Advertisement

'ये पसंद आ गई है, हम इसे लेकर जाएंगे', मेहंदीपुर पहुंची 'प्रेत-पीड़ितों' की आपबीती

राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में हर रोज सैकड़ों, हजारों लोग हाजिरी लगाने आते हैं. कहते हैं कि यहां जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत जैसी बाधाओं का निवारण होता है. लोगों को भरोसा है कि यहां बालाजी महाराज के सामने अर्जी लगाने से ही उनका कल्याण होगा.

मेहंदापुर बालाजी मंदिर में अर्जी लगाने से दूर होती है भूत-प्रेत की बाधा मेहंदापुर बालाजी मंदिर में अर्जी लगाने से दूर होती है भूत-प्रेत की बाधा
सुमित कुमार/शोएब राणा
  • नई दिल्ली,
  • 25 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:52 PM IST

'रात-बेरात बीवी अचानक गहरी नींद से उठकर चीखने लगती है. मर्दों की तरह भारी आवाज में बात करती है. कभी जोरों से ठहाके लगाती है, कभी आंसुओं के साथ शोक मनाती है. दांत पीसते हुए जब सिर झटकती है तो सदमे से दिल कांप जाता है. चेहरे पर बिखरे बाल, सुर्ख लाल आंखें देख मन में दहशत बैठ जाती है.'

'दो बच्चे हैं मेरे. छोटे-छोटे. अपनी मां का ऐसा हाल देखकर घबरा जाते हैं. उससे दूर भागते हैं. इन मासूमों को अच्छे-बुरे की समझ ही क्या है. न जाने बच्चों के नसीब में ऐसी कितनी भयानक रातें और लिखी हैं.' कहते-कहते पवन की आंखों में आंसू उतर आए.

 
ये कहानी इकलौते पवन की नहीं है, बल्कि राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में हाजिरी लगाने वाले सैकड़ों, हजारों लोगों की है. वो लोग, जिनका जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत जैसे चक्करों में सब उजड़ गया. पर भरोसा है कि बालाजी के सामने अर्जी लगाने से ही उनका कल्याण होगा. तभी तो हर रोज फरियादी दूर-दूर से अपना दर्द लेकर यहां आते हैं.
 
यहां हर इंसान की अपनी कहानी, अपनी पीड़ा है. कोई पत्नी के सिर प्रेत आने की बात कहता है तो किसी की बहन पर बुरी आत्माओं का साया है. विज्ञान के नजरिए से इनके दर्द को समझना मुश्किल है. लेकिन दर्द एक भावनात्मक अनुभूति है. जो देखने से पता नहीं चलती. हमने यहां पवन जैसे और भी कई दुखी लोगों, परिवारों से बात की और उनके अंदर छिपी व्यथा को समझने का प्रयास किया.

Advertisement
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर

रामसिया गोरखपुर से आए और यहीं रह गए
सुबह करीब 11 बजे बालाजी के मुख्य भवन से थोड़ी दूर ठेले पर खीरे बेचते दिखे 40 साल के रामसिया. दुबला-पतला शरीर. रामसिया करीब 8-9 महीने पहले गोरखपुर से यहां आए थे. अब एक मजबूरी ने उन्हें यहां बांधकर रखा है. वो कहते हैं 'एक संकट मुझे यहां खींच लाया. मुझ पर प्रेत का साया है. भयंकर सपने आते हैं. आत्माएं दिखाई देती हैं. लड़ाई-झगड़े होते हैं. ऊपरी हवा ने सब तबाह कर दिया. यहां हूं तो राहत है, जिंदा हूं. चला जाऊंगा तो न जाने क्या होगा.' इतना कहकर रामसिया ने लंबी सांस भरी.
 
कैसे पता चला कि आप पर प्रेत का साया है?
'हमने जांच कराई थी, पंडित से. पता चला एक दुश्मन ने मुझ पर प्रेत छोड़ रखा है. तबसे सेहत एकदम खराब रहती है. सिर भारी रहता है. दवाई-गोली का भी असर नहीं होता. अब तो बालाजी के हाथ में है सब.'
 
