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Raksha Bandhan 2023: आखिर कैसे शुरू हुई रक्षाबंधन की परंपरा? ये हैं इसकी प्रचलित कथाएं

Raksha Bandhan 2023: रक्षा करने और करवाने के लिए बांधा जाने वाला पवित्र धागा रक्षा बंधन कहलाता है. यह पवित्र पर्व श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई की रक्षा के लिए उनके कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई बहनों को जीवन भर उनकी रक्षा का वचन देते हैं. भाई-बहनों के अटूट प्रेम का त्योहार रक्षाबंधन 30 और 31 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा. रक्षाबंधन मनाने से भाई बहन दोनों को दीर्घायु की प्राप्ति होती है.

रक्षाबंधन 2023 रक्षाबंधन 2023
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 6:44 AM IST

Raksha Bandhan 2023: इस साल रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा के चलते दो तिथियों में बंटा रहा. कुछ लोगों ने भद्रा के चलते 30 अगस्त की रात को त्योहार मनाया गया तो कुछ लोग आज यानी 31 अगस्त को रक्षाबंधन मना रहे हैं. इस दिन बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती हैं. वैसे तो रक्षाबंधन के त्‍योहार से जुड़ीं कई कहानियां प्रचलित हैं, मगर हम आपको बताने जा रहे हैं, सबसे रोचक 5 ऐतिहासिक और पौराणिक कहानियां जिन्‍हें इस त्‍योहार की शुरुआत भी माना जाता है.

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कृष्‍ण और द्रौपदी का रक्षाबंधन 

रक्षाबंधन की सबसे पहली कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है. महाभारत के समय एक बार भगवान कृष्ण की अंगुली में चोट लग गई थी और उसमें से खून बहने लगा था. ये देखकर द्रौपदी जो कृष्ण जी की सखी भी थी उन्होंने  आंचल का पल्लू फाड़कर उनकी कटी अंगुली में बांध दिया. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन से रक्षासूत्र या राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई. जैसा कि आप सब जानते हैं कि जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था तब श्रीकृष्ण ने ही उनकी लाज बचाकर सबसे उनकी रक्षा की थी. 

युधिष्ठर का सैनिकों को राखी बांधना

राखी की एक अन्य प्रचलित कहानी है कि महाभारत के युद्ध मे युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा कि मैं सारे दुखों से कैसे पार पा सकता हूं. तो कृष्ण कहते हैं कि तुम अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधो. इससे तुम्हारी विजय पक्की है. युधिष्ठिर ऐसा ही करता है और उन्हें विजय मिलती है. ये घटना श्रावण माह की पूर्णिमा को हुई थी, इसलिए इसे रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाने लगा और इस दिन सैनिकों को राखी बांधी जाती है.

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राजा बलि और मां लक्ष्‍मी का रक्षाबंधन 

राजा बलि बड़े दानी राजा थे और भगवान विष्‍णु के भक्‍त थे. एक बार वे भगवान को प्रसन्‍न करने के लिए यक्ष कर रहे थे. अपने भक्‍त की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्‍णु ने एक ब्राह्मण का वेष धरा और यज्ञ पर पहुंचकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी. राजा ने ब्राह्मण की मांग स्‍वीकार कर ली. ब्राह्मण ने पहले पग में पूरी भूमि और दूसरे पग ने पूरा आकाश नाप दिया. राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं, इसलिए उन्‍होंने फौरन ब्राह्मण की तीसरा पग अपने सिर पर रख लिया.

उन्‍होंने कहा कि भगवान अब तो मेरा सबकुछ चला गया है. अब आप मेरी विनती स्‍वीकार करें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें. भगवान को राजा की बात माननी पड़ी. उधर मां लक्ष्‍मी भगवान विष्‍णु के वापिस न लौटने से चिंतित हो उठीं. उन्‍होंने एक गरीब महिला का वेष बनाया और राजा बलि के पास पहुंचकर उन्‍हें राखी बांध दी. राखी के बदले राजा ने कुछ भी मांग लेने को कहा. मां लक्ष्‍मी फौरन अपने असली रूप में आ गईं और राजा से अपने पति भगवान विष्‍णु को वापिस लौटाने की मांग रख दी. राखी का मान रखते हुए राजा ने भगवान विष्‍णु को मां लक्ष्‍मी के साथ वापिस भेज दिया. 

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देवराज इंद्र और इंद्राणी की राखी 

माना जाता है कि एक बार दैत्‍य वृत्रासुर ने इंद्र का सिंहासन हासिल करने के लिए स्‍वर्ग पर चढ़ाई कर दी. वृत्रासुर बहुत ताकतवर था और उसे हराना आसान नहीं था. युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया. इस रक्षासूत्र ने इंद्र की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए. तभी से बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए उनकी कलाई पर राखी बांधने लगीं.

 

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