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कुरान की कहानीः जानें कब और कैसे आई इस्लाम की ये सर्वोच्च किताब

इस्लाम में मसलकों, फिरकों और दूसरी तरह के मतभेदों के बावजूद तमाम मुसलमानों का यह अकीदा है कि कुरान एक आसमानी और अल्लाह के द्वारा भेजी गई अंतिम किताब है. कुरान में न तो अतिरिक्त एक शब्द जोड़ा जा सकता है और न ही हटाया जा सकता है. कुरान पैंगबर पर उतारा गया है.

इस्लाम की पवित्र किताब कुरान इस्लाम की पवित्र किताब कुरान
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 16 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 3:40 PM IST
  • मुसलमानों के लिए क्यों सर्वोच्च किताब हैं कुरान
  • कुरान में कुल 6,666 आयतें हैं, सबसे बड़ी आयत सूरह अल-बकरा
  • कुरान मुसलमान ही नहीं सारी इंसानियत के लिएः मौलाना मिस्बाही

कुरान इस्लाम की सर्वोच्च किताब है, जो अल्लाह के संदेशों का संकलन है. मसलकों, फिरकों और दूसरी तरह के मतभेदों के बावजूद तमाम मुसलमानों का यह अकीदा है कि कुरान एक आसमानी और अल्लाह के द्वारा भेजी गई अंतिम किताब है. इसे अल्लाह ने अपने फरिश्ते (देवदूत) जिब्राइल के जरिए पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब तक पहुंचाया.

मुसलमानों का अकीदा है कि कुरान में न तो अतिरिक्त एक शब्द जोड़ा जा सकता है और न ही हटाया जा सकता है. यही वजह है कि पिछले दिनों जब वसीम रिजवी ने कुरान की कुछ आयतों को हटाने की बात की तो शिया-सुन्नी, देवबंद-बरेलवी सहित तमाम मुस्लिम उसके खिलाफ एकजुट नजर आए. 

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कुरान शब्द का पहला जिक्र खुद कुरान में ही मिलता है, जहां इसका अर्थ है उसने पढ़ा. कुरान में कुरान का जिक्र 70 बार आया है. कुरान भी हर किताब की तरह कुछ भागों में बंटी हुई है. इसमें तीस सिपारे हैं. उन्हें पारे भी कहा जाता है. पूरी कुरान को एक साथ पढ़ने के बजाय थोड़ा-थोड़ा करके पढ़ने और हिफ़्ज (याद/कंठस्थ) करने में सहूलियत के लिए ऐसा किया गया है.

कुरान को मूल रूप से 114 अध्यायों में बांटा गया है. इन्हें सूरह कहते हैं. हर सूरह को एक नाम दिया गया. सूरह में आयतें होती हैं. आयत एक वाक्य होता है.  

कुरान में 6,666 आयतें

कुरान में कुल 6,666 आयतें हैं. कुछ आयतें बहुत छोटी हैं और कुछ बड़ी. कुरान की सबसे बड़ी सूरह अल-बकरा है. इसमें 286 आयतें हैं. सबसे छोटी सूरह अल-कौसर है. इसमें सिर्फ तीन आयतें हैं. इसके अलावा कुरान में कुल 540 रूकू, 14 सज्दा, 86,423 शब्द, 32,376 अक्षर और 25 नबियों व रसूलों का जिक्र किया गया है. मुस्लिम समुदाय के तमाम फिरके इस बात पर एकमत हैं कि यह अल्लाह की भेजी गई किताब है, जिस पर किसी तरह का शक या संदेह नहीं किया जा सकता है. 