इलाज कराने आए थे, फिर ठेला लगाना क्यों शुरू कर दिया?
'क्या करें मजबूरी है, साहब. बालाजी में इलाज के पैसे नहीं लगते. पर रहने और खाने का तो बंदोबस्त करना ही पड़ता है. इसलिए पेट भरने के लिए ठेला लगाते हैं. इसी से गुजारा चलता है.'
 
क्या बालाजी में दर्शन और पूजा-पाठ से कुछ फायदा हुआ है?
बिल्कुल! पहले से स्थिति बहुत बदली है. इसलिए अब घर वापस जाने की सोचता हूं. फिर साल में एकाध बार दर्शन को आऊंगा. ये पहला मौका था जब रामसिया के चेहरे पर मुस्कान और घर वापस लौटने की उम्मीद दिखाई दी. आगे बोले, 'घरवालों की बहुत याद आती है. तीन छोटे बच्चे हैं. उनका भी ख्याल आता है.'
 
मेहंदीपुर बालाजी धाम में तीन प्रमुख देवता विराजते हैं. एक तो स्वयं बालाजी महाराज, जिनके बारे में माना जाता है कि वे यहां जागृत अवस्था में विराजमान हैं. दूसरे प्रेतराज और तीसरे भैरोनाथ. जिनका पहाड़ पर बसेरा है.
 
हरियाणा की 17 साल की युवती
इसी पहाड़ पर हमें एक परिवार मिला जो अपनी 17 साल की बेटी को लाया था. बच्ची के चेहरे पर मासूमियत के रंग बिखरे थे. आंखें ऐसी जैसे महीनों से नींद के इंतजार में जगी हों. बेटी 11वीं क्लास में पढ़ती है.
 
बच्ची की मां ने बताया- '3-4 महीने से कुछ ठीक नहीं रहती है. बहुत सुस्त हो गई है. डॉक्टर कहते हैं ठीक हो जाएगी. पर दवाओं का तो कोई असर ही नहीं है. इसलिए यहां लाए हैं.' दरबार की तरफ देखते हुए कहा. इनके आगे एक शब्द नहीं बोलीं. बेटी की तकलीफ कहीं जग हंसाई का मंच न बन जाए. इस डर से थोड़ा बहुत कहकर खामोश हो गईं.
 
करीब 50 की उम्र के परिवार के एक सदस्य ने बताया कि लोग यहां ऊपरी चक्कर, वशीकरण, जादू-टोना जैसी समस्त समस्याओं के निवारण के लिए दूर-दूर से आते हैं. सिरदर्द, कंधे भारी, आंखों में जलन कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिनसे ऊपरी हवा का अंदाजा हो जाता है. दूसरा, जब दवाएं बेअसर होने लगे तो समझ आ जाता है कि ये प्रेत-पिशाच का चक्कर है.

Advertisement
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर

कानपुर की उर्मिला
कानपुर से आई 50 साल की उर्मिला ने बताया कि वो करीब 20 साल से यहां आ रही हैं, पति के साथ. 'गंदे-गंदे सपने आते थे. तबीयत एकदम खराब रहती थी. सिर पे शैतान का साया था. यहां आने लगे तो आराम पड़ा. तबसे साल में एक-दो बार दर्शन को आते हैं. अब एकदम ठीक हूं.'
 
तबीयत खराब होने पर कैसे लक्षण रहते थे, क्या डॉक्टर को दिखाया? 
'हां, पहले तबीयत बिगड़ते ही डॉक्टर के पास जाते थे. हर वक्त सिर दुखता था. कंधे भारी रहते थे. आंखों में जलन होती थी. पूरे शरीर में खुजली मारती थी. दवाओं पर पानी की तरह पैसा बहाया, बेटा. पर आराम नहीं हुआ. बाबा की शरण में आए तो जिंदगी बदल गई.'
 
पड़ोसी या रिश्तेदार आपकी ऐसी हालत पर क्या कहते थे?
'मुसीबत में कौन किसका होता है. सब मतलब के यार हैं. पड़ोसी घर का पानी तक नहीं पीते थे. रिश्तेदारों ने मुंह फेर लिया था. न किसी शादी में जाते, न किसी को घर बुलाते. लगता था समाज ने बहिष्कार कर दिया है. किससे क्या शिकायत करते. वक्त खराब था. चुप ही रहे.'

