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Radha Ashtami 2022: कृष्ण के वृंदावन से जाने के बाद राधा का क्या हुआ? जानें कैसी थी दोनों की आखिरी मुलाकात

Radha Ashtami 2022: राधाष्टमी ही वह दिन होता है जब भक्त राधा रानी के शुभ चरणों के दर्शन कर पाते हैं, क्योंकि बाकी दिनों में राधा के पैर ढके रहते हैं. राधाष्टमी भगवान और मनुष्य के बीच एक अद्वितीय संबंध का प्रतीक है, जो श्रीकृष्ण और राधा रानी के निस्वार्थ प्रेम को दर्शाता है. इस साल राधा अष्टमी का त्योहार शनिवार, 04 सितंबर को मनाया जाएगा.

Radha Ashtami 2022: कृष्ण के वृंदावन से जाने के बाद राधा का क्या हुआ? जानें कैसी थी दोनों की आखिरी मुलाकात Radha Ashtami 2022: कृष्ण के वृंदावन से जाने के बाद राधा का क्या हुआ? जानें कैसी थी दोनों की आखिरी मुलाकात
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 8:41 PM IST

Radha Ashtami 2022: हिंदू धर्म में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी मनाने की परंपरा है. इस दिन श्रीकृष्ण और राधा रानी के भक्त राधे की धुन में सराबोर हो जाते हैं. राधाष्टमी ही वह दिन होता है जब भक्त राधा रानी के शुभ चरणों के दर्शन कर पाते हैं, क्योंकि बाकी दिनों में राधा के पैर ढके रहते हैं. राधाष्टमी भगवान और मनुष्य के बीच एक अद्वितीय संबंध का प्रतीक है, जो श्रीकृष्ण और राधा रानी के निस्वार्थ प्रेम को दर्शाता है. इस साल राधा अष्टमी का त्योहार रविवार, 04 सितंबर को मनाया जाएगा. आइए आज आपको बताते हैं कि राधा रानी कौन हैं और श्रीकृष्ण के वृंदावन से जाने के बाद उनका क्या हुआ.

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कौन हैं राधा रानी?
राधा का जन्म भाद्र शुक्ल अष्टमी तिथि को बरसाने में हुआ था. इस दिन को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है. कुछ लोग मानते हैं कि राधा एक भाव है जो कृष्ण के मार्ग पर चलने से प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में वे श्रीकृष्ण की प्रेमिका और संगिनी के रूप में चित्रित हैं. पद्म पुराण में इन्हें वृषभानु राजा की पुत्री और मां लक्ष्मी का अवतार बताया गया है.

कृष्ण के वृंदावन से जाने के बाद राधा का क्या हुआ?
कृष्ण के वृंदावन छोड़ने के बाद राधा का वर्णन बहुत कम मिलता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण जब राधा से आखिरी बार मिले तो उन्होंने कृष्ण से कहा था कि वो हमेशा उनके मन में रहेंगे. इसके बाद कृष्ण ने मथुरा जाकर कंस और बाकी राक्षसों का वध किया और प्रजा की रक्षा के लिए द्वारका में ही बस गए.

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कृष्ण के वृंदावन से जाने के बाद राधा का जीवन बिल्कुल बदल गया. उनका विवाह अयनघोष के साथ हो गया. राधा ने अपने दांपत्य जीवन की सारी रस्में निभाईं और बूढ़ी हुईं. लेकिन उस वक्त भी राधा के मन में कृष्ण बसे हुए थे. राधा ने पत्नी के तौर पर अपने सारे कर्तव्य पूरे किए. दूसरी तरफ श्रीकृष्ण ने अपने दैवीय कर्तव्य निभाए.

राधा जब श्रीकृष्ण से आखिरी बार मिलने पहुंचीं तो उन्हें पता चला कि कृष्ण का विवाह रुक्मिनी और सत्यभामा से हो गया है. उनका मन बहुत दुखी हुआ. लेकिन राधा को देखकर श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए. राधा को कान्हा की नगरी द्वारिका में कोई नहीं पहचानता था, इसलिए राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त कर दिया.

राधा महल के कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं. लेकिन राधा को महल में श्रीकृष्ण के साथ आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं हुआ, इसलिए वो महल छोड़कर चली गईं. धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिल्कुल अकेली और कमजोर हो गईं. उस वक्त उन्हें श्रीकृष्ण की जरूरत महसूस हुई. आखिरी समय में श्रीकृष्ण उनके सामने आए. कृष्ण ने राधा को कुछ मांगने के लिए कहा. लेकिन राधा ने मना कर दिया. कृष्ण के पुन: अनुरोध करने पर राधा ने बांसुरी बजाने का आग्रह किया.

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श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे. बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया. कृष्ण जानते थे कि उनका प्रेम अमर है, बावजूद वे राधा की मृत्यु को बर्दाश्त नहीं कर सके. कृष्ण ने प्रेम के प्रतीकात्मक अंत के रूप में बांसुरी तोड़कर फेंक दी. कहते हैं कि इसके बाद श्री कृष्ण ने जीवनभर बांसुरी नहीं बजाई.

 

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