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Sakat Chauth 2022: गणेश जी ने किस चालाकी से हराया भाई कार्तिकेय को, पढ़ें सकट चौथ पर चंद्र को अर्घ्य देने से जुड़ी ये पौराणिक कथा

Sakat Chauth 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए संकष्टी चौथ का व्रत रखती हैं. इस तिथि को संकट चौथ, माघी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी, तिल चौथ आदि नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान श्री गणेश का विधि-विधान से पूजन होता है. वहीं चांद को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूर्ण होता है. आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा....

शिव परिवार शिव परिवार
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी ,
  • 21 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 7:19 AM IST
  • गणेशी जी और कार्तिकेय के बीच हुई प्रतियोगिता
  • पृथ्वी की परिक्रमा पहले पूरी करने का था लक्ष्य

Sakat Chauth 2022: 21 जनवरी को यानी आज सकट चौथ मनाया जा रहा है. इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. शास्त्रीय मान्यताओं के मुताबिक, माताएं संतान की दीर्घायु, आरोग्यता, सुख-समृद्धि की कामना के लिए भगवान विघ्नेश्वर की विशेष रूप से उपासना करती हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश का विधि-विधान से पूजन होता है. वहीं  चांद को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूर्ण होता है. ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने बताई इसके पीछे की पौराणिक कथा. क्यों दिया जाता है चंद्रमा को अर्घ्य ? 

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ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद

सकट चौथ पौराणिक कथा (Sakat Chauth 2022 katha) 
ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने बताया कि पुराणों में उल्लिखित है कि एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे. तब वह मदद मांगने के लिए भगवान शिव के पास आए. उस समय भगवान शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेश जी भी बैठे थे. देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है.  तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया.

गणेश जी

इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा. भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा. तभी उन्हें एक उपाय सूझा. गणेश जी अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए. परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे. तब शिव जी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा. तब गणेश जी ने कहा कि ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं.’यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी.

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कार्तिकेय

इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आर्शीवाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे. इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी. चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी. पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी. ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने आगे बताया कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है. मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन इसकी कथा सुनने से गणपति की कृपा प्राप्त होती है.

 

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