अचानक बंद हो गई थी जुबान, बोलने भी नहीं देते थे भूत-प्रेत
यहां इलाज के लिए आई एक महिला ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि कुछ सालों पहले अचानक एक दिन उसकी जुबान बंद हो गई. काफी कोशिशों से भी वह कुछ बोल नहीं पा रही थीं. जब बोला नहीं गया तो इशारों से परिवार को बताया. इसके बाद पड़ोस के ही एक बाबा ने झाड़-फूंक से इलाज किया. वो फिर से बोलने लगीं. वो दिन इन सब चीजों की शुरुआत थी.

Advertisement

इस घटना के कुछ दिनों बाद ही एक रात महिला को शरीर पर कुछ हावी महसूस हुआ. कंधे काफी ज्यादा भारी होने लगे. सिर में तेज दर्द था. इसके बाद उन्हें दौरा पड़ गया. दौरा पड़ने के बाद से सामान्य होने तक उसे कोई होश नहीं था. बाद में परिवार ने ही बताया कि वह मर्दों की आवाज में जोर-जोर से चीख रही थी.

चीखते हुए कह रही थी, 'हम इसे अपने साथ लेकर चले जाएंगे.' महिला का परिवार यह सब देखकर सहम चुका था. परिवार वालों ने बताया, इस रात के बाद अक्सर महिला को प्रेत संकट के दौरे पड़ने लगे. दौरा पड़ते ही उसकी आवाज में अचानक बदलाव आ जाता था. महिला की आंखें इतनी लाल हो जाती थी कि परिवार का कोई भी इंसान उसे पकड़ने तक की हिम्मत नहीं करता था.

जब वह मोटी आवाज में तेज-तेज चीखती थी तो पूरे परिवार का दिल कांप जाता था. जब परिवार को कुछ समझ नहीं आया तो वह आराम पाने के लिए मेहंदीपुर बालाजी धाम पहुंचे. महिला ने बताया कि अब वह सालों से यहां आ रही है और उसकी परेशानी काफी हद तक ठीक है.
 
आधी रात पान मांगता था प्रेत, साथ ले जाने की देता था धमकी
मध्य प्रदेश के सागर जिले की रहने वाली एक महिला ने बताया कि 2022 में शादी के कुछ दिनों बाद वह एक पीर दरगाह के पास से गुजर रही थी. महिला ने नई दुल्हन की तरह लाल जोड़ा पहना था. पीर दरगाह के पास एक नल था जहां उसके पति ने पानी पीने के लिए बाइक रोकी. कुछ घंटों बाद जब वह दोनों घर पहुंचे तो सबकुछ बदल गया.

Advertisement

महिला ने बताया कि घर पहुंचकर कंधों पर बहुत ज्यादा भारीपन महसूस होने लगा. तेज सिर दर्द हो रहा था. दवा खाकर दर्द नहीं निकला तो नई दुल्हन होने की वजह से उनकी नजर उतारी गई. नजर उतारने के बाद भी कुछ आराम नहीं मिला. संकट से पीड़ित महिला के साथ आए उनके भाई ने आगे की कहानी बयां की.

उन्होंने बताया, 'जब दीदी बीमारी हुई तो पहले दिन ही रात के करीब 2 बजे वह उठकर अपने पलंग के किनारे पर चुपचाप बैठ गईं. वह बहुत देर तक ऐसे ही बैठी रहीं जिसके बाद जीजा जी (पति) ने देखा तो तुरंत उनके ऐसे बैठने और इतनी देर रात तक न सोने की वजह पूछी. कई बार पूछने के बाद दीदी ने बेहद डरावनी आंखों से हमारी तरफ देखा और चीखने लगी.'

महिला के भाई ने आगे बताया कि, 'चीख सुनकर घर में सो रहे सभी लोग कमरे में पहुंच गए. वहां नई दुल्हन की ऐसी हालत देखकर उनके होश उड़ गए. जब सब लोगों ने दीदी को घेर लिया तो इन्होंने दो अलग-अलग आवाजों में बात करने शुरू की. दीदी ने तेज-तेज आवाज में बोलना शुरू किया कि हमें यह पसंद आ गई है. हमने दरगाह पर इसे नल के पास देखा था. इसके बाद दीदी ने अपने ससुराल के लोगों से पान लाने के लिए कहा. इससे पहले उन्होंने पूरी जिंदगी में कभी पान नहीं खाया था.'

