
Akshay Navami 2023: अक्षय नवमी का यह पर्व आंवले से संबंधित माना जाता है. अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार अक्षय नवमी 21 नवंबर यानी कल है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी का त्योहार मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन से द्वापर युग की शुरुआत हुई थी. इसी दिन कृष्ण ने कंस का वध भी किया था और धर्म की स्थापना की थी. आंवले को अमरता का फल भी कहा जाता है.
अक्षय नवमी शुभ मुहूर्त (Akshay Navami 2023 shubh muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाया जाता है. इस बार नवमी तिथि का आरंभ 21 नवंबर यानी आज सुबह 3 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और नवमी तिथि का समापन 22 नवंबर को रात 1 बजकर 9 मिनट पर होगा. अक्षय नवमी का पूजन मुहूर्त 21 नवंबर को सुबह 6 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 7 मिनट तक होगा.
अक्षय नवमी शुभ योग (Akshay Navami 2023 Shubh Yog)
इस बार की अक्षय नवमी बेहद खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन बेहद खास योग बनने जा रहे हैं. दरअसल, अक्षय नवमी के दिन इस बार रवि योग और हर्षण योग बनने जा रहा है.
रवि योग- 21 नवंबर को रात 8 बजकर 1 मिनट से लेकर 22 नवंबर को सुबह 6 बजकर 49 मिनट तक
हर्षण योग- 21 नवंबर को शाम 5 बजकर 41 मिनट से लेकर 22 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 46 मिनट तक
अक्षय नवमी की पूजा विधि (Akshay Navami Pujan Vidhi)
आंवला नवमी के दिन स्नान करके पूजा करने का संकल्प लें. प्रार्थना करें कि आंवले की पूजा से आपको सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का वरदान मिले. इसके बाद आंवले के वृक्ष के निकट पूर्व की ओर मुख करके जल अर्पित करें. वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और कपूर से आरती करें. वृक्ष के नीचे निर्धनों को भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन करें.
अक्षय नवमी उपाय (Akshay Navami Upay)
आंवले का वृक्ष घर में लगाना वास्तु की दृष्टि से भी शुभ माना जाता है. इस दिन आंवले के पेड़ पर हल्दी का स्वस्तिक बनाएं. इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी. ऐसा कहते हैं कि आंवले के बीजों को हरे कपड़े में बांधकर अपने पास रखने से आर्थिक लाभ होता है. इस पोटली को आप तिजोरी या धन के स्थान पर भी रख सकते हैं. अगर आप व्यापारी हैं तो आवले के बीजों की बंधी पोटली अपने गल्ले में रख सकते हैं.
अक्षय नवमी का महत्व (Akshay Navami significance)
कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को यह पर्व मनाया जाता है. ऋग्वेद में बताया गया है कि इस दिन सतयुग आरम्भ हुआ था. इसलिए इस दिन व्रत, पूजा, तर्पण और दान का विशेष महत्व होता है. आंवला नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था. इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है.