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धर्म

जानें, भगवान शिव के जन्म से जुड़ा रहस्य!

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 13 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 7:54 AM IST
जानें, भगवान शिव के जन्म से जुड़ा रहस्य!
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भगवान शिव के जन्म से जुड़ा रहस्य क्या है? भगवान शिव को स्वयंभू कहा जाता है जिसका अर्थ है कि वह अजन्मा हैं. वह ना आदि हैं और ना अंत. भोलेनाथ को अजन्मा और अविनाशी कहा जाता है तो आइए जानते हैं उनके जन्म से जुड़ा रहस्य क्या है...

जानें, भगवान शिव के जन्म से जुड़ा रहस्य!
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त्रिदेवों में भगवान शंकर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता, भगवान विष्णु संरक्षक और भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं. त्रिदेव मिलकर प्रकृति के नियम का संकेत देते हैं कि जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है.

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इन त्रिदेव की उत्पत्ति खुद एक रहस्य है. कई पुराणों का मानना है कि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु शिव से उत्पन्न हुए. हालांकि शिवभक्तों के मन में सवाल उठता है कि भगवान शिव ने कैसे जन्म लिया था?

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कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयंभू है जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं. जब कुछ नहीं था तो भगवान शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्तित्व रहेगा. भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है जिसका अर्थ  हिंदू माइथोलॉजी में सबसे पुराने देव से है. वह देवों में प्रथम हैं.

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हालांकि भगवान शिव के जन्म के संबंध में एक कहानी प्रचलित है. भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच एक बार बहस हुई. दोनों खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाह रहे थे.

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तभी एक रहस्यमयी खंभा दिखाई दिया. खंभे का ओर-छोर दिखलाई नहीं पड़ रहा था. भगवान ब्रह्मा और विष्णु को एक  आवाज सुनाई दी और उन्हें एक-दूसरे से मुकाबला करने की चुनौती दी गई. उन्हें खंभे का पहला और आखिरी छोर ढूंढने के लिए कहा गया.

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भगवान ब्रह्मा ने तुरंत एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे के ऊपरी हिस्से की खोज करने निकल पड़े. दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और खंभे के आखिरी छोर को ढूंढने निकल पड़े. दोनों ने बहुत प्रयास किए लेकिन असफल रहे.

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जब उन्होंने हार मान ली तो उन्होंने भगवान शिव को इंतजार करते हुए पाया. तब उन्हें एहसास हुआ कि ब्रह्माण्ड को एक सर्वोच्च शक्ति चला रही है जो भगवान शिव ही हैं. खंभा प्रतीक रूप में भगवान शिव के कभी ना खत्म होने वाले  स्वरूप को दर्शाता है.

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भगवान शिव के जन्म के विषय में इस कथा के अलावा भी कई कथाएं हैं. दरअसल शिव के ग्यारह अवतार माने जाते हैं. इन अवतारों की कथाओं में रुद्रावतार की कथा काफी प्रचलित है.

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कूर्म पुराण के अनुसार जब सृष्टि को उत्पन्न करने में ब्रह्मा जी को कठिनाई होने लगी तो वह रोने लगे. ब्रह्मा जी के आंसुओं से भूत-प्रेतों का जन्म हुआ और मुख से रुद्र उत्पन्न हुए. रूद्र भगवान शिव के अंश और भूत-प्रेत उनके गण यानी सेवक माने जाते हैं.

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शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को स्वयंभू (सेल्फ बॉर्न) माना गया है जबकि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु स्वयंभू हैं. शिव पुराण के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं.

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संहारक कहे जाने वाले भगवान शिव एक बार देवों की रक्षा करने हेतु जहर पी लिया था और नीलकंठ कहलाए. भगवान शिव अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाएं तो सारी मुरादें पूरी कर देते हैं.

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भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा की जाती है. जटाधारी शिव शंकर को प्रसन्न करने में किसी भी मनुष्य को कठिनाईयों का सामना नहीं करना पड़ता है. उन्हें सच्ची श्रद्धा मात्र से ही प्रसन्न किया जा सकता है.

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