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Kumbha sankranti 2022: यमराज के सामने गुणवती को हुआ इस बड़ी भूल का एहसास..., पढ़ें कुंभ संक्रांति की ये रोचक कथा

Kumbha sankranti 2022: सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है. जब सूर्य देव अपनी राशि परिवर्तन करते हुए कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे कुंभ संक्रांति (Kumbha Sankranti) कहा जाता है. 13 फरवरी 2021 रविवार के दिन कुंभ संक्रांति मनाई जाएगी. कुंभ संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है.

यमराज यमराज
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 13 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:08 AM IST
  • कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे सूर्य देव
  • जरूर पढ़ें या सुनें कुंभ संक्रांति की कथा

Kumbha sankranti 2022: कुंभ संक्रांति 2022 का यह पर्व हिंदू धर्म में बेहद ही खास महत्व रखता है. सूर्य देव 13 फरवरी यानि आज रविवार को मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य एक राशि में लगभग एक महीने तक रहते हैं. इस दिन पूजा, दान, स्नान का विशेष महत्व माना गया है. वहीं इस दिन कुंभ संक्रांति की कथा भी जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए.  ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली हर बाधा दूर हो जाती है.

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कुंभ संक्रांति कथा (Kumbha Sankranti Katha)
कुंभ संक्रांति के दिन से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में हरिदास नाम का एक ब्राह्मण हुआ करता था. हरिदास विद्वान होने के साथ-साथ बेहद ही धार्मिक और दयालु स्वभाव का था. हरिदास की पत्नी का नाम गुणवती था. अपने पति की तरह गुणवती भी धार्मिक कार्यों में लीन रहती थीं और कभी भी किसी का अनादर नहीं करती थीं. गुणवती ने अपने जीवन में सभी देवी देवताओं का व्रत किया लेकिन मृत्यु के देवता धर्मराज की न तो कभी पूजा की और नाहीं उनके नाम से कभी भी दान और पुण्य दिया.  ऐसे में मृत्यु के पश्चात जब चित्रगुप्त उनके पापों का लेखा-जोखा पढ़ रहे थे तब उन्होंने गुणवती को अनजाने में हुई अपनी इस गलती के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि, ‘हे देवी! तुमने जीवन भर सभी देवी देवताओं का व्रत, पूजन आदि पूरी श्रद्धा से किया है लेकिन धर्मराज के नाम से नाहीं कभी कोई दान पुण्य किया नाहीं पूजा-पाठ किया. यह बात सुनकर गुणवती ने कहा, ‘भगवान यह गलती मुझसे अनजाने में हुई है. ऐसे में इसे सुधारने का मुझे कोई उपाय बताइए.’ 

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तब धर्मराज ने कहा कि, जब सूर्य देवता उत्तरायण में जाते हैं यानी मकर संक्रांति के दिन से मेरी पूजा शुरु कर देनी चाहिए. इसी क्रम में चलते हुए पूरे वर्ष भर मेरी कथा सुननी और पूजा करनी चाहिए.  इसमें गलती से भी कोई भूल नहीं होनी चाहिए. मेरी पूजा के दौरान मन में किसी तरह का कोई पाप, किसी के बारे में कोई बुरा विचार, कोई छल, कपट, नहीं होना चाहिए. इसके बाद पूजा और व्रत विधि पूर्वक रखना चाहिए और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए.  जो कोई भी व्यक्ति ऐसा करता है और इसके बाद साल भर के बाद उद्यापन कर देता है उसे जीवन में सभी सुख समृद्धि अवश्य प्राप्त होती हैं. धर्मराज ने यह भी कहा कि, मेरे साथ-साथ चित्रगुप्त जी की भी पूजा अवश्य करनी चाहिए. उन्हें सफेद और काले तिलों के लड्डू का भोग अर्पित करें और अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन और दान आदि कराएं. ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी कोई कष्ट नहीं रहता है और उसके जीवन में समस्त सुख आजीवन बने रहते हैं. 

 

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