतिर्लिंग को 16 बार तोड़ा गया है और फिर बनाया गया है. सोमनाथ की कहानी काफी रोचक है. ऐसा कहा जाता है चंद्र ने राजा दक्ष की सभी 27 बेटियों के साथ विवाह किया था. लेकिन प्रेम वे सिर्फ रोहिणी से ही करते थे. इसके चलते दक्ष की बाकी बेटियां हमेशा मायूस और उदास रहती थीं.

एक दिन राजा दक्ष का सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि वे अपनी सारी चमक खो देंगे. इस श्राप के असर से चंद्र ने अपनी रोशनी खो दी और पूरा संसार अंधकार में डूब गया. परिस्तिथियां बिगड़ते देख, सभी देवताओं ने दक्ष से आवहान किया कि वो चंद्र को माफ कर दें. काफी प्रयासों के बाद दक्ष ने कहा अगर चंद्र भगवान शिव की कठोर तपस्या करेंगे तो उनको अपना प्रकाश पुनः वापस हासिल हो जाएगा. इस के तुरंत बाद चंद्र ने घोर तपस्या की जिसके चलते भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्र को उसका प्रकाश वापस लौटा दिया. यहीं से स्थापना हुई पहले ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की.

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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग- महाकालेश्वर भारत का तीसरा प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है. ये ज्योतिर्लिंग उजैन के रुद्र सागर झील के पास बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि यहां कभी चंद्रसेन नाम के राजा का शासन हुआ करता था. वो भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था और वहां की प्रजा भी महादेव को पूजती थी. एक बार राजा रिपुदमन ने चंद्रसेन के महल पर हमला बोल दिया. उसके साथ मायावी राक्षस दूषण भी था जो कभी अदृश्य हो सकता था. राक्षस ने वहां की प्रजा को प्रताड़ित किया और पूरे महल को बर्बाद कर दिया. तब वहां की प्रजा ने भगवान शिव को याद किया और मदद की गुहार लगाई.

ऐसा कहा जाता है कि यहां महादेव ने स्वयं दर्शन दिए और प्रजा की रक्षा की. इसके बाद उज्जैन के लोगों की प्रार्थना सुनकर भोलेनाथ ने निर्णय किया कि वे उज्जैन नहीं छोड़ेंगे. इस प्रकार से उत्पन्न हुआ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की.

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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश में स्थित है. ये ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के पास शिवपुरी द्वीप पर बना है. ओंकारेश्वर का अर्थ होता है ओंकारेश्वर का भगवान. पुराणों के मुताबिक, यहां एक बार देवताओं और असुरों के बीच बड़ा युद्ध हुआ जिसमें असुरों ने देवताओं को परास्त कर दिया. इसके बाद सभी ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की कि वो आएं और उनकी रक्षा करें. देवताओं की गुहार स्वीकार करते हुए भगवान शिव वहां आए और उन्होंने उन राक्षसों का संहार किया. इस प्रकार से वहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई.

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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग- झारखंड में स्थित है ये प्रसिद्ध वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग. ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा करने से आपके सभी कष्टों का निवारण हो जाता है. इस ज्योतिर्लिंग की कहानी महान पंडित और राक्षस रावण से जुड़ी हुई है. ऐसा कहा जाता है कि एक बार दशानन हिमालय पर भगवान की बहुत कठोर तपस्या कर रहा था. वो अपने सभी सिर एक-एक करके भगवान शिव को अर्पित कर रहा था. जैसे ही वो अपना नौवा सिर भेंट कर रहा था, तभी महादेव प्रकट हुए और रावण से कोई भी वरदान मांगने को कहा. तब रावण ने कहा कि वो चाहता है कि वो उसके साथ लंका नगरी चलें और वहां जाकर स्थापित हो जाएं.

