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चाणक्य: घर स्वर्ग समान बनाने के लिए इन 3 चीजों का होना जरूरी

आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र ग्रंथ में जहां जीवन जीने की कला को लेकर कई नीतियों का जिक्र किया है, तो वहीं जीवन से जुड़े हर एक पहलू पर भी कई तरह की बातों का जिक्र किया है. इस श्लोक के जरिए चाणक्य ने घर को स्वर्ग के समान बनाने के लिए तीन चीजों का होना अहम बताया है.

Chanakya Niti: चाणक्य नीति Chanakya Niti: चाणक्य नीति
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 4:53 PM IST

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र ग्रंथ में जहां जीवन जीने की कला को लेकर कई नीतियों का जिक्र किया है, तो वहीं जीवन से जुड़े हर एक पहलू पर भी कई तरह की बातों का जिक्र किया है. इस श्लोक के जरिए चाणक्य ने घर को स्वर्ग के समान बनाने के लिए तीन चीजों का होना अहम बाताया है.

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परोपकरणं येषां जागर्ति हृद्ये सताम् |
नश्यन्ति विपदस्तेषां संपदः स्यु पदे पदे ||

इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इंसान को परोपकारी की भावना से परिपूर्ण होना चाहिए. परोपकार में ही इंसान का आत्म-कल्याण निहित होता है. चाणक्य कहते हैं कि जिनका हृदय परोपकार से भरा हुआ है, उन्हें कभी विपत्तियों का सामना नहीं करना पड़ता. उनके मार्ग की समस्त बाधाएं अपने आप नष्ट हो जाती हैं और वे कदम-कदम पर सफलता प्राप्त करते हैं. परोपकार से युक्त इंसान दु:ख रहित होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है, इसलिए इंसान को यथासंभव परोपकार करते रहना चाहिए.

यदि रामा यदि च रमा अहितनयो विनयगुणोपेतः। 
यदि तनये तनयोत्पतिः सुखमिन्द्रे किमाधिक्यम् ।।

इस श्लोक में सदाचारिणी एवं पतिव्रता पत्नी, सदगुणों से युक्त पुत्र-पौत्र और आवश्यकताएं पूर्ण करने हेतु पर्याप्त धन इंसान के जीवन को सुखमय बनाने के लिए चाणक्य ने उपयुक्त तीनों को अहम माना है. चाणक्य कहते हैं कि यदि इंसान को ये तीनों चीजें मिल जाएं तो उसके लिए उसका घर ही स्वर्ग समान हो जाएगा. फिर उसे किसी और स्वर्ग की कोई इच्छा नहीं रहेगी.

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आहरनिद्रामय मैथुननानि, समानि चैतानि नृणा पशूनाम।
ज्ञानपं नराणामधिको विशेषो ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:।।

इस श्लोक के जरिए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संसार के सभी जीवों की तरह इंसान भी उदर-पोषण, भय, निद्रा, संभोग और संतानोप्ति की क्रियाएं करता है. यदि इस दृष्टि से देखा जाए तो पशुओं और इंसान में शारीरिक संरचना के अतिरिक्त कोई विशेष अंतर नहीं होता है, लेकिन केवल अचरण ही इंसान को पशुओं से श्रेष्ठ सिद्ध करता है. इनमें भी धर्माचारण अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो धर्म-कर्म-नैतिक गुणों से युक्त  है, असल में वहीं इंसान कहलाने के लायक है. इसके विपरीत इनसे रिक्त इंसान पशु के समान होता है.

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