
National Youth Day 2022: 12 जनवरी 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था. हर साल इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day 2022) मनाया जाता है. आमतौर पर स्वामी विवेकानंद को इस्लाम विरोधी माना जाता रहा है. हालांकि, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताब भारत की खोज (The Discovery of India) में इस धारणा को खारिज किया है. अपनी किताब में नेहरू ने स्वामी विवेकानंद की प्रशंसा करते हुए उनके एक पत्र का जिक्र किया है जो उन्होंने अपने एक मुस्लिम मित्र को लिखा था.
इस्लाम के बारे में विवेकानंद के विचार- नेहरू के अनुसार, अपने पत्र में स्वामी विवेकानंद ने लिखा था, 'सच्चाई यह है कि अद्वैतवाद धर्म और विचार का अंतिम शब्द है. यह एकमात्र ऐसी स्थिति है जहां कोई भी सभी धर्मों और संप्रदायों को प्यार से देख सकता है. हम मानते हैं कि यह भविष्य की प्रबुद्ध मानवता का धर्म है…दूसरी ओर हमारा अनुभव है कि यदि कभी किसी अन्य धर्म के अनुयायी अपने व्यावहारिक जीवन में बराबरी के नजरिए के इस स्तर पर आते हैं तो वो सिर्फ इस्लाम और इस्लाम के हो सकते हैं. हमारी मातृभूमि में दो महान व्यवस्थाओं, हिंदुत्व और इस्लाम का मिलन है जहां दिमाग वेदांती और शरीर इस्लाम का है, यही एकमात्र उम्मीद की किरण है.'
स्वामी विवेकानंद ने लिखा था, 'मैं अपने मन की आंखों से संपूर्ण भारत का भविष्य देख सकता हूं, जो इस अराजकता और संघर्ष से गौरवशाली और अजेय बनकर बाहर निकल रहा है. जिसका मस्तिष्क वेदांत और इस्लाम शरीर है.' यह पत्र 10 जून 1898 का है जिसे अल्मोड़ा में लिखा गया था.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना- विवेकानंद ने अपने शिष्यों के साथ मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी. अतीत में जुड़ाव और भारत की विरासत के साथ विवेकानंद जीवन की समस्याओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में बहुत आधुनिक थे. भारत के अतीत और उसके वर्तमान के बीच वह एक तरह का सेतु थे. शिष्टता और गरिमा से परिपूर्ण, अपने मिशन के बारे में सुनिश्चित वह एक गतिशील और ज्वलंत ऊर्जा से भरपूर व्यक्ति थे जिनमें भारत को आगे बढ़ाने का जुनून था.
विवेकानंद अर्थहीन आध्यात्मिक चर्चाओं और तर्कों की निंदा करते थे, विशेष रूप से उच्च जातियों के छुआछूत वाले विचार की. वह बार-बार स्वतंत्रता और समानता की आवश्यकता पर जोर देते थे. वो कहते थे, 'विचार और कर्म की स्वतंत्रता ही जीवन, विकास और कल्याण की एकमात्र शर्त है. भारत की एकमात्र आशा जनता से है. यहां का उच्च वर्ग शारीरिक और नैतिक रूप से मृत हैं.'
विवेकानंद की बहुत सी प्रेरणादायक बातें हैं लेकिन उनकी वाणी और लेखन में एक चीज हमेशा रहती थी- निडर और मजबूत बनो.