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Pitru Paksha 2024: चतुर्दशी पर आज किन पितरों का होगा श्राद्ध? जानें तर्पण और पिंडदान की विधि

चतुर्दशी तिथि में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो. यानी जिन लोगों की मृत्यु अप्राकृतिक कारणों जैसे दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या या किसी अनहोनी के चलते हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी पर होता है.

 चतुर्दशी के श्राद्ध में विशेष तर्पण और पिंडदान किया जाता है चतुर्दशी के श्राद्ध में विशेष तर्पण और पिंडदान किया जाता है
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 6:00 AM IST

Pitru Paksha 2024: पितृपक्ष में आज चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध किया जाएगा. चतुर्दशी तिथि में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो. यानी जिन लोगों की मृत्यु अप्राकृतिक कारणों जैसे दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या या किसी अनहोनी के चलते हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी पर होता है. इसे घात श्राद्ध भी कहा जाता है. चतुर्दशी के श्राद्ध में विशेष तर्पण और पिंडदान किया जाता है. यह विधि शास्त्रों में वर्णित है और इसे विधिपूर्वक करने से पितरों की आत्मा की शांति मिलती है.

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स्नान और शुद्धिकरण
श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद, पूजा स्थान और आवश्यक सामग्री को शुद्ध किया जाता हैय

संकल्प
तिल, जल और कुश लेकर दिवंगत आत्मा के लिए संकल्प किया जाता है. संकल्प करते समय देवताओं और पितरों का आह्वान किया जाता है. इसमें श्राद्ध का उद्देश्य और श्रद्धा व्यक्त करते हुए श्राद्ध के लिए समर्पण की भावना रखी जाती है.

पिंडदान
पिंडदान श्राद्ध का मुख्य अंग होता है. चावल, तिल और जौ को मिलाकर गोल आकार के पिंड बनाए जाते हैं. इन पिंडों को कुशा पर रखकर दिवंगत आत्माओं के लिए समर्पित किया जाता है. पिंडदान करने के लिए सात या अधिक पिंड तैयार किए जाते हैं, जिन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है.

तर्पण
तर्पण में जल, तिल और जौ का मिश्रण हाथ में लेकर जल का अर्पण किया जाता है. इसे पवित्रता और श्रद्धा के साथ पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है. तर्पण करते समय दिवंगत आत्मा का स्मरण किया जाता है.

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ब्राह्मण भोज और दान
श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दक्षिणा देना आवश्यक माना जाता है. इसे 'पितृ भोज' भी कहा जाता है. ब्राह्मणों को प्रसन्न करके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने की परंपरा है. उन्हें भोजन कराने के बाद वस्त्र, अनाज, दक्षिणा और अन्य आवश्यक वस्त्र या सामग्रियां दान स्वरूप दी जाती हैं. यह दान पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए किया जाता है.

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