
Vidur Niti in Hindi, Mahatma Vidur Thoughts: महाभारत (Mahabharat) कालीन राजा धृतराष्ट्र के महाआमात्य विदुर जी ज्ञानी पुरुष माने जाते हैं. उनकी नीतियां राजधर्म और धर्मनीति का व्यावहारिक विवेचन हैं. उनकी धर्म निष्ठा के कारण उन्हें महात्मा विदुर कहा जाता था. उनकी नीतियां भी धर्म परक हैं. हम यहां बात करेंगे विदुर की उस नीति के बारे में जिसमें वो उस भाव के बारे में बताते हैं जिससे मनुष्य अगर बच जाए तो वह बुद्धिमान कहलाने का हकदार हो जाता है और फंसने पर जीवन बर्बाद हो जाता है. आइए जानते हैं इस नीति (Vidur Niti) के बारे में...
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान्नपकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते।।
महात्मा विदुर का कहना है कि व्यक्ति को उसके पुरुषार्थ से यानी कर्म से कुछ भाव डिगाते हैं, इसलिए मनुष्य को ऐसे भावों से बचना चाहिए. अगर वह ऐसे भावों से स्वयं को बचा पाता है तो वह बुद्धिमान कहलाने का अधिकारी है.
क्रोध यानी गुस्सा मनुष्य को पागल बना देता है. इस स्थिति में व्यक्ति क्या कर रहा है, उसे खुद पता नहीं रहता. इसलिए क्रोध आपकी बुद्धि का सबसे बड़ा शत्रु है, इससे बचना चाहिए.
हर्ष यानी अति उत्साह, यह भी मनुष्य के लिए हानिकारक है. अत्यंत हर्ष की स्थिति में व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो देता है. वह भावनाओं में बहकर गलत निर्णय ले सकता है. इसलिए यह भी मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट करने का कारक हो सकता है.
ह्री यानी विनय, यहां इसका अर्थ चापलूसी से लिया गया है. चतुर लोग आपसे अपना काम निकालने के लिए आपकी खुशामद करते हैं और इस खुशामद के कारण मनुष्य गलत निर्णय ले लेता है.
स्वयं के पूज्य का भाव- महात्मा विदुर कहते हैं कि स्वयं के पूज्य का भाव भी व्यक्ति के मनो मस्तिष्क को प्रभावित करता है. वह पूज्य भाव के कारण गलत निर्णय ले लेता है. वास्तव में पूज्य ईश्वर है बाकी सब कुछ उसकी कृतियां हैं. विदुर पवित्रता के भाव को गलत ठहराते हैं, जिसके कारण हम एक दूसरे के विरुद्ध हीनता का भाव भर लेते हैं और दूसरों को स्वयं से नीच बताते हैं.
महात्मा विदुर के अनुसार उपरोक्त भाव जिन मनुष्यों को आकर्षित नहीं करते वास्तव में वे ही बुद्धिमान कहलाने के अधिकारी हैं.