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कैलासा विवाद: जब ओशो ने अमेरिका में अपना शहर बसा मचा दी थी हलचल

आध्यात्मिक गुरु ओशो ने अमेरिका के ओरेगॉन में एक शहर की स्थापना कर ली थी. अमेरिका के हजारों लोग ओशो से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए थे. वो ओशो के लिए अपना घर छोड़कर आ गए और उनके बनाए आश्रम में रहने लगे थे. हालांकि, जल्द ही अमेरिकी सरकार को आश्रम की गैर-कानूनी गतिविधियों की खबर लग गई और ओशो को देश से निकाल दिया गया.

ओशो का जीवन विवादों से भरा रहा (Photo- Wikipedia) ओशो का जीवन विवादों से भरा रहा (Photo- Wikipedia)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 7:05 PM IST

स्वघोषित गुरु नित्यानंद की एक शिष्या का एक वीडियो हाल ही में चर्चा में आया था जिसमें वो संयुक्त राष्ट्र में बोल रही हैं. शिष्या विजयप्रिया स्वयं को कैलासा नाम के काल्पनिक देश की प्रतिनिधि बता रही थीं. संयुक्त राष्ट्र में विजयप्रिया ने दावा किया कि कैलासा में 20 लाख अप्रवासी हिंदू रहते हैं और 150 देशों में कैलासा ने अपने दूतावास और एनजीओ खोले हैं. नित्यानंद के कैलासा की तरह भारत के धर्मगुरु ओशो का अमेरिका में बसाया एक शहर भी बेहद चर्चित हुआ था. आइए जानते हैं ओशो के इस अनोखे सफर की पूरी कहानी.

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1970 के दशक में ओशो भारत में बेहद लोकप्रिय हुए थे. वो जितने लोकप्रिय थे, उतने विवादित भी थे. सेक्स पर उनके विचारों ने उन्हें काफी विवादित बना दिया था. लोग उन्हें 'सेक्स गुरु' कहते थे. 1970 में ओशो ने मनाली में नव-संन्यास की दीक्षा देना शुरू किया. वो पारंपरिक संतों की तरह नहीं थे और अपने प्रवचनों में वह सेक्स, खुलेपन आदि की बातें करते थे. उनके शिष्यों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई और 1974 में वह अपने शिष्यों के साथ पूना आ गए.

रजनीश आश्रम की शुरुआत

यहां उन्होंने रजनीश आश्रम की शुरुआत की थी. आश्रम की शुरुआत से ही ओशो की प्रसिद्धि दुनियाभर में फैलने लगी. इसी दौरान भारत में उन्हें लेकर विवाद काफी बढ़ गया. इस विवाद से परेशान होकर ओशो ने अपना आश्रम किसी शांत जगह बनाने की सोची जहां उनके हजारों शिष्य आराम से रह सकें. 

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ओशो की प्रवक्ता और निजी सचिव शीला बर्न्सटील, जिन्हें 'मां आनंद शीला' के नाम से जाना जाता था, ने 1981 में अमेरिका के ओरेगॉन में एक दलदली जमीन का प्लॉट खरीदा. 64,000 एकड़ के इस प्लॉट पर ओशो ने अपने शिष्यों के लिए नया शहर बना दिया. ओशो के इस नए साम्राज्य में करीब पांच हजार शिष्य रहते थे.

ओरेगॉन आश्रम में हर चीज की आजादी

ओशो की शिष्या रहीं ब्रिटेन की मनोवैज्ञानिक गैरेट ने बताया था कि आश्रम में हर उस चीज की आजादी थी जो सामान्य जीवन में नहीं किया जा सकता था.

गैरेट ने बताया था, 'वो सबकुछ एक सपने जैसा था. हंसी, आजादी, सेक्सुअल आजादी, प्रेम और दूसरी तमाम चीजें वहां मौजूद थी. हमसे कहा जाता था कि हम वहां अपने मन का करें. हम एक साथ समूह में बैठते थे, बातें करते थे, ठहाके लगाते थे, कई बार नंगे रहते थे.'

इस दौरान ओशो की आलीशान जिंदगी काफी विवादित रही. ओशो की महंगी घड़ियां, रोल्स रॉयस कार, डिजाइनर कपड़े चर्चा में केंद्र में रहे. ओशो के शिष्यों ने ओरेगॉन के आश्रम को रजनीशपुरम नाम के एक शहर के रूप में रजिस्टर कराने की कोशिश की थी. लेकिन स्थानीय विरोध के कारण यह संभव नहीं हो पाया.

स्थानीय कानूनों का उल्लंघन

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ओशो के शिष्य रहे ह्यूज मिल ने बीबीसी को एक इंटरव्यू में बताया था कि ओरेगॉन का आश्रम शुरू से ही स्थानीय कानूनों का उल्लंघन कर रहा था. आश्रम के कुछ शिष्य स्थानीय लोगों को परेशान करते थे. ओशो के शिष्यों पर सरकारी अधिकारियों के कत्ल की साजिश रचने के भी आरोप लगे.

स्थानीय प्रशासन ने ओशो के आश्रम पर एक चुनाव को प्रभावित करने के लिए लोकल रेस्तरां के खाने में जहर मिलाने का आरोप तक लगाया था.

ओशो के आश्रम में शिष्यों के साथ भी अमानवीय व्यवहार की खबरें सामने आईं. ह्यूग ने बताया था कि आश्रम में शिष्यों से हफ्ते में 80-100 घंटे काम कराया जाता था. इस कारण शिष्य बीमार रहने लगे. लेकिन आश्रम बीमार शिष्यों के इलाज के बजाए उन्हें इंजेक्शन देकर काम पर भेज देता था.

धीरे-धीरे आश्रम अमेरीकी सरकार ने ओशो पर पाबंदी लगानी शुरू की. अक्टूबर 1985 में अमेरिका ने अप्रवास नियमों के उल्लंघन के तहत ओशो पर 35 आरोप लगाए. ओशो को हिरासत में लिया गया और उन पर 4 लाख अमेरिकी डॉलर की पेनाल्टी लगाई गई. उन्हें देश छोड़ने और पांच सालों तक वापस न आने की सजा सुनाई गई.

14 नवंबर 1885 को ओशो अमेरिका छोड़कर भारत आ गए. भारत आने के बाद वो नेपाल चले गए लेकिन फिर 1987 में पूना अपने आश्रम में लौट आए. यहां वो फिर से हजारों शिष्यों को प्रवचन देने लगे. 19 जनवरी 1990 को ओशो की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई.

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कहा जाता है कि अमेरिका ने उन्हें जब हिरासत में रखा था तब उन्हें थैलिसियम का इंजेक्शन दिया था. जेल में उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों वाली चटाई पर सुलाया गया जिस कारण धीरे-धीरे ओशो के स्वास्थ्य में गिरावट आई और उनकी मृत्यु हो गई. 

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