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Eid-ul-Adha 2023: मुस्लिम क्यों करते हैं हज? जानें हज यात्रा से जुड़े नियम और परंपरा

हज को इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक माना जाता है. ऐसी परंपरा है कि शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिमों को अपने जीवन में कम से कम एक बार हज जरूर जाना चाहिए. हज पाप धोने और खुद को अल्लाह के और करीब लाने का रास्ता है.

Eid-ul-Adha 2023: मुस्लिम क्यों कहते हैं हज? जानें हज यात्रा से जुड़े नियम और परंपरा (Photo: Getty Images) Eid-ul-Adha 2023: मुस्लिम क्यों कहते हैं हज? जानें हज यात्रा से जुड़े नियम और परंपरा (Photo: Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 जून 2023,
  • अपडेटेड 7:40 PM IST

Eid-ul-Adha 2023: मुस्लिमों की पवित्र 'हज यात्रा' शुरू हो चुकी है. हर साल सऊदी अरब के पवित्र मक्का शहर में धुल हिज्जा महीने में हज की यात्रा की जाती है. धुल हिज्जा इस्लामिक कैलेंडर वर्ष का 12वां महीना है. इस बार हज 26 जून से शुरू होकर 1 जुलाई को खत्म होगा. हज पांच दिन की एक धार्मिक यात्रा है, जो सऊदी अरब के मक्का शहर में होती है. इस्लाम के अनुसार, हर मुस्लिम को अपने जीवन में एक बार हज जरूर जाना चाहिए. आइए आज आपको हज यात्रा के बारे में विस्तार से बताते हैं.

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हज को इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक माना जाता है. ऐसी परंपरा है कि शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिमों को अपने जीवन में कम से कम एक बार हज जरूर जाना चाहिए. हज पाप धोने और खुद को अल्लाह के और करीब लाने का रास्ता है.

कैसे करते हैं हज यात्रा?
हज करने वाले को हाजी कहते हैं. हाजी धुल-हिज्जा के सातवें दिन मक्का पहुंचते हैं. हज यात्रा के पहले चरण में हाजी इहराम बांधते हैं. यह एक सिला हुआ कपड़ा होता है, जिसे शरीर पर लपेटते हैं. इस दौरान सफेद कपड़ा पहनना जरूरी है. हालांकि, महिलाएं अपनी पसंद का कोई भी सादा कपड़ा पहन सकती है. लेकिन हिजाब के नियमों का पालन करना जरूरी है.

हज के पहले दिन हाजी तवाफ (परिक्रमा) करते हैं. तवाफ करते हुए हाजी सात बार काबा के चक्कर काटते हैं. इसके बाद सफा और मरवा नाम की दो पहाड़ियों के बीच सात बार चक्कर लगाए जाते हैं. ऐसा कहते हैं कि पैगंबर इब्राहिम की पत्नी हाजिरा अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी की तलाश में सात बार सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच चली थीं. इसके बाद हाजी मक्का से आठ किलोमीटर दूर मीना शहर इकट्ठा होते हैं. यहां पर वे रात में नमाज अदा करते हैं. 

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हज के दूसरे दिन हाजी माउंट अराफात पहुंचते हैं, जहां वो अल्लाह से अपने गुनाह माफ करने की दुआ करते हैं. फिर वे मुजदलिफा के मैदानी इलाकों में इकट्ठा होते हैं. वहां पर खुले में दुआ करते हुए पूरी एक रात ठहरते हैं.

शैतान को पत्थर मारने की परंपरा
हाजी तीसरे दिन जमारात पर पत्थर फेंकने के लिए दोबारा मीना लौटते हैं. जमारात तीन पत्थरों का एक स्ट्रक्चर है, जिसे शैतान और जानवरों की बलि का प्रतीक समझा जाता है. दुनियाभर के अन्य मुस्लिमों के लिए यह ईद का पहला दिन होता है. इसके बाद हाजी अपना मुंडन कराते हैं या बाल काटते हैं.

इसके बाद के दिनों में हाजी मक्का में दोबारा तवाफ और सई करते हैं और फिर जमारत लौटते हैं. मक्का से रवाना होने से पहले सभी हाजियों को हज यात्रा पूरी करने के लिए आखिरी बार तवाफ करनी पड़ती है.

क्यों मनाते हैं ईद अल अजहा?
हज यात्रा के आखिरी दिन ईद अल अजहा मनाया जाता है. यह ईद उल फितर के बाद इस्लामिक कैलेंडर का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार होता है. ईद अल अजहा के दिन जानवर की बलि देने और उसके मांस का एक हिस्सा गरीबों में बांटने की परंपरा होती है. यह परंपरा पैगंबर इब्राहिम की याद में निभाई जाती है.

 

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