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अल्लाह ने जिब्राइल के जरिए पहली बार कुरान को पैगंबर हजरत मुहम्मद पर नाजिल (अवतरित) किया. जब पैगंबर पहाड़ों में हिरा की गुफा में इबादत कर रहे थे. इसके बाद कुरान को पैगंबर हजरत मुहम्मद पर अल्लाह ने थोड़ा-थोड़ा करके 23 सालों में नाजिल किया. दूसरा अकीदा यह है कि ये एक मुकम्मल किताब है, जिसमें कभी कोई छेड़छाड़ या बदलाव नहीं हुए और न भविष्य में हो सकते हैं. लिहाजा कोई भी इसमें किसी तरह की कांट-छांट कर ही नहीं सकता. तीसरा अकीदा यह है कि अल्लाह ने खुद इस किताब की हिफाजत (रक्षा) की जिम्मेदारी ली है.

कुरान ने किताब की शक्ल कब ली
पैगंबर मुहम्मद की 632 ईसवीं वफात (निधन) के बाद खलीफा हजरत अबु बकर ने 934 ईसवीं के बाद कुरान को एक ग्रंथ के तौर पर इकट्ठा करने का फैसला किया ताकि उसे एक किताब की शक्ल देकर संरक्षित किया जा सके. जैद बिन साबित (655 ई) कुरान को इकट्ठा करने वाले पहले व्यक्ति थे, क्योंकि वह अल्लाह के नबी मुहम्मद के द्वारा पढ़ी गई आयतों और सूरों को लिखा करते थे. इस तरह से ज़ैद बिन साबित ने ही आयतों को एकत्र कर कुरान को किताब का रूप दिया. इसकी मूल प्रति अबू बकर को मिली. वहीं, शिया मुस्लिम समुदाय के मुताबिक अली इब्न अबु तालिब ने मुहम्मद के वफात के तुरंत बाद कुरान का एक पूर्ण संस्करण संकलित किया. 

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कुरान रमजान में आसमान से उतारी गई
कुरान की सुरह अलबकरा की आयत 185 में अल्लाह फरमाते हैं कि रमजान वो महीना है जिसमें आसमान से कुरान को उतारा गया. रमजान के महीने की वो रात कौन सी थी इसे साफ-साफ नहीं बताया गया है. हालांकि, उलेमा इसे लेकर अनुमान लगाते हैं कि रमजान के आखिरी असरा में यानी अंतिम दस दिनों में ताक रातें जैसे 21, 23, 25, 27 में से कोई एक रात है, जिसमें कुरान नाजिल हुई. इसीलिए रमजान को तालीम का महीना माना जाता है.

आसामानी किताब कुरान

तराबी नमाज में कुरान 
रमजान में पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज को तराबी नमाज कहा जाता है. इसे रमजान के चांद निकलने से लेकर ईद के चांद निकलते तक रात इशा की नमाज के बाद पढ़ा जाता है. इस नमाज में कुरान सुनाने का आयोजन किया जाता है ताकि लोग खुद कुरान की बातों को सुनकर उसपर अमल करें और अपने जैसे दूसरे इंसानों तक उन बातों को फैलाएं. कुरान में जिंदगी गुजर बसर करने के अल्लाह ने तरीके बताए हैं. इस्लामिक शरियत कुरान और हदीस पर आधारित है. कुरान पर ईमान रखना हर मुसलमान को लिए जरूरी बताया गया है.

कुरान सारी इंसानियत के लिए
मौलाना डॉ जिशान मिस्बाही कहते हैं कि इस्लाम की पवित्र किताब कुरान सिर्फ मुसलमानों के लिए अल्लाह ने नबी पर नहीं उतारी है बल्कि ये सारी इंसानियत के लिए है. कुरान हिदायत का रास्ता दिखाती है. इससे हर मुतक्की लाभ उठा सकता है. मुतक्की वो शख्स है, जो हक को और सच को तलाश करने वाला हो. कुरान पर किसी तरह का कोई मतभेद नहीं है. कुरान में हर समस्या का समाधान बताया गया है, बस उसे समझने की सलाहियत होनी चाहिए. कुरान में हर उस बात का जिक्र किया गया है, जो हमें सही और इंसानियत के रास्ते पर चलना सिखाती है.

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