
भगवान दत्तात्रेय को भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का अंश माना जाता है. इनका जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा को हुआ था इसलिए इस पूर्णिमा का बहुत महत्व होता है. इस बार दत्तात्रेय जयंती सात दिसंबर यानी कल मनाई जाएगी. सनातन धर्म में भगवान दत्तात्रेय का विशिष्ट स्थान है. इनके अंदर गुरु और ईश्वर दोनों का स्वरूप निहित होता है. मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय केवल स्मरण मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं. दत्तात्रेय जयंती पर इनकी पूजा का खास महत्व होता है.
भगवान दत्तात्रेय की पूजा का महत्व
महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय तीन मुखधारी है. दत्तात्रेय भगवान की जयंती मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. इनके छह हाथ हैं. इन्होंने प्रकृति, पशु पक्षी और मानव समेत अपने चौबीस गुरु बनाए थे. इनकी उपासना तत्काल फलदायी होती है और ये भक्तों के कष्टों का शीघ्र निवारण करते हैं. इस दिन भगवान दत्तात्रेय का पूजन और मंत्र का जाप करने से सुख-समृद्धि मिलती है, सभी तरह के पाप, रोग-दोष और बाधाओं का नाश होता है. साथ ही कर्म बंधन से मुक्ति मिलती है.
दत्तात्रेय जयंती की पूजन विधि
पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन हुआ था. इनका पूजन प्रदोष काल में करने का विधान है. माता अनुसूया के सतीत्व परीक्षण के वरदान स्वरूप त्रिदेवों के अंश दत्तात्रेय को पुत्र के रूप में जन्म मिला था.
इस दिन सुबह सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर मंदिर की सफाई करें. इसके बाद सफेद रंग के आसन पर भगवान दत्तात्रेय के चित्र या मूर्ति की स्थापना करें. इसके बाद उनका गंगा जल से अभिषेक करें. उन्हें धूप, दीप, फूल आदि अर्पित करें. भगवान का मिठाई और फलों से भोग लगाएं. इस दिन अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता पढ़ने का विधान है. ऐसा करने से आपके जीवन के सभी दुख दूर होते हैं.