अब भोलेनाथ ने रावण की ये प्राथना स्वीकार की लेकिन साथ में ये शर्त भी रख दी की अगर ये शिवलिंग उसने बीच रास्ते में कहीं भी जमीन पर रख दिया तो वो हमेशा के लिए वहीं स्थापित हो जाएंगे. रावण ने ये शर्त स्वीकार की और ज्योतिर्लिंग लेकर लंका की ओर निकल पड़ा. भगवान शिव के इस निर्णय से देवता बहुत दुखी और चिंतित थे, क्योंकि वे भोलेनाथ को लंका जाते हुए नहीं देख सकते थे. फिर सभी देवता विष्णु के पास गए और उनसे समाधान निकालने की गुहार लगाई. तब विष्णु ने ऐसी लीला रची की रावण बीच रास्ते में शिवलिंग एक ग्वाले को सौंपकर चला गया. परंतु उस ग्वाले ने उस शिवलिंग को वहीं जमीन पर रख दिया और शर्त अनुसार वो ज्योतिर्लिंग वहीं स्थापित हो गया. कहते हैं उस ग्वाले के रूप स्वंय भगवान विष्णु आए थे ये लीला रचने के लिए.

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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग- भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की इतिहास में बहुत मान्यता है. ये ज्योतिर्लिंग पुणे के शहाद्रि इलाके में स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग की कहानी कुंभकरण के पुत्र भीमा से जुड़ी है. ऐसा कहा जाता है कि जब भीमा को ये पता चला कि उसके पिता को मौत के घाट भगवान विष्णु ने राम के अवतार में उतारा है, वो उस बात से बहुत क्रोधित हुआ और उसने बदला लेने की ठानी. तब उसने खुद पर खूब अत्याचार किए और कठोर तप किया जिसके चलते ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उसे उसकी इच्छा अनुसार काफी सारी दिव्य शक्तियां प्रदान की. वरदान प्राप्ति के तुरंत बाद भीमा ने पूरी धरती का सर्वनाश करना शुरू कर दिया

उसने भगवान शिव के परमभक्त से भी युद्ध किया और उसे कैद कर लिया. धरती पर ये अत्याचार देख सभी देवता काफी परेशान और विचलित हो गए. उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस राक्षस का संहार करें. तब महादेव और भीमा के बीच में भीषण युद्ध हुआ और महादेव ने उसे धूल चटा दी. तब सभी देवतागण के आग्रह पर वे वहीं रह गए और इस तरह भोलेनाथ को नया नाम- भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मिल गया. मान्यता तो ये भी है कि जो पसीना भगवान शिव का युद्ध के समय जमीन पर गिरा था उसी की वजह से वहां भीम नदी उत्पन्न हुई.

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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग- सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और चर्चित ज्योतिर्लिंग है रामेश्वरम. तमिलनाडु में स्थित इस ज्योतिर्लिंग को रामायण से जोड़कर देखा जाता है. भगवान राम जब माता सीता की खोज करते हुए रामेश्वरम पहुंचे. तब वहां थोड़ी देर विश्राम के लिए रुक गए. वहां जैसे ही वो जल पीने के लिए नदी के पास गए,उन्हें रोक दिया गया और एक आकाशवाणी हुई जिसमें कहा गया कि वो जल उनकी इजाजत के बिना नहीं पी सकते.

इसके बाद भगवान राम ने मिट्टी से एक शिवलिंग का निर्माण किया और उसकी पूजा अर्चना की. उनकी पूजा से प्रसन्न हो कर भोलेनाथ ने अपने दर्शन दिए और राम ने उनसे विजय होने का आशीर्वाद मांगा जिससे वे अंहकारी रावण का वध कर सके. भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और स्वयं वहां रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए.

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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग- घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है. इसका निर्माण अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के तार एक विवाहित जोड़े से जुड़े हैं. ये कहानी है सुर्धम और सुदेशा की. इस विवाह में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था. बस दुख इस बात का था कि उनकी कोई संतान नहीं थी. तब सुदेशा ने निर्णय किया कि सुर्धम की शादी उसकी बहन घूश्म से करवा दी जाए. दोनों के शादी होते ही उनको एक प्रतिभावाहन बालक हुआ. लेकिन सुदेशा को ये बात खटकने लगी और उसने मौका मिलते ही उस बालक को झील में फेक दिया जहां सुर्धम ने 101 शिवलिंग अर्पित किए थे.

ये समाचार मिलते ही सुर्धम ने झील के पास जाकर भोलेनाथ को याद किया और अपने बालक को वापस पाने की गुहार लगाई. कहते हैं महादेव ने उनकी पुकार सुनी और सुर्धम को उसका बच्चा भी लौटा दिया. सिर्फ यही नहीं सुर्धम ने सुदेशा के लिए भी माफी मांगी और भोलेनाथ से उसे माफ करने को कहा. ये देख भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हो गए और उन्होंने सुर्धम को आर्शीवाद दिया. उसी स्थान पर भगवान शिव घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए.

