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अध्यात्म

Parshuram jayanti 2021: जब भगवान राम पर क्रोधित हो गए थे परशुराम, जानें कई अनसुनी बातें

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 मई 2021,
  • अपडेटेड 3:50 PM IST
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हर साल अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम जी की जयंती मनाई जाती है. परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं. वो रेणुका और सप्तर्षि जमदग्नि के पुत्र थे. वह द्वापर युग के अंतिम समय तक जीवित रहे थे. परशुराम को हिंदू धर्म के सात अमर लोगों में से एक माना जाता है. परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी जिसके बाद उन्हें वरदान के रूप में एक फरसा मिला था. इसके जरिए परशुराम ने कई तरह की युद्ध कला सीखी.
 

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शक्तिशाली राजा कार्तवीर्य ने परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी. कहा जाता है कि इसका बदला परशुराम ने कार्तवीर्य के बाद इक्कीस बार क्षत्रियों का वध करके लिया था. उन्होंने महाभारत और रामायण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो भीष्म, कर्ण और द्रोण के गुरु बने. परशुराम ने कोंकण और केरल की भूमि को बचाने के लिए कई समुद्री लड़ाइयां भी लड़ीं. भार्गव परशुराम के दादा एक महान ऋषि थे जिनका नाम ऋचीक था. परशुराम भारद्वाज गोत्र के कुल गुरु भी हैं. परशुराम भार्गव गोत्र के एक गौड़ ब्राह्मण से संबंध रखते हैं.

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कहा जाता है कि परशुराम के जन्म से पहले रेणुका ने चार पुत्रों को जन्म दिया जिनके नाम वासु, विश्व वासु, बृहुद्यानु और ब्रुतवाकांवा थे. अपने पांचवें पुत्र परशुराम के जन्म से पहले जमदग्नि ने दिव्य दृष्टि के लिए रेणुका झील (वर्तमान में हिमाचल में) के पास अपनी पत्नी रेणुका के साथ ध्यान किया. रेणुका पति के प्रति अपने समर्पण के लिए जानी जाती थीं. 
 

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श्री परशुराम भगवान शंकर के परम भक्त थे. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वो अपना घर छोड़ तपस्या करने के लिए चले गए. उनकी भक्ति और ध्यान से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र भेंट किए. उसमें एक अजेय हथियार फरसा भी था जिसे परशु कहा जाता है. भगवान शिव ने परशुराम को पृथ्वी को अधर्मी लोगों से मुक्त कराने को कहा.
 

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एक बार, भगवान शिव ने युद्ध में कौशल का परीक्षण करने के लिए परशुराम को युद्ध की चुनौती दी. दोनों के बीच इक्कीस दिनों तक लगातार युद्ध चला. शिव के त्रिशूल से बचने के लिए परशुराम ने अपने परशु से उन पर जोरदार हमला किया. इससे भगवान शिव के माथे पर एक घाव बन गया. अपने शिष्य के अद्भुत युद्ध कौशल को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए.
 

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रामायण में परशुराम ने सीता के स्वयंवर के लिए उनके पिता को शिव का धनुष दिया था. इस धनुष को उठाने वाला योग्य व्यक्ति सीता से विवाह कर सकता था. भगवान राम ने शिव के इस धनुष को उठाया था. उन्होंने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे तोड़ दिया. इसकी गूंज दूर-दूर तर पहुंची. उस समय परशुराम महेंद्र पर्वत की चोटी पर ध्यान कर रहे थे, धनुष टूटने की तेज आवाज उनके कानों में भी पहुंची.
 

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वाल्मीकि रामायण के अनुसार, परशुराम ने सीता से विवाह के बाद श्रीराम और उनके परिवार से मिलना बंद कर दिया था. उन्होंने भगवान राम को मारने की धमकी भी दी जिसके बाद राजा दशरथ ने बेटे को क्षमा करने और इसके बदले उन्हे दंडित करने की विनती की. परशुराम ने राम को मुकाबला करने की चुनौती भी दी. श्रीराम ने परशुराम की चुनौती स्वीकार कर ली लेकिन ये भी कहा कि वो परशुराम को नहीं मार सकते हैं क्योंकि वो एक ब्राम्हण हैं और गुरु विश्वामित्र महर्षि के शिष्य हैं.

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पुराणों के अनुसार, एक बार परशुराम भगवान शिव से मिलने हिमालय पर जा रहे थे और भगवान गणेश ने उनका रास्ता रोक लिया था. इससे क्रोधित होकर परशुराम ने गणेश पर अपना परशु फेंक दिया. परशु के वार से भगवान गणेश का एक दांत टूट गया और इसी के बाद वो एकदंत कहलाए जाने लगे. 

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नाथ परंपरा यह मानती है कि क्षत्रियों से अपने पिता का बदला लेने के बाद परशुराम बहुत निराश हो गए थे. शान्ति की खोज में वो अपने गुरु कश्यप ऋषि के पास गए. कश्यप ऋषि का इस सृष्टि के विकास में महान योगदान माना जाता है. कश्यप ऋषि ने भगवान परशुराम को भगवान दत्तात्रेय की शरण में जाने की सलाह दी. इनकी बातचीत का वर्णन त्रिपुरा रहस्य नामक ग्रंथ में मिलता है.

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कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय के मार्गदर्शन से योद्धा ऋषि परशुराम को शास्त्रों का ज्ञान हुआ. इसके बाद उन्होंने सांसारिक गतिविधियों का त्याग कर दिया. इस प्रकार उन्हें मृत्यु और पुनर्जन्म के कर्म चक्र से मुक्ति मिल गई. महाभारत में भी इस बात का जिक्र है कि क्षत्रियों के नरसंहार के बाद परशुराम खुद हताश हो गए थे और इसके बाद वो एक सन्यासी बन गए थे.
 

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