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Kumbh Mela 2025 Date: अमृत कलश से गिरी बूंदों से जन्मा पवित्र मेला, पढ़ें महाकुंभ की कहानी

Kumbh Mela 2025: इस बार महाकुंभ 13 जनवरी से प्रारंभ होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन इसका समापन होगा. कहते हैं कि महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने से इंसान के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.

सदियां बीत गई. समय का पहिया घूमता रहा. कालखंड का चक्र बदलता रहा. लेकिन कुंभ मेले का वैभव बढ़ता गया सदियां बीत गई. समय का पहिया घूमता रहा. कालखंड का चक्र बदलता रहा. लेकिन कुंभ मेले का वैभव बढ़ता गया
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 6:00 AM IST

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेला लगा हुआ है. इस महाकुंभ का समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा. दूर-दूर से लोग आस्था की डुबकी लगाने प्रयागराज पहुंच रहे हैं. कहते हैं कि महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने से इंसान के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महाकुंभ शुरुआत कैसे हुई और इसका आध्यात्मिक इतिहास क्या रहा है. आइए आज आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.

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कैसे शुरू हुआ महाकुंभ?
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था. इस मंथन से अनेक अद्भुत वस्तुएं निकलीं थीं. इन्हीं में से एक था अमृत कलश. इस अमृत कलश की सुरक्षा का जिम्मा बृहस्पति, सूर्य, चुंद्र और शनि देवता को सौंपा गया. मान्यता के अनुसार, चारों देवता असुरों से बचकर अमृत कलश को लेकर भाग गए. 12 साल तक असुरों ने उनका पीछा किया और देवताओं-दानवों के बीच युद्ध छिड़ गया.

इस युद्ध में अमृत कलश की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं. ये स्थान थे- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में बूंदे. मान्यता है कि जिन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, वो स्थान पवित्र हो गए. और इन स्थानों पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसीलिए इन चारों स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ का मेला लगता है.

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उसमें भी प्रयागराज में लगने वाले कुंभ मेले का विशेष महत्व है. यह ऐसा स्थान है, जहां बुद्धिमत्ता का प्रतीक सूर्य का उदय होता है. ये वो स्थान हैं, जिसे ब्रह्माण्ड का उद्गम और पृथ्वी का केंद्र माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि ब्रह्माण्ड की रचना से पहले ब्रम्हाजी ने यहीं अश्वमेघ यज्ञ किया था. दश्वमेघ घाट और ब्रम्हेश्वर मंदिर इस यज्ञ के प्रतीक स्वरूप अभी भी यहां मौजूद हैं.

महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं है, बल्कि लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है. यह हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजने और धर्म को समाज से जोड़कर रखने का महापर्व भी है. तभी तो लोग दूर-दूर से हर-हर गंगे के जयकारों के साथ आस्था और अद्वतीय भक्ती को समेटे यहां चले आते हैं. जब लोग यहां संगम के घाट पर डुबकी लगाकर मां गंगे का जयकारे बोलते हैं तो मानों समूचा जनसमूह एक हो जाता है. महाकुंभ के दौरान शाही स्नान पर पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाने और सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा देने से जीवन के सारे दुख-संकट दूर हो जाते हैं.

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