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Basant Panchami 2022: रामायण काल से है बसंत पंचमी का खास कनेक्शन, जानें पूजा विधि, कथा और महत्व

बसंत ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य मन को मोहित करता है. इस ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है, जिससे यह बसंत पंचमी का पर्व कहलाता है. बसंत पंचमी का संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है. इसी दिन भगवान राम सीताजी की खोज करते हुए शबरी की कुटिया में पहुंचे थे.

Basant Panchami 2022 Basant Panchami 2022
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी,
  • 04 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:07 AM IST
  • बसंत पंचमी से होती है बसंतोत्सव की शुरुआत
  • 5 फरवरी 2022, शनिवार को है बसंत पंचमी

Basant Panchami 2022: प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन यानि पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का महापर्व मनाया जाता है. इस दिन विद्या और कला की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा का विधान है. बसंत पंचमी से बसंतोत्सव की शुरुआत होती है, जो होली तक चलता है. ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद बताते है कि इस साल बसंत पचंमी 5 फरवरी 2022, शनिवार को मनाई जाएगी. ऐसे में पंचमी तिथि 5 फरवरी को सुबह 3 बजकर 48 मिनट पर शुरू हो जाएगी और 6 फरवरी की सुबह 3 बजकर 46 मिनट तक रहेगी.

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शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है. बसंत पंचमी को श्रीपंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. बसंत पंचमी के दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं. ऋग्वेद में माता सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है कि "प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु" अर्थात मां आप परम चेतना हो. देवी सरस्वती के रूप में आप हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हो. हममें जो आचार और मेधा है, उसका आधार मां आप ही हो. इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है.

बसंत पंचमी की कथा
ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने बताया कि सृष्टि रचना के दौरान भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की. ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है. विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया. पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगे. इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई. यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी. जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी. ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ. पवन चलने से सरसराहट होने लगी. तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है.

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ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद

बसंत पंचमी का महत्त्व 
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि बसंत पंचमी का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है. जब मां सीता को रावण हर कर लंका ले गया तो भगवान श्री राम उन्हें खोजते हुए जिन स्थानों पर गए थे, उनमें दंडकारण्य भी था. यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी. जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध बुध खो बैठी और प्रेम वश चख चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी. कहते हैं कि गुजरात के डांग जिले में वह स्थान आज भी है, जहां शबरी मां का आश्रम था. बसंत पंचमी के दिन ही प्रभु रामचंद्र वहां पधारे थे. इसलिए बसन्त पंचमी का महत्व बढ़ गया.

इसी दिन गुरुकुल जाते थे बच्चे
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. मां सरस्वती ज्ञान की देवी मानी जाती है. गुरु शिष्य परंपरा के तहत माता-पिता इसी दिन अपने बच्चे को गुरुकुल में गुरु को सौंपते थे. यानि बच्चों की औपचारिक शिक्षा के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दिन कोई नया काम शुरू करना, बच्चों का मुंडन संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या अन्य कोई शुभ काम करना बड़ा ही अच्छा माना जाता है. विद्या व कला की देवी सरस्वती इस दिन मेहरबान होती हैं. इसलिये उनकी पूजा की जाती है. कलाजगत से जुड़े लोग भी इस दिन को अपने लिये बहुत खास मानते हैं. चाहे वह कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब इस दिन का प्रारम्भ अपने वाद्य यंत्रों और उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं.

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मां सरस्वती की पूजा विधि
ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद बताते है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने के लिए सबसे पहले एक जगह मां सरस्वती की प्रतिमा रखें. इसके बाद कलश स्थापित कर सबसे पहले भगवान गणेश का नाम लेकर पूजा करें.  सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें स्नान कराएं. माता को पीले रंग के फूल अर्पित कर माला और सफेद वस्त्र पहनाएं, फिर मां सरस्वती का पूरा श्रृंगार करें. माता के चरणों पर गुलाल अर्पित कर पीले फल या फिर मौसमी फलों के साथ-साथ बूंदी चढ़ाएं.  माता को मिश्री मिश्रित खीर का भोग लगाएं. सरस्वती ज्ञान और वाणी की देवी हैं. इसलिए पूजा के समय पुस्तकें या फिर वाद्ययंत्रों का भी पूजन करें. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का पूजन के बाद हवन किया जाता है. इसलिए मां सरस्वती के ''ॐ श्री महासरस्वत्यै नम:" मंत्र से जाप कर हवन करें.

 

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