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Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2023: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और कथा

Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2023: मान्यता के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करने से जातक की हर मनोकामना पूरी होती है. आज 9 फरवरी 2023 को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है. विघ्निहर्ता प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आर्शीवाद प्रदान करते हैं. आइये जानते हैं इस दिन गणेश पूजन की विधि और शुभ मुहू्र्त के बारे में...

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2023 द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2023
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:08 AM IST

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है. आज 9 फरवरी 2023 को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी है. माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा- अर्चना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना जाता है और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से ही होती है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के 32 स्वरूपों में से छठे स्वरूप की पूजा की जाती है. 

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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त (Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2023 Muhurat)

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - फरवरी 09, 2023 को  सुबह 06 बजकर 23 मिनट से 
चतुर्थी तिथि समाप्त - फरवरी 10, 2023 को सुबह 07 बजकर 58 मिनट पर

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर कैसे करें पूजा (Dwijapriya Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें. घर के मंदिर की साफ सफाई करें. इसके बाद भगवान गणेश को उत्तर दिशा की तरह मुंह करके जल अर्पित करें. जल अर्पित करने से पहले उसमें तिल जरूर डालें . दिनभर व्रत रखें. शाम को विधि-विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा करें . भगवान गणेश की आरती उतारें, भोग में लड्डू चढ़ाएं. रात में चांद देखकर अर्घ्य दें. लड्डू या तिल खाकर व्रत खोलें. 

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Dwijapriya Sankashti Chaturthi Vrat Katha)

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पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, एक शहर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. एक दिन साहूकार की पत्नी अपनी पड़ोसन के घर गई, जहां वह संकष्टी चतुर्थी की पूजा कर कथा कह रही थी. साहूकार की पत्नी ने कथा सुनने के बाद घर आकर अगले अगले चतुर्थी पर पूरी विधि-विधान के साथ पूजा कर उपवास रखा. भगवान गणेश के आशीर्वाद से साहूकार दंपत्ति को पुत्र की प्राप्ति हुई. साहूकार का बेटा बड़ा हो गया, तो साहूकारनी ने भगवान गणेश से फिर कामना की, कि उसके पुत्र का विवाह तय हो जाए, तो वह व्रत रखेगी, और प्रसाद चढ़ाएगी, परंतु बेटे का विवाह तय होने के बाद साहूकारनी प्रसाद चढ़ाना और व्रत करना भूल गई. जिससे भगवान गणेश ने नाराज़ होकर साहूकार के बेटे को शादी के दिन बंधक बनाकर एक पीपल के वृक्ष से बांध दिया.

कुछ समय के बाद पीपल के पेड़ के पास से एक अविवाहित कन्या गुजर रही थी, तभी उसने साहूकार के बेटे की आवाज़ सुनी और अपनी मां को बताया. यह सारी बात जानने के बाद साहूकार की पत्नी ने भगवान गणेश से क्षमा मांगी, प्रसाद चढ़ाकर उपवास रखा, और बेटे के वापस मिलने की कामना करने लगी. भगवान गणेश ने साहूकार के  बेटे को वापस लौटा दिया, और बड़े धूम-धाम से साहूकार ने अपने बेटे का विवाह किया. तभी से पूरे नगर में सभी लोग चतुर्थी व्रत कर भगवान गणेश की उपासना करने लगे. 

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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2023 Importance)

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने के लिए विशेष दिन माना गया है. यह दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में ज्यादा धूम-धाम से मनाया जाता है. द्विजप्रिय संकष्टीके दिन गणपति की पूजा करने से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शांति बनी रहती है. ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी घर में आ रही सारी विपदाओं को दूर करते हैं और व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं. 

 

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