Advertisement
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर

महिला के भाई ने आगे बताया कि, 'रात में पान की कोई दुकान नहीं खुली थी. इसके बाद दीदी के अंदर आए प्रेत ने परिवार के लोगों से पीला लड्डू मांगा. लड्डू खाते ही दीदी अचानक बेहोश होकर गिर गईं. इस रात के बाद से लगातार दीदी की तबियत खराब रहने लगी. तबियत बिगड़ते ही वो पान खाने की जिद करने लगतीं. फिर पान की वजह से मुंह में आए लाल पन को देखकर खुद ही रोने लगतीं.'

महिला ने आगे बताया कि जब वह होश में आती थीं तो उनके पूरे शरीर में बहुत ज्यादा दर्द होता था. पूरा शरीर भारी-भारी लगता था. लगातार यह परेशानी रहने लगी तो उन्होंने मेहंदीपुर बालाजी आना शुरू कर दिया. अब स्थिति में काफी सुधार है. बस कभी-कभी कंधे भारी और सिरदर्द रहता है.
 
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में प्रेत आत्मा या ऊपरी हवा से पीड़ित लोगों की आपबीती हमने खूब सुनी. अपनी आंखों से उनका दर्द भी देखा. अब समय था उनके बताए लक्षणों को वैज्ञानिक नजरिए से समझने का. इसके लिए हमने भोपाल के बंसल अस्पताल में कार्यरत सीनियर कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी से बात की.

क्या वाकई भूत-प्रेत इंसान के शरीर पर कब्जा कर लेते हैं?
डॉ. सत्यकांत कहते हैं कि इंसान के शरीर में भूत, प्रेत या आत्मा आने जैसी बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह महज एक अंधविश्वास है. विज्ञान तथ्यों और तर्कों के आधार पर किसी सिद्धांत को स्थापित करता है. साइंस की दुनिया में भूत-पिशाच जैसी बातों का कोई अस्तित्व नहीं है. सपने में भूत दिखना या शरीर में दाखिल होना, विज्ञान के नजरिए से बेबुनियाद है.
 
कुछ संस्कृतियों में पीढ़ी दर पीढ़ी लोग ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं. साइंस में इसे 'कल्चर-बाउंड सिन्ड्रोम' कहा जाता है. मनोविज्ञान के मुताबिक, शरीर में भूत-प्रेत का प्रवेश करना 'डिसोसिएटिव डिसॉर्डर' के लक्षण हो सकते हैं. जिसमें व्यक्ति को महसूस होता है कि कोई आत्मा उनके शरीर में आ गई है. या उनके क्रियाकलाप दूसरों के नियंत्रण में हैं. 'साइकोसिस' में भी कमोबेश ऐसे ही लक्षण देखे जाते हैं.

Advertisement
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के तीन पहाड़ पर प्रेत बाधा से पीड़ित महिला

अचानक आवाज बदल जाना, लगातार सिर हिलाना या शरीर में ज्यादा ताकत आ जाना, क्या इसे मल्टी पर्सनैलिटी डिसॉर्डर कहा जा सकता है?

इस सवाल पर डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि ये सब डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसॉर्डर (DID) के लक्षण हो सकते हैं. इसमें कोई शख्स अपने अंदर अलग-अलग व्यक्ति को जी सकता है. उनका अनुभव कर सकता है. समय के साथ-साथ इसमें बदलाव भी आ सकते हैं.
 
बचपन का कोई सदमा, मन के अंतरद्वंद्व या ऐसे घनिष्ठ सत्य जो हम किसी से नहीं कह पाए, इसके पीछे की वजह हो सकते हैं. साइंस ऐसा मानता है कि इसमें मनोचिकित्सा डिसॉर्डर या कई बार न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर भी जुड़ा हो सकता है. लेकिन इसमें कहीं से कहीं तक 'मैजिको रिलीजियस बिलीफ सिस्टम' पर काम करने की जरूरत नहीं होती है. ऐसी समस्या होने पर मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट या न्यूरोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए. ताकि इन समस्याओं का वैज्ञानिक निराकरण हो सके.
 
