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Chhath Puja 2021: द्रौपदी ने इस गांव में की थी छठ पूजा, जानें पौराणिक कथा

Chhath Puja 2021: कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से छठ महापर्व की शुरुआत हो जाती है. छठ का महापर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है. छठ पर्व की कथाओं की बात करें, तो रामायण से लेकर महाभारत तक में इस कथा के छिटपुट वर्णन मिलते हैं. ऐसी ही एक कथा जुड़ी है महाभारत के समय की, जब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी.

द्रौपदी ने इस गांव में की छठ पूजा द्रौपदी ने इस गांव में की छठ पूजा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:15 PM IST
  • झारखंड के इस गांव में पांडव रुके थे कई दिनों तक
  • अर्जुन ने तीर मारकर जमीन से निकाला था पानी

Chhath Puja 2021: झारखंड के रांची में छठ पूजा का खास महत्व है. हालांकि ये पर्व ​बिहार और यूपी में बड़े स्तर पर मनाया जाता है और यहां की परंपराएं अलग हैं. उसी तरह रांची के नगड़ी गांव में छठ पूजा को लेकर रीति अलग ही है. यहां पर व्रती ना तो नदी और ना ही तालाब में अर्घ्य देते हैं, बल्कि एक कुएं में छठ पूजा होती है.

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ये है मान्यता
पौराणिक कहानी के अनुसार रांची के नगड़ी गांव में स्थित इस कुंए के पास पांडवों की पत्नी द्रौपदी सूर्य देव की उपासना के साथ ही अर्घ्य भी दिया करती थीं. कहते हैं कि वनवास के दौरान पांडव झारखंड के इस इलाके में काफी दिनों तक ठहरे थे. बताया गया है कि एक बार जब पांडवों को प्यास लगी और दूर-दूर तक पानी नहीं मिला तब द्रौपदी के कहने पर अर्जुन ने जमीन में तीर मार कर पानी निकाला था. जमीन से जैसे ही पानी की धारा निकली, तो पांडव अपनी प्यास बुझाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन उससे पहले ही द्रौपदी ने उन्हें रोक दिया. द्रौपदी ने पहले सूर्य देव को अर्घ्य दिया और सूर्यदेव से कहा कि हमारी इतनी कठिन परीक्षा लेने के लिए आपको भी अपना ताप सामान्य से अधिक बढ़ा लेना पड़ा होगा. इस जल से पहले आप शीतल हो लीजिए. यह कहते हुए द्रौपदी ने सूर्य देव को अर्घ्य दिया. सूर्यदेव द्रौपदी की आस्था देखकर प्रसन्न हो गए और  दृढ़ निश्चय और उसकी आस्था देखकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपना तेज कम कर लिया. इसके बाद द्रौपदी और पांडवो ने सूर्य देव को नि​तदिन अर्घ्य देने शुरू कर दिया. इतना ही नहीं द्रौपदी कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की विशेष पूजा करती थी. जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें अक्षय पात्र दिया था. 

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भीम का ससुराल 
मान्यता ये भी है कि नगड़ी गांव में ही भीम का ससुराल भी था. भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच का जन्म भी यहीं हुआ था. एक दूसरी मान्यता के मुताबिक महाभारत में वर्णित एकचक्रा नगरी नाम ही अपभ्रंश होकर अब नगड़ी हो गया है.

दो बड़ी नदियों का भी उदगम स्थल 
स्वर्ण रेखा नदी दक्षिणी छोटानागपुर के इसी पठारी भू-भाग से निकलती है. इसी गांव के एक छोर से दक्षिणी कोयल तो दूसरे छोर से स्वर्ण रेखा नदी का उदगम होता है. स्वर्णरेखा झारखंड के इस छोटे से गांव से निकलकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल होती हुई गंगा में मिले बिना ही सीधी समुद्र में जाकर मिल जाती है. इस नदी का सोने से भी संबंध है. जिसकी वजह से इसका नाम स्वर्णरेखा पड़ा है. बता दें कि स्वर्ण रेखा नदी की कुल लंबाई 395 किलोमीटर से अधिक है. इसके साथ ही कोयल भी झारखंड की एक अहम और पलामू इलाके की जीवन रेखा मानी जाने वाली नदी है. यहां के बुजुर्ग दोनों नदियों का आपस में जुड़ा हुआ बताते है. इस कुआं से पूरब की ओर जो धार फूट जाती है, वह स्वर्णरेखा का रूप ले लेती है और इस कुएं से जो उत्तर की ओर धार फूटती है, वह कोयल नदी का रूप ले लेती है.
 

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