
Vidur Niti in Hindi: महाभारत काल के सबसे ज्ञानि महापुरुषों में गिने जाने वाले विदुर ने अपनी नीतियों में राजधर्म और धर्मनीति का व्यावहारिक विवेचन किया है. कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में महर्षि विदुर की नीतियों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा. उनकी नीतियां आज भी राज्य को कल्याणकारी राज्य होने की सीख देती हैं. महात्मा विदुर ने अपनी नीतियों में राजा द्वारा कर (टैक्स) संग्रहण में संयम बरतने की बात कही है. आइए जानते हैं विदुर की इस नीति के बारे में...
यथा मधु समादत्ते रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः।।
तद्वदर्थान् मनुष्येभ्यः आदद्यात् अविहिंसया।।
इस श्लोक के माध्यम से विदुर बताते हैं कि जैसे भंवरा फूलों की रक्षा करता हुआ ही उनके मधु का स्वाद चखता है, उसी प्रकार राजा को भी जनता से उन्हें कष्ट दिए बिना ही उनसे धन लेना चाहिए.
जैसे राज्य को विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है वैसे ही नागरिकों को अपने जीवन यापन के लिए धन की आवश्यकता होती है. राज्य स्वयं से धनोपार्जन नहीं करता बल्कि कर (टैक्स) के माध्यम से अपने नागरिकों से धन एकत्रित करता है. इसके बदले में राज्य अपनी प्रजा को जान-माल की सुरक्षा और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराता है.
महात्मा विदुर कहते हैं कि धन दोनों की आवश्यकता है. दोनों को युक्तिसंगत संतुलित कर निर्धारण करना चाहिए ताकि जनता खुशी-खुशी टैक्स दे. राज्य से मिलने वाले साधन सुविधाओं के लिए धन्यवाद दे.ये तब सम्भव है जब राज्य का कर निर्धारण में भंवरों और फूल के जैसा संबंध हो.
भंवरा फूल से उतना ही रस लेता है जिससे उसे कोई नुक्सान न हो और राज्य की भी आवश्यकता की पूर्ति हो जाए. अब सवाल उठता है कि इस भंवरे और फूल के संबंध की उचित व्याख्या क्या हो, इस पर कई विचार हैं.
ब्रिटिश काल में भारत की जनता पर कर का बोझ अत्यधिक इसलिए लाद दिए गए थे क्योंकि कम्पनी चाहती थी कि भारत की जनता किसी तरह सिर न उठा सके. लेकिन अब जन कल्याण के लिए राज्य की अवधारणा को लेकर भारत में इस श्लोक के अनुसार कर निर्धारण पर बहस जारी है. भारत में हो रहे लगातार कर सुधार इसी श्लोक के आलोक में हो रहे हैं. इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि विदुर नीति आज भी उभरते भारत के लिए कितनी प्रासंगिक है.