
दुनियाभर में आज नववर्ष धूमधाम से मनाया जा रहा है. लोग जश्न में नांच-गाकर एक-दूसरे को नए साल की बधाइयां दे रहे हैं. साथ ही नववर्ष में आगे बढ़ने के लिए नए संकल्प ले रहे हैं. लेकिन भारत में नववर्ष सिर्फ एक जनवरी को नहीं बल्कि साल में पांच-पांच बार मनाया जाता है. इसकी वजह है कि सभी पंथों के अपने धार्मिक कैलेंडर हैं और उसी के मुताबिक उन धर्मों के अनुयायी अपना-अपना नववर्ष मनाते हैं.
हिन्दू नववर्ष कब से होता है?
सबसे पहले बात करते हैं हिन्दू धर्म की... तो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाया जाता है क्योंकि हिन्दू कैलेंडर में चैत्र को साल का पहला महीना है और शुक्ल प्रतिपदा को पहली तिथि माना जाता है. इस दिन को नव संवत भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचने की शुरुआत की थी और इसी दिन को विक्रम संवत के नए साल का आरंभ माना गया. ब्रिटिश कैलेंडर में ये तिथि अप्रैल के महीने में आती है. भारत में हिन्दू नववर्ष को अलग-अलग भूभाग में विभिन्न नामों से मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने देवी-देवाताओं की पूजा-अर्चना करते हैं तो कई जगहों पर धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन भी किया जाता है.
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को जैसे हिन्दू नववर्ष की शुरुआत माना जाता है, वैसे ही इस्लाम में मुहर्रम महीने की पहली तारीख को नया साल शुरू होता है, इसे हिजरी सन की शुरुआत कहा गया है. हजरत मोहम्मद जिस दिन मक्का से निकलकर मदीना आए, उसी दिन से हिजरी कैलेंडर की शुरुआत मानी जाती है. मुस्लिम धर्म में मुहर्रम और रमजान के महीने काफी महत्व रखते हैं. चैत्र-वैशाख की तरह इस्लामिक कैलेंडर में भी मुहर्रम-सफर जैसे 12 महीने होते हैं.
सिख धर्म में नए साल की शुरुआत बैसाखी से होती है. सिखों के नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक हर वर्ष 13 या 14 अप्रैल को नया साल मनाया जाता है. माना जाता है इसी दिन सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी और इसी दिन से देश के कई हिस्सों में फसलों की कटाई शुरू हो जाती है. वैशाख महीने की शुरुआत भी इस तारीख से होती है. जैन धर्म में दीपावली के आसपास नए साल की शुरुआत होती है और इसे वीर निर्वाण संवत का आरंभ कहा जाता है.
साल में दो बार मनाया जाता है नवरोज
पारसी धर्म में नए साल को नवरोज के नाम से जाना जाता है. यह परंपरा करीब तीन हजार साल पुरानी है और इस दिन की शुरुआत फारसी राजा जमशेद ने की थी. इसे जमशेद-ए-नौरोज के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने पारसी कैलेंडर पेश किया था. साल में दो बार 21 मार्च और 16 अगस्त को नवरोज मनाया जाता है. कुछ लोग इसे पारसी कैलेंडर के हिसाब से मनाते हैं तो कुछ शहंशाही कैलेंडर के मुताबिक नया साल यानी नवरोज मनाते हैं.
ईसाई धर्म में 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है. भारत में भी एक जनवरी से साल की शुरुआत होती है और 31 दिसंबर को साल का अंत होता है. भारत ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर देशों में एक जनवरी को नया साल मनाया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर 1 जनवरी को ही नववर्ष की शुरुआत क्यों माना गया और यह परंपरा कब से चली आ रही है जिसे पूरी दुनिया मानती है.
करीब 450 साल पुरानी है परंपरा
अब बताते हैं कि 1582 में एक जनवरी से नया साल मनाने की शुरुआत हुई थी और ये परंपरा करीब 450 साल पुरानी है. एक जनवरी को नया साल ग्रिगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मनाया जाता है. ये दुनिया का सबसे प्रचलित कैलेंडर माना गया और भारत समेत ज्यादातर मुल्कों ने इसी के मुताबिक सरकारी कामकाज की तारीख तय की हैं. इससे पहले जूलियन कैलेंडर का चलन था लेकिन उसमें कुछ बदलाव के बाद 1582 में रोम के पोप ग्रेगरी XIII ने ग्रिगोरियन कैलेंडर की शुरुआत की थी. इस कैलेंडर में 30 दिन के चार महीने, 31 दिन के सात महीने और फरवरी का महीना 28 दिन का होता है. लेकिन हर चौथे साल फरवरी में एक दिन जोड़ दिया जाता है तो 29 दिन की फरवरी होती है जिसे लीप ईयर भी कहा जाता है.
औपनिवेशिक काल के दौरान जब पूरी दुनिया पर ब्रिटिश राज कायम था तब भारत ने ग्रिगोरियन कैलेंडर को अपनाया था. देश में 1752 से यह कैलेंडर चलन में आया जो आजादी के बाद भी लागू रहा. संविधान लागू होने के दौरान हिन्दू विक्रम संवत को कैलेंडर के तौर पर जोड़ा गया लेकिन फिर भी सरकारी कामकाज के लिए आज भी देश में इसी कैलेंडर को मान्यता दी गई है.