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कैसे इतना शक्तिशाली हो गया था रावण? ज्योतिषाचार्य ने समझाया जन्मकुंडली का पूरा गणित

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 2:26 PM IST
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रावण दुनिया का सबसे बड़ा पंडित, महाविद्वान और महा अभिमानी था. ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य ऋषि थे और उनके पुत्र का नाम विश्रवा हुआ. विश्रवा की दो पत्नियां थीं. उनकी पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था. विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी. रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा इन्हीं की संतानें थीं. ज्योतिषाचार्य डॉ. अजय भाम्बी कहते हैं कि रावण दो अलग संस्कृतियों की संतान था और इसीलिए ये अद्वितीय है और महाशक्तिशाली था.

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रावण को शास्त्रों की बहुत जानकारी थी. वो वेदों का ज्ञाता था. ग्रहों से लेकर वनस्पति जगत की छोटी से छोटी बात उसके दिमाग में समाई थी और जब किसी की जानकारी का स्तर इतना बढ़ जाता है तो वो महा अभिमानी हो जाता है. रावण का अहंकार ही उसका एकमात्र दोष था. आइए आज आपको रावण की कुंडली और उसके चरित्र के बारे में बताते हैं.

Photo: Getty Images

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रावण की कुंडली सिंह लग्न की कुंडली है. सूर्य सिंह लग्न का स्वामी होता है और इसी कारण रावण बेहद शक्तिशाली था. सूर्य के साथ यहां बृहस्पति भी है. बृहस्पति यहां पंचम और अष्टम भाव का स्वामी है. पंचम भाव में बृहस्पति के होने से रावण किसी पूर्व जन्म के कारण पैदा होता है. जबकि कुंडली के अष्टम भाव में गुरु की उपस्थिति इंसान को गुप्त विद्याओं का मालिक बनाती है.

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कुंडली के इसी भाव में सूर्य और गुरु के साथ शुक्र भी है. गुरु और शुक्र की जब युति होती है तो इंसान पंडितों में महापंडित कहलाता है. इसीलिए उसे महाज्ञानी और महाविद्वानी कहते थे. कुंडली में उच्च का बुध द्वितीय भाव में है. द्वितीय भाव का बुध वाणी के बल पर कुछ भी कर सकता है. यही कारण है कि रावण यंत्र, तंत्र और मंत्र के रहस्यों को जानता था. ऋग्वेद और वैदिक काल के मंत्रों में छिपे रहस्यों और विज्ञान को रावण समझ चुका था. उसकी वाणी में अमृत था और इसी कारण उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था.

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कुंडली के तीसरे भाव में शनि के साथ केतु विराजमान है. सिंह लग्न हो और तीसरे भाव में शनि-केतु हों तो इंसान महा पराक्रमी हो जाता है. वो परिणामों से नहीं घबराता है. उसके दिमाग में सिर्फ विजयी होने का जुनून सवार रहता है. तीसरे भाव में शनि के साथ बैठा केतु इंसान के अनियंत्रित दिमाग की वजह होता है.

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कुंडली के छठे भाव में मंगल और चंद्रमा हैं. मंगल और चंद्रमा की युति इंसान को बलशाली बनाती है और ऐसे इंसान को हरा पाना हर किसी के लिए संभव नहीं है. भगवान राम के हाथों मृत्यु से रावण को मोक्ष की प्राप्ति हुई, लेकिन उसे कभी कोई हरा नहीं पाया था. अजातशत्रु और बाली जैसे योद्धाओं ने उसके लिए मुश्किलें जरूर खड़ी की, लेकिन उसे कभी कोई हरा नहीं सका. कुंडली के नौवें भाव में राहु है. ग्रहों की ऐसी स्थिति ही इंसान को खास बनाती है. आइए अब आपको बताते हैं कि रावण की कुंडली में कमियां क्या थी.

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सूर्य जब सिंह लग्न में होता है तो इंसान अनंत शक्तियों का मालिक बन जाता है और ऐसे व्यक्ति को यदि ज्ञान प्राप्त हो जाए तो उसके अहंकर की कोई सीमा नहीं रह जाती है. रावण के पराक्रमी और ज्ञानी होने की भी यही वजह थी. इसके दम पर रावण ने सबसे पहले अपने ही भाई कुबेर को ठगा. सोने की लंका और पुष्पक विमान जो पहले कुबेर का हुआ करते थे, रावण ने वो सब उनसे छीन लिया था.

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अपनी शक्तियों से रावण ने कुबेर समेत इंद्र और देवताओं को हराया था. इन सभी से जीतने के बाद रावण बहुत ज्यादा अहंकारी हो गया था. हालांकि रावण खुद ये बात समझ चुका था कि उसकी अनंत शक्तियां और अहंकार ही उसके पतन का कारण बनेंगी और अगर कोई उसका उत्थान कर सकता है तो वो भगवान विष्णु हैं. भगवान राम भी विष्णु अवतार ही थे. रावण को पता था कि उसे मुक्ति तभी मिलेगी जब उसके कुकर्मों की पराकाष्ठा हो जाएगी.

