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धर्म

कबीर हिंदू थे या मुसलमान? जानें उनके जीवन से जुड़ीं बड़ी बातें

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 28 जून 2018,
  • अपडेटेड 4:36 PM IST
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भारत के महान संत एवं समाज सुधारक कबीरदास ने भक्ति आंदोलन पर काफी प्रभाव डाला था. कबीर शब्द अरब भाषा से आया है. अरबी के अल-कबीर का अर्थ होता है- महान. इस्लाम में ईश्वर का 37वां नाम.

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कबीर की विचारधारा व परंपरा को आज कबीर पंथ नाम का समुदाय आगे बढ़ाने का काम कर रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, वर्तमान में करीब ढाई करोड़ कबीरपंथी हैं.

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कबीर की शुरुआती जिंदगी के बारे में बहुत स्पष्ट और प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है. भारतीय परंपरा के मुताबिक, वह 1398 से लेकर 1518 तक जिए थे. कहा जाता है कि गुरु नानक और सिकंदर लोदी भी उनके समकालीन थे. आधुनिक विद्वान उनके जन्म और मृत्यु की तारीख के बारे में निश्चित नहीं हैं.

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प्रचलित जनश्रुति के मुताबिक, कबीर का जन्म काशी के लहरतारा नाम की जगह पर हुआ था. वह एक ब्राम्हण विधवा के बेटे थे. समाज में अपयश के भय से कबीर की विधवा मां ने उन्हें त्याग दिया था. इसके बाद कबीर को एक गरीब मुस्लिम जुलाहे परिवार ने पाला. कबीर की माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था.

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वैष्णव संत रामानंद ने कबीर को अपना शिष्य बनाया. जब गुरु रामानंद की मौत हुई तो कबीर की उम्र मात्र 13 वर्ष थी.

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अपने दोहों में कबीर खुद को ब्राह्मण नहीं बताते हैं बल्कि वह कई जगहों पर खुद को जुलाहा कहते नजर आते हैं. एक जगह कबीर ने कहा है :-"जाति जुलाहा नाम कबीरा, बनि बनि फिरो उदासी।'

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हालांकि कबीर ने अपने को जुलाहा कई बार कहा है-

(1) जाति जुलाहा मति कौ धीर। हरषि गुन रमै कबीर।
(2) तू ब्राह्मन, मैं काशी का जुलाहा।

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कुछ लोगों का मानना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के माध्यम से उन्हें हिंदू धर्म की बातें मालूम हुईं. रामानंद ने चेताया तो उनके मन में वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया और उन्होंने उनसे दीक्षा ले ली. कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया. कबीर के समकालीन भगत रविदास ने भी एक दोहे में उल्लेख किया है कि कबीर का जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ था जो गोवध करते थे.

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कबीर के गुरु रामानंद विशिष्टअद्वैतवाद दर्शन के पक्षकार थे और भगवान राम को अपना ईष्ट देव मानते थे. कबीर ने भी भगवान राम को अपना भगवान कहा है. कबीर संन्यासी नहीं बने और सांसारिक जीवन का भी त्याग नहीं किया. उन्होंने तो एक गृहस्थ और रहस्यवादी के बीच संतुलन स्थापित किया. हालांकि इस विषय पर मतभेद है कि उनकी शादी हुई थी या नहीं.

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कहा जाता है कि कबीर का परिवार वाराणसी के कबीर चौराहे के इलाके में रहता था. कबीर चौराहा में कबीरमठ स्थित है. कबीर का मुख्य उद्देश्य सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण को रोकना था.

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कबीर का सबसे महान ग्रन्थ बीजक है. इसमें कबीर के दोहों का संकलन है. उनकी शब्दावली हिंदू अध्यात्म से भरपूर है- जैसे ब्राह्मण, कर्म, पुनर्जन्म जैसी अवधारणाएं लेकिन महान संत ने हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों की कुरीतियों पर वार किया था. वह अधिकतर कुरान और वेद को छोड़कर सहज पथ पर चलने की सलाह देते थे. वह आत्मा के वेदांत सिद्धांत में विश्वास करते थे लेकिन रूढ़िवादी वेदांतियों से अलग हिंदू जाति व्यवस्था और मूर्ति पूजा का विरोध करते थे. भक्ति और सूफी के विचारों में उनका विश्वास था.

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कबीर अपने भगवान को राम कहकर बुलाते हैं हालांकि कबीर के राम दशरथ पुत्र राम नहीं हैं. उनके राम निर्जन, निराकार और न्यारे हैं. यहां उनके विचार उपनिषद से मिलते-जुलते हैं. कबीर का दोनों समुदायों पर इतना गहरा असर था कि उनकी मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार के लिए बहस हुई.

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ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था. हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से. इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहां फूलों का ढेर पड़ा देखा. बाद में वहां से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने. मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया. मगहर में कबीर की समाधि है.

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