
Ahoi Ashtami 2023: अहोई अष्टमी का व्रत इस बार 5 नवंबर यानी आज रखा जा रहा है. इस दिन माताएं अपनी संतान के सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं. साथ ही वो महिलाएं भी व्रत रखती हैं, जिनकी संतान नहीं है. इस दिन माता अहोई के साथ साथ स्याही माता की उपासना भी की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है. यह व्रत कार्तिक माह में करवा चौथ के चौथे दिन और दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है. कहते हैं कि अहोई अष्टमी के व्रत वाले दिन अहोई माता की कथा सुनने का विधान है. तो आइए जानते हैं उस पौराणिक कथा के बारे में.
अहोई अष्टमी व्रत की कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha)
एक समय की बात है किसी गांव में एक साहूकार रहता था. उसके सात बेटे थे. दीपावली से पहले साहूकार की पत्नी घर की पुताई करने के लिए मिट्टी लेने खदान गई. वहां वह कुदाल से मिट्टी खोदने लगी. दैवयोग से साहूकार की पत्नी को उसी स्थान पर एक "स्याही" की मांद थी, जहां वह अपने बच्चों के साथ रहती थी. अचानक कुदाल साहूकार की पत्नी के हाथों "स्याही" के बच्चे को लग गई, जिससे उस बच्चे की मृत्यु हो गई. "स्याही" के बच्चे की मौत का साहूकारनी को बहुत दुख हुआ. परंतु वह अब कर भी क्या सकती थी, वह पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई.
कुछ समय बाद साहूकारनी के एक बेटे की मृत्यु हो गई. इसके बाद लगातार उसके सातों बेटों की मौत हो गई. इससे वह बहुत दुखी रहने लगी. एक दिन उसने अपनी एक पड़ोसी को "स्याही" के बच्चे की मौत की घटना सुनाई और बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया. यह हत्या उससे गलती से हुई थी जिसके परिणाम स्वरूप उसके सातों बेटों की मौत हो गई. यह बात जब सबको पता चली तो गांव की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा दिया.
वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को चुप करवाया और कहने लगी आज जो बात तुमने सबको बताई है, इससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है. इसके साथ ही, उन्होंने साहूकारनी को अष्टमी के दिन अहोई माता तथा "स्याही" और "स्याही" के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करने को कहा. इस प्रकार क्षमा याचना करने से तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे और कष्ट दूर हो जाएंगे.
साहूकार की पत्नी उनकी बात मानते हुए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखा व विधि पूर्वक पूजा कर क्षमा याचना की. इसी प्रकार उसने प्रतिवर्ष नियमित रूप से इस व्रत का पालन किया. जिसके बाद उसे सात पुत्र रत्नों की फिर से प्राप्ति हुई. तभी से अहोई व्रत की परंपरा चली आ रही है.
अहोई अष्टमी पूजन विधि (Ahoi Ashtami Pujan Vidhi)
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. पूजा के समय पुत्र की लंबी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना करें. इसके पश्चात् अहोई अष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है. मां पार्वती की आराधना करें. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर उनके चित्र के साथ ही साही और उसके सात पुत्रों की तस्वीर बनाएं. माता जी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़ा आदि रखकर अहोई अष्टमी की व्रत कथा सुनें या सुनाएं.
सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवा होना चाहिए. इसमें उपयोग किया जाने वाला करवा भी वही होना चाहिए, जिसे करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया हो. शाम में इन चित्रों की पूजा करें. लोटे के पानी से शाम को चावल के साथ तारों को अर्घ्य दें. अहोई पूजा में चांदी की अहोई बनाने का विधान है, जिसे स्याहु (साही) कहते हैं. स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से करें.