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दानवों के साथ मिलकर रावण ने रक्षा संस्कृति की रचना की. इस संस्कृति का नाम था- 'वयं रक्षाम:'. इस संस्कृति में रावण कहता था कि अगर आप मेरी शरण में आ जाएं तो मैं आपकी रक्षा करूंगा. वो अपने आपको भगवान के तुल्य मानने लगा था. त्रिलोक जीतने के बाद उसने भगवान शिव को भी प्रसन्न कर लिया था. वयं रक्षाम:  संस्कृति ने रावण के अहंकार को और बढ़ा दिया था. वो अपने जीवन के सामान्य तौर-तरीके तक भूल चुका था.

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रावण ने आगे चलकर 'वयं रक्षाम:' संस्कृति मानव संस्कृति और ऋषि संस्कृति के लोगों को तंग करना शुरू कर दिया. दरअसल, लग्न में जब सूर्य, बृहस्पति और शुक्र हो तो कुंडली हो तो इंसान बहुत सारे दोषों से मुक्त हो जाता है. सूर्य लग्नेष और बृहस्पति पंचमेष हो तो दोनों ग्रह मिलकर एक राजयोग भी बनाते हैं. रावण को पैदा होने के साथ ही ग्रहों की बहुत विचित्र स्थितियां मिली थीं.

Photo: Getty Images

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रावण ऋषि पुत्र होकर ना तो ऋषि रह सकता है और ना वो पूर्ण दानव रह सकता है. इन दोनों के बीच में रावण कहीं ना कहीं अपने अस्तित्व को खो देता है. इसके बाद रामायण में जो कुछ हुआ वो जग जाहिर है. अध्यात्म की दृष्टि से देखें तो रावण को मुक्त करने के लिए ही भगवान स्वयं आते हैं. रावण के साथ ही पूरी राक्षस परंपरा का अंत हो जाता है.

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वैदिक काल से एक परंपरा चली आ रही है. जब हमारे यहां विवाह होता है तो लड़का और लड़की की तरफ से सात परिवारों को छोड़ दिया जाता है. वैज्ञानिक दृष्टि से समझें तो हमारे जीन्स में डिस्टेंस की वजह से ऐसा किया जाता है. रावण का जन्म ऋषि और राक्षस व्यवस्था के बीच की कड़ी थी, जिनमें कोई मेल नहीं था. ऐसी परिस्थिति में पैदा हुई संतान अलग किस्म की होती है.

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रावण का वध करने के बाद भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उनके पास भेजते हैं और उन्हें कुछ ज्ञान लेने को कहते हैं. लक्ष्मण जाकर रावण के सिर की तरफ खड़े हो जाते हैं. रावण कुछ नहीं कहता है. लक्ष्मण दोबारा राम के पास आकर कहते हैं कि रावण ने उन्हें कुछ नहीं बताया. इसके बाद राम कहते हैं कि जब किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उनके सिर नहीं बल्कि चरणों के पास खड़ा होना पड़ता है.

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लक्ष्मण दोबारा जाकर रावण के पैरों के पास खड़े होते हैं. रावण लक्ष्मण से कहता है कि मेरी तीन इच्छाएं पूरी नहीं हो सकीं. पहली, मैं सोने में सुगंध नहीं पैदा कर पाया. दूसरा, स्वरंग तक जाने के लिए सीढ़ी नहीं बना पाया. तीसरा, मैं आग से धुआं निकलते देखना चाहता था.

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अजय भाम्बी चैनल के बारे में- लगभग तीन वर्ष पूर्व यह चैनल शुरू किया गया था. इसके सब्सक्रिप्शन लगभग 5 लाख हैं. वार्षिक राशिफल और भविष्यवाणियों के अलावा इस चैनल पर ज्योतिष की कई उपयोगी जानकारियां मिलती हैं. जैसे - प्रवज्र राजयोग, विपरीत राजयोग, नीचभंग राजयोग, मृत्यु का कारक ग्रह कौन सा होता है, आदि बहुत सारे ज्योतिष के सूत्र उपलब्ध हैं.

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समय-समय पर चाहे राजनीति हो, देश और दुनिया पर कोई विपदा हो जैसे कारोना या कोई अन्य आपदा हो उस पर भी अजय भाम्बी भविष्यवाणियां करते रहते हैं और इनकी भविष्यवाणियां सटीक होती हैं. ज्योतिषाचार्य अजय 40 वर्ष से अधिक समय से ज्योतिष से जुड़े हैं. वे कम्प्यूटर ज्योतिष के जनक हैं और 1999 में जैन टी वी पर ज्योतिष की शुरूआत की थी.

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