
Devshayani Ekadashi 2023: आज आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी है. इस एकादशी से श्री हरि विष्णु योग निद्रा मे चले जाते हैं और चार माह तक शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं. इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं. चातुर्मास में सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है. आइए देवशयनी एकादशी की पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं.
देवशयनी एकादशी पूजा विधि
देवशयनी एकादशी पर स्नानादि के बाद पूजा के स्थान को अच्छी तरह से साफ करें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला प्रसाद और पीला चंदन अर्पित करें. भगवान विष्णु को पान, सुपारी चढ़ाएं. फिर उनके आगे दीप जलाएं और पूजा करें. इसके बाद 'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्. विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्' मंत्र का जाप जरूर करें.
देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 29 जून को सुबह 3 बजकर 17 मिनट से लेकर 30 जून को सुबह 2 बजकर 42 मिनट तक रहेगी. इस दिन तीन शुभ मुहूर्तों में श्री हरि की पूजा की जा सकती है.
अमृत काल: सुबह 07:31 बजे से सुबह 09:09 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:56 बजे से दोपहर 12:52 बजे तक
विजय महूर्त: दोपहर 02:44 बजे से दोपहर 03:39 बजे तक
देवशयनी एकादशी की कथा
देवशयनी एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है. दैत्य राज राजा बलि को अपनी सत्ता, शक्ति का अहंकार हो गया था. कहते हैं तब विष्णु जी ने ब्राह्मण के वेश में उनसे तीन पग दान के रूप में मांग लिए थे. भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को नाप लिया. दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया. जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तब बलि ने अपना सिर आगे कर दिया.
राजा बलि की दानशीलता से भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने उससे वरदान मांगने के लिए कहा. तब बलि ने उनसे अपने महल में रहने की इच्छा जताई. विष्णु तो अपने वचन से बंधे हुए थे, उन्हें अब पूरा समय बलि के महल में बिताना था, लेकिन इस बात ने मां लक्ष्मी को विचलित कर दिया. बलि के बंधन में विष्णु को बंधा देख लक्ष्मी जी ने उसे अपना भाई बना लिया और भगवान को वचनमुक्त करने का अनुरोध किया.
कहते हैं तब बलि ने कहा वर्ष के चार माह नारायण पाताल लोक में शयन करें ताकि वो उनकी सेवा का सौभाग्य पा सकें. इन चार महीनों में सृष्टि का कार्य सुचारू रुप से चलता रहे. भक्तों का कल्याण होता रहे. कोई भगवान के द्वार से खाली हाथ लौटकर न जाए. इसके लिए नारायण अपनी सत्ता मां लक्ष्मी को सौंप देते है और मां लक्ष्मी भगवान शिव को ये शक्तियां दे देती हैं. यही वजह है कि भगवान के चार मास के शयन के दौरान महादेव पूरे जग का संचालन करते हैं.