जिन्होंने शरीर में भूत या आत्मा आने का दावा किया उन्होंने सिरदर्द, बुखार और कंधों में दर्द आम लक्षण बताए. जिन पर कोई भी दवा बेअसर है. क्या कहता है साइंस?
 
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं मनोविज्ञान में इसे 'साइको समोटिक डिसॉर्डर' की कैटेगरी में रखा जाता है. इसमें हमारे मन का तनाव या चिंता शारीरिक लक्षणों में बदल जाता है. चूंकि यहां शारीरिक लक्षणों की वजह खराब मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी होती है. इसलिए इसमें पारंपरिक दवाओं का भी असर नहीं होता है. ऐसे में इंसान समझने लगता है कि उसकी बीमारी पर दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा है.
 
धीरे-धीरे इंसान 'मैजिको रिलीजयस ट्रीटमेंट' की तरफ चला जाता है. जो गलत है. ऐसे मामलों में आप मनोचिकित्सक की मदद काउंसलिंग या कॉग्निटिव बिहेवियर थैरेपी ले सकते हैं. इसमें मन के अंतरद्वंद को समझकर वैज्ञानिक पद्धति से इलाज किया जाता है.
 
मेहंदीपुरी बालाजी मंदिर में इलाज या भूत उतरवाने वालों में ज्यादातर महिलाएं ही क्यों होती हैं. मेहंदीपुर के पुजारी कहते हैं कि महिलाएं मानसिक रूप से पुरुषों के मुकाबले ज्यादा कमजोर होती हैं?
 
डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि महिलाएं मानसिक रूप से पुरुषों से कमजोर होती है, ये बहुत ही गैर-वैज्ञानिक बात है. शोध ये बताते हैं कि किसी भी तरह का मानसिक रोग महिला और पुरुष दोनों में समान रूप से हो सकता है. हालांकि डिप्रेशन, एन्जाइटी और डिसोसिएटिव डिसॉर्डर महिलाओं में ज्यादा सामान्य है. लेकिन इसके पीछे का कारण सामाजिक ज्यादा है.
 
हमारे यहां जो पारिवारिक व्यवस्था है, उसमें महिलाएं खुद को दबा हुआ महसूस करती हैं. उनके पास अभिव्यक्ति की आजादी के मौके बहुत कम होते हैं. उन्हें सुनने वाले लोग बहुत कम होते हैं. घर में आर्थिक या दूसरे मामलों में उनकी राय भी कम ही ली जाती है. इसलिए महिलाएं कई तरह के अंतरद्वंद्वों और मानसिक आघातों से जूझ रही होती हैं. इसलिए उनमें डिसोसिएटिव डिसॉर्डर जैसी समस्याएं ज्यादा हो सकती हैं.
 
अगर वाकई ये मानसिक बीमारी है तो लोग धार्मिक स्थलों पर जाकर प्रेत मुक्ति का दावा क्यों करते हैं. ये कैसे होता है?

Advertisement

डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं जब कोई व्यक्ति धार्मिक स्थल या मैजिको रिलीजियस प्रैक्टिस के लिए जाता है तो एक प्लेसीबो इफेक्ट काम करता है. इसमें इंसान को लगता है कि किसी ऊपरी हवा की वजह से उसकी तबियत खराब है. उस पर कोई बुरा साया है. और जब उसे लगता है कि धार्मिक स्थल पर उसकी मदद की जा रही है, तो इसमें मरीज का विश्वास तात्कालिक रूप से एक प्रभाव दिखा सकता है.
इसलिए हमें अंधविश्वास से दूर रहकर विज्ञान के आधार पर मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट से मिलना चाहिए.

(DISCLAIMER: इस स्टोरी में दी गई जानकारी मेहंदीपुर बालाजी मंदिर से जुड़ी मान्यताओं पर आधारित है. यहां होने वाले किसी भी दावे का आज तक समर्थन नहीं करता है.)

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement