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Mahananda Navami 2021: महानंदा नवमी आज, लगातार हो रही धन की कमी तो कर लें ये उपाय

Mahananda Navami 2021: मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि अगर जीवन में परेशानियों से जूझ रहे हैं. मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है. धन की लगातार हानि हो रही है तो इस व्रत के करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं. इस बार महानंदा नवमी 12 दिसंबर यानी आज है.

Mahananda Navami 2021 Mahananda Navami 2021
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 12 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 7:39 AM IST
  • पढ़ें महानंदा नवमी व्रत की कथा
  • विधि विधान से करें मां लक्ष्मी की पूजा

Mahananda Navami 2021 Date: महानंदा नवमी के दिन मां लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि अगर जीवन में परेशानियों से जूझ रहे हैं. मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है. धन की लगातार हानि हो रही है तो इस व्रत के करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं.  इस बार महानंदा नवमी 12 दिसंबर यानी आज है. इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि-विधान से पूजा की जाए तो मां लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.   

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महानंदा नवमी पूजा विधि (Mahananda Navami 2021 Puja Vidhi)
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि महानंदा नवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठने के बाद घर का कचरा इकट्‍ठा करें. इसे सूप में भरकर बाहर फेंक दें.  ऐसा करने से अलक्ष्मी का विसर्जन होता है. इसके बाद स्नान कर साफ कपड़े पहन लें और फिर श्री महालक्ष्मी का आवाहन करें. पूजा के स्थान पर महालक्ष्मी मूर्ति स्थापित करने के बाद देवी मां को अक्षत, पुष्प, धूप, गंध आदि विधि पूर्वक अर्पित करें. अखंड दीया जलाने के बाद महालक्ष्मी के मंत्र ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै नम: का जाप करें. देवी मां को बताशे और मखाने का भोग लगाएं. इस दिन पूरी रात जागरण करना चाहिए. इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं.


महानंदा नवमी व्रत कथा (Mahananda Navami 2021 Vrat katha)
महानंदा नवमी की पौराणिक कथा एक साहूकार की बेटी से जुड़ी है. कथा के अनुसार एक नगर में रहने वाले साहूकार की बेटी बहुत धार्मिक प्रवृति की थी. वह प्रतिदिन पीपल के पेड़ की पूजा करती थी. उस पीपल के पेड़ में मां लक्ष्मी वास करती थीं. लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली. एक दिन मां लक्ष्मी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गईं और उसे खूब खिलाया-पिलाया. उसके बाद उसे उपहार देकर विदा किया और उससे बोलीं कि मुझे कब अपने घर बुला रही हो, इस पर साहूकार की बेटी उदास हो गई. वो सोचने लगी की देवी लक्ष्मी का सत्कार वह कैसे करेगी. फिर भी साहूकार की बेटी ने मां लक्ष्मी को अपने घर आने का न्योंता दे दिया. घर पहुंचने के बाद उसने सारी बात साहूकार को बताई.

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साहूकार भी बेटी की बात सुनकर चिंतित हो गया और सोचने लगा कि अपने घर पर वह मां लक्ष्मी का स्वागत कैसे करेगा. उसी समय साहूकार के घर में एक चील हीरों का हार गिरा कर चली गयी, जिसे बेचकर साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी के लिए सोने की चौकी, सोने की थाली और दुशाला खरीदी. लक्ष्मीजी थोड़ी देर बाद गणेश जी के साथ पधारीं.  साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी-गणेश की खूब सेवा की. लक्ष्मी-गणेश जी ने साहूकार की बेटी की सेवा से प्रसन्न होकर उसे  सुख-समृद्धि आर्शीवाद दिया.   

 

   

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