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Holashtak 2025: आज से शुरू होलाष्टक, होलिका दहन तक इन कार्यों को करने की है मनाही

Holashtak 2025: फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन यानी चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि के दिन होली खेली जाती है. होली के 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं. होलाष्टक का समापन होलिका दहन के साथ ही होता है. इस अवधि में शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 6:58 AM IST

Holashtak 2025: चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है. होली के आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाते हैं. इन आठ दिनों में ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है. साथ ही इस दौरान शुभ कार्य करने भी वर्जित माने जाते हैं. इस बार होलाष्टक 7 मार्च यानी आज से शुरू हो रहे हैं और इसका समापन 13 मार्च होलिका दहन के दिन होगा और 14 मार्च को होली मनाई जाएगी. 

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आखिर होलाष्टक होता क्या है? 

मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति होलाष्टक के दौरान कोई मांगलिक काम करता है तो उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं व्यक्ति के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया भी मंडराने लगता है. इसलिए होलाष्टक के समय को शुभ नहीं माना जाता है.

होलाष्टक के दौरान न करें ये काम

1. इस दौरान शादी, विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या कोई नया बिजनेस खोलना वर्जित माना जाता है.  

2. शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर भी रोक लग जाती है.

3. किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है.  

4. इसके अलावा नव विवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है.

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होलाष्टक का महत्व (Holashtak Significance)

ये आठ दिनों का समय जिसे होलाष्टक कहते हैं वो भक्ति की शक्ति का प्रतीक माना गया है. कहते हैं कि इस समय के दौरान यदि तप किया जाये तो बहुत शुभ होता है. होलाष्टक पर पेड़ की एक शाखा काटकर उसे जमीन में लगाने का रिवाज़ हैं. उसके बाद इस शाखा पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं. बता दें कि इसी शाखा को प्रह्लाद का रूप माना जाता है.

होलाष्टक कथा (Holashtak katha)

होलाष्टक पर एक प्रचलित कथा है कि होलाष्टक के दिन ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था. कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी जिसके चलते महादेव क्रोधित हो गए थे. इसी दौरान उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से काम देवता को भस्म कर दिया था. हालांकि, कामदेव ने गलत इरादे से भगवान शिव की तपस्या भंग नहीं की थी. कामदेव की मृत्यु के बारे में पता चलते ही पूरा देवलोक शोक में डूब गया. इसके बाद कामदेव की पत्नी देवी रति ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की और अपने मृत पति को वापस लाने की मनोकामना मांगी जिसके बाद भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया था.

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