
Dev Uthani Ekadashi 2021: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं. भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, लेकिन देवोत्थान एकादशी के बाद से शुभ और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. इस साल देवउठनी एकादशी रविवार, 14 नवंबर 2021 को है. वैसे तो भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने और उनके जागने को लेकर कई कथाएं हैं, लेकिन इनमें से सबसे प्रचलित कथा लक्ष्मी जी से जुड़ी हुई है.
ये है पौराणिक कथा (Dev Uthani Ekadashi Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से पूछा कि 'हे नाथ! आप दिन-रात जागा करते हैं और जब सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष के लिए सो जाते है और उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं. अत: आप नियम से हर वर्ष निद्रा लिया करें.' लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- “देवी! तुमने ठीक कहा है. मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है. तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता. इसलिए तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा. उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा. मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी. मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी. इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा.”
देवउठनी एकादशी पूजा विधि:
- निर्जल या केवल जलीय चीजों पर उपवास रखना चाहिए.
- रोगी, वृद्ध, बच्चे और व्यस्त लोग केवल एक वेला उपवास रखें.
- अगर व्रत संभव न हो तो इस दिन चावल और नमक न खाएं.
- भगवान विष्णु या अपने ईष्ट देव की उपासना करें.
- इस दिन प्याज़, लहसुन, मांस, मदिरा और बासी भोजन से परहेज रखें.
- पूरे दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः " मंत्र का जाप करें.
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
इस एकादशी की पूजा एक विशेष विधि से की जाती है. एकादशी पूजा की विधि निम्नलिखित है-
- गन्ने का मंडप बनाकर उसके बीच में चौक बनाया जाता है.
- चौक के बीच में भगवान विष्णु की प्रतिमा रखते हैं.
- चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्ह बनाकर ढक दिया जाता है.
- भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा, फल और मिठाई चढ़ाते हैं.
- फिर घी का अखंड दीपक जलाते हैं, जो पूरी रात जलता है.
- भोर में भगवान के चरणों की पूजा की जाती है.
- फिर भगवान के चरणों को स्पर्श करके उन्हें जगाया जाता है.
- शंख, घंटा और कीर्तन की ध्वनि करके व्रत की कथा सुनी जाती है.
- इसके बाद से ही सारे मंगल कार्य शुरू किये जा सकते हैं.
- श्रीहरि के चरण-स्पर्श करके जो भी मांगते हैं वो ज़रूर मिलता है.