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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग- कृष्ण नगरी द्वारका में स्थित है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग. ऐसी मान्यता है कि ये ज्योतिर्लिंग सभी प्रकार के जहर के प्रभाव से सुरक्षित है. ये ज्योतिर्लिंग भी एक भक्त की कृपा से ही द्वारका में स्थापित हुआ. एक बार दारुका नाम के राक्षस ने शिवभक्त सुप्रिया को अपने कब्जे में ले लिया.

उसके साथ उस राक्षस ने और भी बहुत सी महिलाओं को बंदीगृह में रखा था. तब सुप्रिया ने सबसे कहा कि वो ओम नमः शिवाय का जाप करें. जैसे ही दारुका को इस बात की भनक लगी, वो सुप्रिया को मारने के लिए निकल पड़ा. लेकिन तभी महादेव प्रकट हुए और उन्होंने उस दुष्ट राक्षस का संहार किया. इस प्रकार द्वारका की धरती पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई.

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काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग- वाराणासी की घाटों पर गंगा के पास स्थित ये एक विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है. ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति अपने जीवन की आखिरी सांस यहां लेता है उसे सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक नहीं बल्कि अनेक कथाएं चर्चा का केंद्र है. सबसे चर्चित कथा है ब्रह्मा जी और विष्णु के बीच हुए मतभेद की.

ऐसा कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में इस बात पर बहस हो गई कि कौन ज्यादा बड़ा है. तब ब्रह्मा जी अपने वाहन पर निकल कर स्तम्भ का ऊपरी भाग खोजने लगे. वहीं विष्णु जी चले गए निचला भाग खोजने के लिए. तभी उस स्तम्भ में से प्रकाश निकला और महादेव प्रकट हुए. अब भगवान विष्णु तो अपने कार्य में असफल रहे, लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोला कि उन्होंने ऊपरी छोर खोज लिया. इस बात से भगवान शिव काफी क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि अब उन्हें कोई नहीं पूजेगा. ऐसा कहा जाता है कि महादेव स्वयं वहां काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए.
 

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त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग- नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की बहुत मान्यता है. ऐसा कहा जाता है कि गोदावरी नदी का अस्तित्व भी इस ज्योतिर्लिंग के वजह से हुआ है. शिव पुराण के अनुसार, एक बहुत ही प्रसिद्ध गौतम ऋिषि हुआ करते थे. उनको भगवान वरुण से ये वरदान मिला था कि उनके पास कभी भी अनाज की कमी नहीं होगी. लेकिन दूसरे देवताओं को इस बात से जलन होने लगी तो उन्होंने एक गाय को उनके अनाज के ऊपर छोड़ दिया. उस गाय को देख ऋषि ने उस गाय को मार दिया. उनको बाद में इस बात का दुख हुआ और उन्होंने भगवान शिव की अराधना की. तब महादेव ने गंगा देवी को कहा की वे ऋषि के इलाके से होकर निकलें, जिससे उनके सभी पाप धुल जाएं. इस प्रकार से वे नासिक में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए.

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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग- केदारनाथ चारों धाम में सबसे प्रमुख धाम माना जाता है. उस पवित्र धाम में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई थी. भगवान शिव केदारनाथ में सदैव निवास करते हैं और जो भी वहां जाता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है. इस ज्योतिर्लिंग के सिलसिले में एक कथा काफी चर्चित है. ऐसा कहा जाता है भगवान ब्रह्मा के दो पुत्र थे नर और नरायरण. इन दोनों ने द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन के रूप में जन्म लिया था. नर और नारायण भगवान भोलेनाथ के बड़े भक्त थे. इसलिए उन्होंने बद्रीनाथ में एक स्वयं का शिवलिंग बनाया था और उसके सामने बैठकर दोनों घोर तपस्या करते थे.

ऐसा कहा जाता है उस शिवलिंग पर रोज भगवान शिव दर्शन दिया करते थे. एक दिन भोलेनाथ उन दोनों बालकों से इतने प्रसन्न हो गए कि उन्होंने दोनों से कहा कि वो कोई वरदान मांगे. तब दोनों ने कहा कि आप बस इस स्थान पर सदैव के लिए बस जाएं. भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूरी की और इस तरह केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई.

Photo: Getty Images

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