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Mahalaxmi Vrat 2024 Date: महालक्ष्मी व्रत आज से शुरू, जानें इसकी पूजन विधि, नियम और पौराणिक कथा

Mahalaxmi Vrat 2024: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत का शुभारंभ हो जाता है और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर इसका समापन होता है. इस साल महालक्ष्मी व्रत 11 सितंबर से लेकर 24 सितंबर तक रहने वाले हैं.

इस साल महालक्ष्मी व्रत 11 सितंबर से लेकर 24 सितंबर तक रहने वाले हैं. इस साल महालक्ष्मी व्रत 11 सितंबर से लेकर 24 सितंबर तक रहने वाले हैं.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:00 AM IST

Mahalaxmi Vrat 2024 Date: हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत का शुभारंभ हो जाता है और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर इसका समापन होता है. महालक्ष्मी व्रत धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है. इन पवित्र दिनों में माता लक्ष्मी की पूजा, उपासना से धन संबंधी समस्याओं का नाश होता है. इस साल महालक्ष्मी व्रत 11 सितंबर से लेकर 24 सितंबर तक रहने वाले हैं.

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महालक्ष्मी व्रत का महत्व
महालक्ष्मी व्रत हिंदू धर्म में एक प्रमुख व्रत है, जिसमें लक्ष्मी जी की आराधना की जाती है. यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है. लेकिन पुरुष चाहें तो इस व्रत को रख सकते हैं. इस व्रत का मुख्य उद्देश्य परिवार की सुख-समृद्धि और धन-संपत्ति की प्राप्ति है. ऐसा माना जाता है कि महालक्ष्मी व्रत करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आर्थिक संकट दूर होते हैं.

महालक्ष्मी व्रत की पूजन विधि
महालक्ष्मी व्रत में प्रतिदिन प्रातःकाल में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. महालक्ष्मी के समक्ष व्रत का संकल्प लें. पूजा के स्थान पर लक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित करें. उन्हें फल, फूल, चावल, हल्दी, कुमकुम, दीपक, अगरबत्ती और मिठाई अर्पित करें. इसके बाद वहीं बैठकर महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें. महालक्ष्मी व्रत की कथा सुनें. फिर शाम के समय व्रत का पारण करें और प्रसाद का वितरण करें.

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महालक्ष्मी व्रत के नियम
शास्त्रों के अनुसार, महालक्ष्मी व्रत रखने वाले साधक को 16 दिनों तक तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए. घर में साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखें. हर रोज मां लक्ष्मी के सामने दीपक जलाएं और उनकी विधिवत पूजा करें. यह व्रत रखने वालों को खट्टी चीजों से भी परहेज करना पड़ता है. लक्ष्मी जी की पूजा के बाद 16 दूर्वा घास की गांठ को पानी में डुबोकर शरीर पर छिड़कना चाहिए. इन 16 दिनों में क्रोध-अहंकार से बचें. किसी का अपमान न करें. वाणी पर संयम रखें.

महालक्ष्मी व्रत की कथा
महालक्ष्मी व्रत से जुड़ी एक कथा का वर्णन पुराणों में मिलता है. इस कथा के अनुसार, एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. जो भगवान विष्णु का भक्त था. एक बार उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिये और उससे वरदान मांगने को कहा. भगवान की बात को सुनने के बाद ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास घर में होने की कामना रखी. ब्राह्मण की इच्छा को सुनने के बाद विष्णु भगवान ने कहा कि, तुम्हारे गांव के मंदिर के पास एक महिला उपले थापती है. वही देवी लक्ष्मी हैं उस स्त्री यानि देवी लक्ष्मी को अपने घर आने का आमंत्रण दो. 

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भगवान विष्णु के बताए अनुसार उस ब्राह्मण ने वैसा ही किया. वह उपले थापने वाली स्त्री यानि देवी लक्ष्मी के पास गया और उन्हें घर आने का निमंत्रण दिया. उसकी बातों को सुनकर देवी लक्ष्मी समझ गयीं कि यह काम भगवान विष्णु का है. इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि तुम 16 दिनों तक महालक्ष्मी का व्रत रखो और 16 वें दिन रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य दो. ऐसा करने से तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी. ब्राह्मण ने देवी की बातों को सुनकर विधि-विधान से महालक्ष्मी का व्रत रखा और 16वें दिन लक्ष्मी जी ने अपना वचन निभाया. तब से महालक्ष्मी का व्रत भारत के लोगों द्वारा रखा जाने लगा.

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